स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये भी शादी हो सकती है रजिस्टर्ड- सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने वालों को बड़ी राहत दी है। गौरतलब है कि कोविड प्रोटोकॉल के कारण मुकदमों की सुनवाई वीडियो कोंफेरेंसिंग के माध्यम से हो रही हैं। ऐसे में बहुत से मुकदमो का भी निपटारा ऑनलाइन हुआ।

लेकिन पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत कांफ्रेंसिंग के 6जरीये हुई शादी को चुनौती दी गयी थी।  लेकिन जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया।   

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दरअसल एमी रंजन और मीशा वर्मा ने घरवालों की सहमती से 17 दिसंबर, 2019 में शादी थी। मीशा वर्मा अमेरिका में रेजिडेंट डॉक्टर हैं। इसके बाद उनकी पत्नी अमेरिका में अपने काम पर लौट गईं।  लेकिन जब अमी रंजन को वीजा आदि के लिए अपने विवाह के पंजीकरण की जरूरत पडी। इसके लिए उन्होंने मैरिज रजिस्ट्रार के यहाँ आवेदन किया। लेकिन 2020 में लॉक डाउन लग फया। जिसके कारण पंजीकरण नहीं हो सका क्योंकि उनकी पत्नी मीशा भारत नहीं आ सकी। मैरिज रजिस्ट्रार ने पाया कि कपल या पति-पत्नी के उपस्थित हुए बिना शादी के पंजीकरण का स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 में कोइ प्रावधान नहीं है। अत: विवाह अधिकारी वीडियो कोंफ्रेंसिंग से उपस्थति से इनकार कर दिया। अत: उनकी शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सका। इसके चलते कपल का काफी कठिनाई हो रही थी। इसके बाद याची यानी अमी रंजन ने हाईकोर्ट की डिविजन बैंच में अपील की। हाई कोर्ट ने पाया कि वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से पत्नी की ऑनलाइन उपस्थिति को माना जा सकता है। गौरतलब हिया कि स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 15 और 16 के अंतर्गत विवाह अधिकारी द्वारा सभी तथ्यों की जांच करके विवाह पंजीकरण प्रमाणपत्र जारी करता है, जो स्पेशल मैरिज एक्ट की धारा 47 के तहत स्पाउज़ वीजा आदि के काम आता है।

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जब मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तब फैसला अमि रंजन और मीशा वर्मा के पक्ष में आया। इस मामले में न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमण्यम की पीठ ने टिप्पणी करते हुआ कहा कि अदालतों को भी अब तकनीक के सहारे आगे बढ़ना चाहिए। पीठ ने कहा कि विशेष विवाह अधिनियम 1954 में बना था उस वक्त ना तो तकनीकी विकास हुआ था ना ही कम्प्यूटर और इन्टरनेट की सुविधा आई थी। इसलिए अब कानून को प्रोद्योगिकी के साथ आगे बढ़ना है। इसमें कठिनाई है लेकिन कानून इतना कठोर नहीं हो सकता कि वो पक्षकारों के हित को अनदेखा कर दे। साथ ही अदालत ने कहा कि विवाह रजिस्ट्रेशन की प्रोसेस की जा सकती है और यह मैरिज सर्टिफिकेट हर लिहाज से वैध होगा।

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