मुक्ति v यूपी राज्य के केस में फाइल की गयी एक क्रिमिनल रिविज़न से डील करने के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्शन 125 सीआरपीसी सामाजिक न्याय और स्पेशली बच्चों, महिलाएं और बूढ़े माता-पिता की सुरक्षा के लिए लाया गया है। कोर्ट ने आगे कहा कि यह सेक्शन आर्टिकल 15(3) के अंतर्गत आता है और भारतीय संविधान के आर्टिक्ल 39 द्वारा प्रबलित।रिइंफोरस किया गया है।
जज शेखर कुमार यादव ने कहा कि यह प्रोविजन एक व्यक्ति के अपने पेरेंट्स, वाइफ और बच्चों की देखभाल करने के नेचुरल और मौलिक कर्तव्य को बताता है अगर वह खुद अपनेआप को बनाये रखने में असमर्थ हैं।
मुक्ति द्वारा अलीगढ़ फैमिली कोर्ट के एक आर्डर के अगेंस्ट क्रिमिनल केस फाइल की गयी थी, जहां उन्हें हर महीने मेंटेनेंस के रूप में 3000 रुपये अपनी वाइफ को और एप्लीकेशन फाइल करने की तारीख से 2000 रुपये महीना अपने बेटे को देने का आर्डर दिया गया था।
पिटीशनर ने कोर्ट के सामने तर्क दिया कि वह पैसे देने में असमर्थ है, जिसके लिए उसे कुछ और समय की जरूरत है। साथ ही वाइफ बिना वजह के अपने पेरेंट्स के घर रह रही है।
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कोर्ट ने देखा कि वाइफ अपने मेंटेनेंस में सक्षम नहीं थी और उसके हस्बैंड ने उसे छोड़ने के लिए कहा क्योंकि वह उसकी दहेज की मांगों को पूरा नहीं कर सकती थी।
कोर्ट ने पाया कि फैमिली कोर्ट का फैसला सही था, हालांकि हस्बैंड को फाइनेंसियल कंडीशन को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिटीशन खारिज करते हुए तीन महीने के अंदर बराबर अमाउंट की तीन किश्तों में मेंटेंनेस की बकाया अमाउंट जमा करने की अनुमति दी थी।
सेक्शन 125 सीआरपीसी-
सीआरपीसी के सेक्शन 125 के तहत वाइफ जो खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं उसके लिए मेंटेनेंस का प्रोविज़न है। हालांकि, प्रोविज़न में एक एक्सेप्शन यह है कि रेस्पोंडेंट इस तरह का मेंटेनेंस देने में सक्षम होना चाहिए। साथ ही, वाइफ अडल्ट्री में नहीं रही होनी चाहिए या बिना वैलिड रीज़न के हस्बैंड से अलग नहीं रह रही होनी चाहिए।
सविताबेन सोमभाई भाटिया v गुजरात राज्य में, कोर्ट द्वारा यह फैसला लिया गया कि वाइफ के हित में क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सेक्शन 125 लागू किया गया था, सेक्शन 125(1)(ए) के तहत प्रॉफिट लेने के लिए उसे यह साबित करना होगा कि वह संबंधित व्यक्ति की वाइफ है।
वाइफ निम्नलिखित सिचुऎशन्स में सीआरपीसी के सेक्शन 125 के तहत मेंटेनेंस की हकदार नहीं है-
- अगर वह अडल्ट्री कर रही है
- अगर वह बिना किसी वैलिड रीज़न के हस्बैंड के साथ रहने से मना करती है
- अगर वे आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं।
सीआरपीसी के सेक्शन 125 के तहत, कोर्ट इंटरिम मेंटेनेंस देने का आर्डर भी दे सकती है, जब कार्यवाही कोर्ट में पेंडिंग हो।
सेक्शन 125 सीआरपीसी का उद्देश्य के. विमल v के. वीरास्वामी के केस में समझाया गया था, कोर्ट द्वारा देखा गया कि यह सेक्शन सामाजिक उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए बनाया गया था। इस केस में यह कहा गया कि अगर वाइफ एक वाइफ की तरह ही रहती है और हस्बैंड ने अलग होने से पहले सालों तक उसके साथ वाइफ की तरह ही बिहेव किया है, तो वाइफ को हस्बैंड द्वारा मेंटेनेंस से मना नहीं किया जा सकता है।
आरिफ v शाजिदा के केस में लोअर कोर्ट के एक फैसले के अगेंस्ट पिटीशनर द्वारा सेक्शन 397 और 401 के तहत रिव्यु के लिए एक एप्लीकेशन फाइल की गयी थी, जहां उसे अपनी वाइफ के मेंटेनेंस के लिए 3000 रुपये देने के लिए कहा गया था। हस्बैंड द्वारा यह तर्क दिया गया कि उसकी वाइफ ने बिना किसी वैलिड रीज़न के उसे छोड़ दिया था। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने पुनरीक्षण/रिविज़न के लिए एप्लीकेशन की अनुमति दी।
सेक्शन 125 के तहत मेंटेनेंस के लिए जरूरी शर्तों को सम्मरायज़ किया जा सकता है-
- हस्बैंड के पास मेंटेंनेस के लिए पर्याप्त साधन होने चाहिए
- हस्बैंड ने वाइफ को मेंटेनेंस देने के लिए मना किया हो
- मेंटेनेंस का दावा करने वाला व्यक्ति अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ होना चाहिए
यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सेक्शन 125 उन डिपेंडेंट लोगों के लिए प्रोविज़न करता है जिनके पास खुद को बनाए रखने के लिए साधन और संसाधन नहीं हैं। केस के फैक्ट्स हर मैटर में अलग-अलग होते हैं और कोर्ट ने तदनुसार फैसला किया।
लीड इंडिया एक्सपीरिएंस्ड लॉयर्स प्रदान करता है जो फैमिली लॉ, क्रिमिनल केसिस, डाइवोर्स, मेंटेनेंस आदि से रिलेटिड मैटर्स को सॉल्व करते हैं। इन मैटर्स से रिलेटिड लीगल हेल्प और मार्गदर्शन भी प्रदान किया जाता है।