पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने माता-पिता के बेटे को मकान से बेदखल रखने के फैसले को कायम रखते हुए कहा कि बेटा मकान में पैसा लगाने के नाम पर मकान पर अपना हक़ नहीं जमा सकता।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में एक बेटे ने अपने माता-पिता के खिलाफ याचिका दी थी कि उसने उस मकान में ग्राउंड फ्लोर के निर्माण में पैसा लगाया था। लेकिन हाईकोर्ट ने वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 ((Maintenance and Welfare of Parents and Senior Citizens Act, 2007) के तहत बेटे की मकान में बेदखली को कायम रखा।
कोर्ट ने इस मामले में मार्मिक टिप्पणी भी की। कोर्ट ने कहा जब संतान अपने माता-पिता को भाग्य भरोसे छोड़ देती है और अपनी ताकत का इस्तेमाल उन्हें परेशान करने में लगाती हैं तो उनकी दुनिया बिखर जाती है।
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गौरतलब है कि एक पिता ने डीएम कुरूक्षेत्र के पास एप्लेकेशन दी थी कि उनके बेटे बहू उन्हें प्रताड़ित करते हैं और उनकी सम्पत्ती को हथियाना चाहते हैं।
इस पर 17 जुलाई, 2019 डीएम, कुरुक्षेत्र ने एक आदेश पारित करते हुए बेटे बहू को बेदखल कर दिया। इसके खिलाफ बेटा बहू हाई कोर्ट पहुँच गए।
लेकिन यहाँ हाईकोर्ट ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरणपोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 23 के तहत कहा कि यदि कोइ वरिष्ट नागरिक इस वादे के साथ अपनी सम्पत्ती किसी के नाम करता है कि वो बुढ़ापे में उसके देखभाल करेगा और ऐसा नहीं होता है तो वो अपनी सम्पत्ती वापस ले सकता है।
माता-पिता और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 23 के मुताबिक़ यदि कोइ व्यक्ति इस वादे के साथ दी गयी सम्पत्ती को वापस लेना चाहता है तो वो संपत्ति का हस्तांतरण धोखाधड़ी, जबरदस्ती या गलत या तरीके से लेना बताकर सम्पत्ती हस्तांतरण को शून्य घोषित करवा सकता है।
आइये जानते हैं क्या कहता है कानून
यह कानून भारत सरकार द्वारा 2007 में लागू किया गया। इसके तहत कुछ परिभाषाए और नियम दिए गए हैं, जिसमे कहा गया है कि माता पिता और वरिष्ठ नागरिक के भरण पोषण की जिम्मेदारी उनकी संतान की होगी।
संतान
संतान में 18 वर्ष से अधिक के पुत्र-पुत्री और पोते-पोती आते हैं जो बालिग़ हैं।
भरण पोषण
इस क़ानून के मुताबिक़ भरण पोषण के अंतर्गत आहार, निवास, चिकित्सा और उपचार आदि शामिल होते हैं।
माता-पिता
इसमे जैविक माता-पिता यानि जन्म देने वाले, सौतेला या दत्तक (गोद लेने वाले) के रूप में ग्रहण करने वाले माता-पिता आते हैं चाहे वो वरिष्ठ नागरिक हो या ना हों इस कानून के दायरे में आते हैं।
संपत्ति
इसमे चल-अचल, पैतृक या स्व अर्जित (यानि खुद कमाई गयी) संपत्ति, मूर्त या अमूर्त संपत्ति शामिल है।
नातेदार
इसमे संतानहीन माता-पिता, और वरिष्ठ नागरिक के कानूनी वारिस आते हैं जो उसकी सम्पत्ती पर उसकी मृत्यु के बाद कानूनी या वसीयत के आधार पर संपत्ति के अधिकारी बनेंगे।
वरिष्ठ नागरिक
कोइ भी ऐसा व्यक्ति जो भारत का नागरिक है और 60 या उससे अधिक आयु का है।
कल्याण
इसमे वरिष्ठ नागरिकों के लिए बुनियादी सुविधाएं जिसमे भोजन, आवास, स्वास्थ्य, मनोरंजन, तथा अन्य जरूरी आवश्यकताएं शामिल हैं।
मुख्य बिंदु
इस कानून के मुताबिक़ यदि कोइ संतान या नातेदार व्यस्क है और सक्षम है उसे अपने माता-पिता का भरण-पोषण करना अनिवार्य होगा। खासतौर से ऐसे संतान के लिए जो माता-पिता की सम्पत्ती के वारिस हैं।
आवेदन
यदि कोइ माता-पिता अपनी संतान से भरण पोषण का कानूनी अधिकार चाहते हैं तो वो वरिष्ठ नागरिक अधिनियम यानि माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007 की धारा 4 के तहत डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास आवेदन कर सकते हैं।