सारदा एक्ट: जिससे भारत में पहली बार शादी की उम्र तय की गयी थी।

सारदा एक्ट: जिससे भारत में पहली बार शादी की उम्र तय की गयी थी।

भारत में बाल विवाह की कुप्रथा बहुत प्रचलित थी। आज़ादी के पहले भी इसे रोकने के लिए कई बार नियम और कानून बनाये गए। और समय-समय पर उनमे बदलाव भी किये गए। सबसे पहली बार सारदा एक्ट के रूप में शादी की उम्र तय करने वाला कानून बनाया गया था। दरसल, सारदा एक्ट ही बाल विवाह रोकथाम क़ानून की नींव है।

सारदा एक्ट कब बना था?

भारत की आज़ादी से पहले, बाल विवाह को रोकने के लिए शादी की अलग-अलग मिनिमम मैरिज एज तय की गई थी। लेकिन, इसके लिए कोई क़ानून नहीं बनाया गया। 

उसके बाद, 1927 में राय साहेब ह‍रबिलास सारदा ने बाल विवाह रोकने के लिए एक विधेयक पेश किया। जिसमे कानूनी रूप से मिनिमम मैरिज एज लड़कों की 18 और लड़कियों की 14 साल तय करने का सुझाव रखा। 1929 में सारदा एक्‍ट के नाम से जाना गया, यह क़ानून पास किया गया था। हरबिलास सारदा राजनेता, शिक्षाविद, न्यायाधीश और समाज सुधारक थे। उनकी कोशिशों से ही सारदा एक्ट बना था। इसके बाद, 1978 में यह क़ानून बदला गया। जिसमे लड़कों की मिनिमम मैरिज एज 21 और लड़कियों की 18 कर दी गयी थी।

लेकिन इतनी कोशिशों और कानूनों के बाद भी बाल विवाह नहीं रुके। इसका कारण शायद यह था कि कानून में दंड का कोई प्रावधान नहीं था। फिर, सन 2006 में, सारदा एक्ट की जगह पर बाल विवाह रोकथाम क़ानून को लाया गया। इस नए क़ानून के तहत, बाल विवाह कराने वालों के खिलाफ सज़ा का प्रावधान लाया गया। 

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क़ानून की कमियां:- 

(1) सारदा एक्ट के तहत ना के बराबर सज़ा का प्रावधान था। इसमें 15 दिन की जेल और 1000 रुपये जुर्माना भरना होता था। 

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(2) इस एक्ट में बाल विवाह हो जाने के बाद शादी की स्थिति स्पष्ट नहीं की गयी थी। संपन्न हो चुका बाल विवाह वैध है या अवैध है या फिर उसे रद्द किया जा सकता है, इस बात का कोई स्पष्टीकरण कानून में नहीं दिया गया था। 

(3) बाल विवाह रोकने के लिए इसकी शिकायत को कोर्ट में साबित करके, कोर्ट का आदेश लाना जरूरी होता था। यह प्रावधान इसीलिए बनाया गया था ताकि कोई आपसी दुश्मनी के कारण झूठी शिकायत करके किसी निर्दोष को फंसा ना दे। लेकिन इस प्रावधान की वजह से बहुत सी प्रशासनिक परेशानियां होती थीं। जैसे – शादी हो जाने के बाद नोटिस मिलना, शिकायत को देर से स्वीकार करना, आदि। 

क़ानून में जरूरी बदलाव:-

सारदा एक्ट में इतने बदलाव किये गए कि इसे ख़त्म करके नया कानून ही बना दिया गया। बाल विवाह रोकथाम क़ानून, 2006 के रूप में आया नया कानून सारदा एक्ट से कहीं ज्यादा स्पष्ट है। इसके तहत बाल विवाह करने पर दो साल की जेल और एक लाख जुर्माना भरना पड़ सकता है। बालिग होने पर दोनों पार्टनर्स में से कोई भी कोर्ट में आवेदन करके अपने बाल विवाह को रद्द करा सकते हैं। इमरजेंसी में बाल विवाह रुकवाने के लिए, नोटिस के बिना भी कोर्ट से आदेश ले सकते है। साथ ही, सभी ज़िलों में नाबालिगों की शादियों को रोकने के लिए एक अधिकारी नियुक्त किया जाता है।

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