सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाल ही में यह फैसला लिया गया था कि घर में काम करने वाला कोई भी नौकर, सेवक या केयर टेकर, मालिक द्वारा यूज़ करने के लिए दी गई प्रॉपर्टी में किसी तरह का इंटरेस्ट/ब्याज नहीं ले सकता, भले ही वह बहुत लम्बे समय से प्रॉपर्टी उसके कब्जे में हो क्योंकि वह मालिक की तरफ से केवल एक एजेंट के रूप में प्रॉपर्टी अपने पास रखता है।
केस के फैक्ट्स:
एमडी जाहिद ने रेस्पोंडेंट के अगेंस्ट एक केस फाइल किया था, जिसने क्लेम किया कि वह उस प्रॉपर्टी का केयर टेकर है और यह प्रॉपर्टी उसे मिर्ज़ा हबीबुल्लाह खलीली ने अपने पर्सनल यूज़ करने के लिए हैंडओवर की थी।
एमडी जाहिद द्वारा यह क्लेम किया गया कि उसके शांतिपूर्ण कब्जे को रेस्पोंडेंट और उनके एजेंटों द्वारा धमकी दी गई थी।
रेस्पोंडेंट ने ट्रायल कोर्ट में सिविल प्रोसीजर कोड के आर्डर VII के रूल 11 के तहत एक एप्लीकेशन फाइल की थी। एप्लीकेशन के अनुसार, जाहिद(केयर टेकर) का प्रॉपर्टी पर लंबे समय तक कब्ज़ा होने के बावजूद भी वह उस प्रॉपर्टी में किसी तरह का इंटरस्ट लेने का हकदार नहीं है। ट्रायल कोर्ट ने एप्लीकेशन रद्द कर दी। ट्रायल कोर्ट के बाद सेम पिटीशन हाई कोर्ट में डाली गयी लेकिन हाईकोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
जब यह केस सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसने केयर टेकर द्वारा फाइल किये गए केस के अगेंस्ट मालिक की एप्लीकेशन को खारिज कर दिया था कि उसे प्रॉपर्टी से बेदखल नहीं किया जाना चाहिए।
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जजमेंट:
जस्टिस अजय रस्तोगी और अभय एस की बेंच ने कहा कि, “हमने दोनों पार्टीज के लॉयर्स को सुनने के बाद और रिकॉर्ड के सारे मटीरियल को ऑब्ज़र्व किया है। ऑब्ज़र्वेशन के बाद हमारे विचार से ट्रायल कोर्ट ने रिकॉर्ड पर पिटीशन को सही करार देकर साफ़-साफ़ एक गलती की है। रेस्पोंडेंट 1 के कहने पर यह दायर किया गया है, जो एक कार्यवाहक/नौकर के रूप में अपने लंबे कब्जे के बावजूद संपत्ति में कभी भी ब्याज अर्जित नहीं कर सकता है और कार्यवाहक/सेवक को मांग पर और जहां तक प्रतिकूल कब्जे की दलील है, तुरंत कब्जा देना होगा। इसका संबंध है क्योंकि इसमें भौतिक विवरणों का अभाव है और वाद में वाद को संस्थित करने के लिए कार्रवाई के कारण का खुलासा नहीं किया गया है।”
कोर्ट ने पाया कि ऐसे कई उदाहरण पाए गए हैं जहां व्यक्तियों को घर में रहने की अनुमति दी गई थी और मालिकों को सूट में घसीटा गया था।
न्यायालय द्वारा यह देखा गया था कि कार्यवाहक को संपत्ति पर कब्जा जारी रखने की अनुमति देना उचित नहीं था जबकि मालिक को अपनी संपत्ति पर कब्जा करने की अनुमति नहीं थी।
कोर्ट ने प्रतिवादी को तीन महीने के भीतर संपत्ति का कब्जा मालिक को सौंपने का आदेश दिया। लीड इंडिया अनुभवी वकीलों का एक विस्तृत पूल प्रदान करता है, जिनके पास संपत्ति के मुद्दों से जुड़े मामलों से निपटने का लंबा अनुभव है, जैसे कि कब्जे के मामले, विभाजन, संपत्ति की बिक्री, आदि।