भारतीय न्याय संहिता (BNS) भारतीय आपराधिक कानून का प्रमुख स्तंभ है, जो अपराधों की परिभाषा और सज़ा का निर्धारण करता है।
- BNS की धारा 117(2) एक महत्वपूर्ण प्रावधान है, जो किसी व्यक्ति को जानबूझकर गंभीर चोट पहुँचाने के अपराध को परिभाषित करती है।
- गंभीर चोट का मतलब ऐसी चोट से है जो शरीर को स्थायी रूप से क्षति पहुँचाती है या जीवन के लिए खतरा बनती है।
- यह धारा उन मामलों में लागू होती है जहाँ चोट बिना खतरनाक हथियार के पहुँचाई जाती है, लेकिन उसका प्रभाव बहुत गंभीर होता है।
- आज के समय में जब कई बार छोटी बातों पर झगड़े बढ़ जाते हैं, तो ऐसी धाराओं की जानकारी होना बेहद ज़रूरी है चाहे आप पीड़ित हों या आरोपी।
BNS धारा 117(2): गम्भीर चोट पहुँचाने पर सज़ा क्या है?
BNS की धारा 117(2) उन व्यक्तियों पर लागू होती है, जो जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को ऐसी चोट पहुँचाते हैं, जो “गंभीर चोट (grievous hurt)” के रूप में मानी जाती है।
गंभीर चोट की परिभाषा: BNS की धारा 116 के अनुसार, गंभीर चोट में निम्न शामिल हो सकते हैं:
- हड्डी टूटना या दरार आना
- किसी अंग की कार्यक्षमता का नुकसान
- स्थायी अपंगता या कुरूपता
- आंखों या कानों का नुकसान
- जान के लिए खतरा पैदा करने वाली चोट
उदाहरण:
- किसी व्यक्ति को मुक्का मारने से उसकी नाक टूट जाए।
- धक्का देने से रीढ़ की हड्डी में चोट आ जाए।
- लाठी से मारने पर हाथ या पैर टूट जाए।
सज़ा का प्रावधान:
- अधिकतम सज़ा: 7 साल की कैद
- अतिरिक्त दंड: जुर्माना भी लगाया जा सकता है
- अदालत परिस्थिति के अनुसार दोनों दंड (कैद और जुर्माना) भी दे सकती है।
सज़ा की गंभीरता किन बातों पर निर्भर करती है?
- चोट कितनी गंभीर है?
- आरोपी का इरादा क्या था?
- क्या यह पहली बार का अपराध है?
- क्या चोट स्थायी है?
प्रमाण:
- मेडिकल रिपोर्ट: डॉक्टर की रिपोर्ट जो चोट की गंभीरता को प्रमाणित करे।
- गवाहों के बयान: जो घटना के समय मौजूद थे।
- फोटोग्राफ्स या CCTV फुटेज
अदालत में इन सबूतों का महत्व होता है और इन पर आधारित होकर फैसला होता है कि चोट “सामान्य” है या “गंभीर।”
कानूनी प्रक्रिया: गम्भीर चोट के मामलों में कैसे कार्यवाही होती है?
गंभीर चोट के मामलों में प्रक्रिया एकदम स्पष्ट और कानूनन निर्धारित होती है।
FIR दर्ज कराना:
- किसी भी अपराध की जानकारी सबसे पहले पुलिस स्टेशन में दी जाती है।
- BNS की धारा 117(2) एक “जमानती अपराध“ है, लेकिन इसकी गंभीरता के अनुसार पुलिस FIR दर्ज करती है।
FIR में क्या जानकारी होनी चाहिए?
- घटना का समय और स्थान
- चोट पहुँचाने वाला व्यक्ति कौन है
- किस प्रकार की चोट हुई है
- गवाहों के नाम
पुलिस जाँच:
- मेडिकल परीक्षण कराया जाता है।
- डॉक्टर की रिपोर्ट कोर्ट में सबूत के रूप में प्रस्तुत होती है।
- चश्मदीद गवाहों के बयान लिए जाते हैं।
न्यायालय में कार्यवाही:
- पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल करने के बाद मामला कोर्ट में जाता है।
- अभियोजन पक्ष (Prosecution) गवाह प्रस्तुत करता है।
- बचाव पक्ष (Defence) अपना पक्ष रखता है।
मेडिकल रिपोर्ट इस पूरे मुकदमे में बहुत अहम होती है, क्योंकि यह साबित करती है कि चोट कितनी गंभीर थी।
सज़ा का निर्णय:
- कोर्ट यदि दोष सिद्ध कर देता है, तो आरोपी को BNS धारा 117(2) के तहत सज़ा सुनाई जाती है।
- सज़ा की अवधि, जुर्माने की राशि और किसी तरह की रियायत अदालत के विवेक पर निर्भर करती है।
गम्भीर चोट पहुँचाने के आरोप से बचने के उपाय
अगर आप पर BNS की धारा 117(2) के तहत आरोप लगाया गया है, तो कुछ वैध बचाव हो सकते हैं:
- आत्मरक्षा: यदि आरोपी ने खुद को या अपने परिवार को बचाने के लिए चोट पहुँचाई हो।
- दुर्घटनावश चोट: यदि चोट जानबूझकर नहीं, बल्कि दुर्घटनावश हुई हो।
- इरादे की कमी: यदि चोट पहुँचाने का उद्देश्य नहीं था और यह झगड़े में अचानक हुआ।
- साक्ष्यों की कमी: मेडिकल रिपोर्ट में गंभीर चोट का उल्लेख नहीं हो। चश्मदीद गवाह न हों या बयान विरोधाभासी हों।
- बचाव के लिए जरूरी दस्तावेज़: मेडिकल रिपोर्ट, गवाहों के बयान और घटना के समय की लोकेशन प्रूफ (जैसे मोबाइल लोकेशन, वीडियो रिकॉर्डिंग)
गम्भीर चोट पहुँचाने से संबंधित अन्य कानूनी प्रावधान
धारा 117(2) के अलावा BNS में अन्य धाराएं भी चोट से जुड़ी हैं:
धारा (BNS) | विवरण | सज़ा |
115(2) | सामान्य चोट पहुँचाना | 1 वर्ष तक की जेल या जुर्माना या दोनों |
118(1) | खतरनाक हथियार से चोट पहुँचाना | 3 वर्ष तक की जेल, जुर्माना या दोनों |
118(2) | खतरनाक हथियार से गंभीर चोट पहुँचाना | 10 वर्ष तक की जेल या आजीवन कारावास और जुर्माना |
निष्कर्ष
BNS की धारा 117(2) एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है, जो जानबूझकर गंभीर चोट पहुँचाने के मामलों में लागू होती है। यह धारा न केवल सज़ा निर्धारित करती है, बल्कि पीड़ितों को न्याय भी दिलाती है। यदि आप ऐसे किसी मामले में शामिल हैं, चाहे आरोपी हों या पीड़ित तो एक अनुभवी वकील से सलाह लेना बहुत जरूरी है।
कानूनी अधिकारों की सही जानकारी और समय पर कार्यवाही ही न्याय दिला सकती है।
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FAQs
1. क्या बिना हथियार के दी गई चोट पर भी BNS धारा 117(2) लग सकती है?
हाँ, यदि चोट इतनी गंभीर है कि उससे हड्डी टूट जाए, शरीर पर स्थायी असर हो या जान को खतरा हो, तो बिना हथियार के भी यह धारा लागू हो सकती है।
2. क्या इस धारा के तहत FIR दर्ज कराना जरूरी है?
जी हाँ, गंभीर चोट के मामलों में सबसे पहले नजदीकी पुलिस स्टेशन में जाकर FIR दर्ज करानी चाहिए, ताकि कानूनी प्रक्रिया शुरू हो सके।
3. क्या BNS 117(2) में जमानत मिल सकती है?
हाँ, यह जमानती अपराध है, लेकिन जमानत मिलना घटना की गंभीरता और सबूतों पर निर्भर करता है।
4. अगर चोट गलती से लगी हो तो क्या सज़ा नहीं होगी?
अगर आप साबित कर दें कि चोट जानबूझकर नहीं लगी, बल्कि हादसे में लगी है या आत्मरक्षा में थी, तो कोर्ट आपको बरी कर सकता है।