एक मकान मालिक के क्या अधिकार और दायित्व होते हैं?

एक मकान मालिक के क्या अधिकार और दायित्व होते हैं?

1948 में भारत सरकार द्वारा पारित किराया नियंत्रण अधिनियम वास्तव में किरायेदारों और मकान मालिकों के लिए बनाया गया था। मगर यह मकान मालिकों के अधिकारों की सुरक्षा और दायित्व के बारे में भी बात करता है। कई राज्यों ने जैसे दिल्ली, महाराष्ट्र, कर्नाटक ने अपने अधिकार क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुरूप इस अधिनियम के संशोधित संस्करण लागू किए हैं। ताकि मकान मालिकों और किरायेदारों के बीच सामंजस्य स्थापित रहे। साथ ही यह किरायेदारों और मकान मालिक के अधिकार और दायित्व का भी संरक्षण करते हैं।

आइये आज के इस लेख में हम यह समझने का प्रयास करते हैं कि किसी मकान मालिक के अधिकार और दायित्व क्या होते हैं?

अधिनियम के अनुसार मकान मालिक को कई प्रकार के दायित्व और अधिकार प्राप्त होते हैं। सबसे पहले यह समझते है कि एक मकान मालिक के पास कौन से अधिकार होते हैं?

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मकान मालिकों को प्राप्त अधिकार हैं

मकान मालिकों को यह चुनने का अधिकार है कि उनकी किराये की संपत्ति में कौन रहेगा।

एक मकान मालिक के पास यह अधिकार है कि वह किरायेदारों की वर्तमान रोजगार की पुष्टि उस का वेतन स्तर, नियोक्ता के साथ उसके रहने की संभावनाएं और पिछले मकान मालिक के साथ (यदि हो तो) उस के साथ उस के साथ उस के सम्बंध कैसे थे; जान सकता है।

मकान मालिक को यह अधिकार है कि वह अपने किरायेदार से एक सुरक्षा जमा एकत्र कर सकता है। ताकि मकान मालिक को किराए का भुगतान न करने या किराये की संपत्ति को नुकसान आदि पर होने वाले किसी भी नुकसान के खिलाफ क्षतिपूर्ति उसी जमा राशि से की जा सके।

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किरायेदारी की समाप्ति पर मकान मालिक के पास यह अधिकार होता है कि वह अचल संपत्ति करों में किसी भी वृद्धि को सुरक्षा जमा से काट सकता है। किरायेदार कॉन्ट्रेक्ट में इसे एक वैध कर एस्केलेटर क्लॉज के अनुसार भुगतान करने के लिए बाध्य है।

मकान मालिक के पास यह अधिकार है कि वह शीघ्र भुगतान का अधिकार रखता है। जो कि हर महीने की पहली तारीख हो सकती है। जब तक कि दोनों पार्टियों द्वारा अन्यथा निर्णय नहीं लिया जाता है।

मकान मालिक के पास मॉडल टेनेंसी एक्ट 2015 के अनुसार किराए की संपत्ति या उसके एक हिस्से को बिना किसी की अनुमति के किसी अन्य पार्टी को सबलेट करने किराये के समझौते का उल्लंघन करने, संपत्ति में अवैध गतिविधियों का संचालन करने, भुगतान में देरी, संपत्ति का दुरुपयोग आदि के आधार पर किरायेदार के असामयिक बेदखली का अधिकार भी है।

अगर संपत्ति में कुछ मरम्मत या परिवर्तन या परिवर्धन करना है तो मकान मालिक संपत्ति अपना अधिकार  हासिल करने का हकदार है। 

मकान मालिक के पास यह अधिकार है कि वह किरायेदार द्वारा किराये की संपत्ति के लिए किए गए किसी भी मरम्मत, परिवर्तन आदि के बारे में सूचना प्राप्त करेगा।

एक बात का ध्यान और रखना चाहिए कि ये सभी अधिकार बिना किसी वैध समझौते जिसे किराया समझौता या रेंट एग्रीमेंट कहा जाता है के बिना कानून के लिए मान्य नहीं होंगे। आइये समझते हैं कि एक रेंट अग्रीमेंट क्या होता है?

भारत में आवासीय या व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए किसी भी संपत्ति को किराए पर देना विभिन्न नियमों और विनियमों के अधीन है। सभी नियमों और शर्तों को ध्यान में रखते हुए दोनों पक्षों के बीच एक लिखित समझौता होना आवश्यक है। इस समझौते को ही रेंट एग्रीमेंट कहते हैं। आइये समझते हैं रेंट अग्रीमेंट में क्या आवश्यक है?

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सुधार के प्रकार की परवाह किए बिना कोई भी परिवर्तन भी लिखित में होना चाहिए।

अनुबंध दिनांकित होना चाहिए और दोनों पक्षों यानी मकान मालिक और किरायेदार द्वारा हस्ताक्षरित होना चाहिए।

समझौते पर मुहर और पंजीकरण होना चाहिए।

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