भारत में बेटियों के पिता से भरण-पोषण लेने के क्या अधिकार है?

भारत में बेटियों के पिता से भरण-पोषण लेने के क्या अधिकार है?

भारत में बालिग बेटी को पिता से भरण-पोषण की मांग के क्या अधिकार हैं

भारत में बेटियों के पिता से भरण-पोषण लेने के क्या अधिकार है, ये सवाल आप सबके मन में जरुर आता होगा। तो आइए इस सवाल का जवाब जानते हैं। 

भारतीय कानून बेटियों के पिता को अपनी बेटी के प्रति उनके जीवन एवं उनके संबंधों के लिए जिम्मेदार बनाता है। भारत में बेटियों के पिता से भरण-पोषण लेने के कुछ ऐसे अधिकार निम्नलिखित हैं:

बेटी के जीवन एवं उनके संबंधों की रक्षा

बेटी के पिता को उनकी रक्षा और संबंधों की देखभाल करना चाहिए। उन्हें उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी होती है।

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शिक्षा एवं पढ़ाई की व्यवस्था

बेटी को शिक्षा एवं पढ़ाई करने का अधिकार होता है। उनके पिता को इसके लिए उन्हें आवश्यक शैक्षणिक संसाधन प्रदान करना चाहिए।

विवाह एवं दहेज के खिलाफ कानूनों का पालन

बेटियों को अपनी पसंद के अनुसार विवाह करने का अधिकार होता है। उनके पिता को इसके लिए उन्हें समर्थन करना चाहिए और दहेज के खिलाफ कानूनों का पालन करना चाहिए।

अधिकार और कर्तव्यों के बारे में जानकारी प्रदान करना

बेटियों के पिता को उनके अधिकार और कर्तव्यों के बारे में जानकारी प्रदान करना चाहिए।

संपत्ति के विवरण

पिता को अपनी संपत्ति के विवरण, अंतरिक्ष और उनके आय के विवरण प्रदान करने की जिम्मेदारी होती है।

शिक्षा और पढ़ाई

बेटियों को शिक्षा दिलाने की जिम्मेदारी पिता की होती है। उन्हें अधिकार होता है कि वे अपनी बेटियों को स्कूल भेजें और उनकी पढ़ाई में सक्रिय रूप से भाग लें।

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संचार अधिकार

बेटियों के पिता को अपनी बेटियों के साथ संचार करने का अधिकार होता है।

स्वास्थ्य और सुरक्षा

पिता की जिम्मेदारी होती है कि वह अपनी बेटियों को स्वस्थ और सुरक्षित रखे। उन्हें अपनी बेटियों को खाने-पीने, स्वच्छता और स्वस्थ जीवन जीने की सुविधाएं प्रदान करनी चाहिए। उन्हें अपनी बेटियों को बचाने और उनकी सुरक्षा के लिए उचित उपाय उठाने की जिम्मेदारी भी होती है।

बेटियों से संबंधित क़ानूनी धाराएं कौन सी हैं?

इसके अलावा, भारतीय कानून में बेटियों के पिता के साथ कुछ संबंधित धाराएं भी होती हैं, जिन्हें वे अपनी बेटियों की रक्षा और सुरक्षा के लिए प्रयोग कर सकते हैं।

किशोर न्याय अधिनियम 2000

इस अधिनियम के तहत, पिता को अपनी बेटियों की बचपन की जिम्मेदारी होती है। इसका मकसद बचपन में बच्चों की सुरक्षा, संरक्षण और विकास की देखभाल करना होता है।

धारा 498 ए (अनुमोदित) भारतीय दण्ड संहिता, 1860

इस धारा के तहत, दहेज के लिए अत्याचार करने वाले व्यक्ति पर कार्रवाई की जाती है। बेटियों के पिता के लिए यह एक महत्वपूर्ण धारा होती है, जिससे उन्हें उनकी बेटियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी का भी ख्याल रखना होता है। धारा 498 ए के तहत, जब भी कोई व्यक्ति अपनी बेटी की शादी के दौरान दहेज के लिए अत्याचार करता है, तो उस पर दंडाधिकार की कार्रवाई की जा सकती है। इस धारा के तहत अत्याचार करने वाले व्यक्ति को दोनों जेल और जुर्माना के रूप में सजा हो सकती है।

बाल विवाह अधिनियम, 2006

इस अधिनियम के तहत, 18 साल से कम उम्र में किसी भी लड़की की शादी करना अवैध है। यदि कोई बाल विवाह करता है, तो उस पर कठोर दंड लगाया जा सकता है।

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बाल अधिकार अधिनियम, 1986

इस अधिनियम के तहत, बच्चों के साथ किसी भी प्रकार का शोषण या उत्पीड़न अपराध है। बालों के दायित्व को संरक्षित करने के लिए इस अधिनियम के तहत दंड और सजा भी हो सकती है।

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