अब मुस्लिम महिलाओं के पास भी खुला के रूप में डाइवोर्स देने का अधिकार है?

तलाक-ए-हसन इतना गलत नहीं है, महिलाओं के पास भी खुला के रूप में एक ऑप्शन है।

हाल ही में, जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदर की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि “प्राइमा फेशिया तलाक-ए-हसन इतना भी गलत नहीं है, महिलाओं के पास भी ‘खुला’ के रूप में एक ऑप्शन है। 

इस्लाम के तहत प्रचलित तलाक-ए-हसन में, एक हस्बैंड अपनी वाइफ को तीन महीने तक हर महीने एक बार “तलाक” बोल कर तलाक दे सकता है, जैसा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई ऑब्जरवेशन के अनुसार प्राइमा फेशिया गलत नहीं है और इसे एक नया एजेंडा नहीं बनाना चाहिए।

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फैक्ट्स –

  • एक मुस्लिम महिला ने एक रिट पिटीशन फाइल की कि “तलाक-ए-हसन और अन्य सभी प्रकार के एकतरफा अतिरिक्त-न्यायिक तलाक” इनवैलिड हैं क्योंकि वे शालीन, अनुचित और संविधान के आर्टिकल 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन करते हैं। .
  • तलाक-ए-हसन के तहत एक मुस्लिम हस्बैंड अपनी वाइफ को लगातार तीन महीने तक, हर महीने एक बार ‘तलाक’ कहकर तलाक दे सकता है।
  • पिटीशनर के सीनियर अधिवक्ता ने दलील दी कि हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तालक को असंवैधानिक/इललीगल घोषित कर दिया था लेकिन तलाक-ए-हसन के मटर पर कोई फैसला नहीं लिया गया था। 
  • पिटीशन की सुनवाई के दौरान, पिटीशनर को बताया गया कि महिलाओं को भी ‘खुला’ के रूप में एक बराबर तरह का अधिकार दिया गया है, साथ ही कोर्ट्स आपसी सहमति से डाइवोर्स भी देती हैं, अगर शादी का टूटना तय है। कोर्ट ने पिटीशनर से पूछा कि क्या वह मेहर लेने के बाद उस ऑप्शन के बारे में जानने के लिए रेडी है। 
  • पत्रकार/जर्नलिस्ट बेनज़ीर हीना ने एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड अश्वनी कुमार दुबे के डरा केस फाइल कराया था। पिटीशनर द्वारा यह आरोप लगाया गया था कि उसके हस्बैंड ने उसे पहला डाइवोर्स 19 अप्रैल को स्पीड पोस्ट के द्वारा और अन्य दो पोस्ट उसके बाद के महीनों में भेजे थे। 
  • उसे कोर्ट ने बताया कि खुला, आपसी सहमति से डाइवोर्स, मुबारत के रूप में उसे भी डाइवोर्स के ऑप्शन्स मिले है। 
  • दलील में तर्क दिया गया था कि तलाक-ए-हसन और एकतरफा डाइवोर्स के अन्य रूपों की प्रथा एक व्यक्ति के अधिकारों और जेंडर इक्वलिटी के सिद्धांतों के हिसाब से भी सही नहीं है और ना ही यह इस्लामी आस्था का कोई अभिन्न अंग है।
  • यह भी तर्क दिया गया कि कई इस्लामी देशों ने इस तरह की प्रथा को बैन कर दिया है, जबकि भारत में यह प्रथायें अभी भी भारतीय मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को एफेक्ट करती है। साथ ही, डाइवोर्स के इन एकतरफा मनमाने फैसलों की वजह से कई महिलाओं साथ-साथ बच्चों का जीवन भी एफेक्ट होता है।
  • पिटीशन के माध्यम से, केंद्र सरकार से सभी नागरिकों के लिए डाइवोर्स लेने के सेम ग्राउंड्स और दोनों जेंडर्स के लिए डाइवोर्स लेने की सेम प्रोसेस के लिए भी इंस्ट्रक्शंस रेडी करने का भी आग्रह किया गया था।
  • बेंच ने अगली सुनवाई 29 अगस्त तक के लिए तय की थी और पिटीशनर के लॉयर को मैटर में निर्देश लेने के लिए कहा गया था।
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मुस्लिम कानून के तहत खुला –

  • कानून के सामने खुला का शाब्दिक अर्थ ‘समर्पित करना’ है। हस्बैंड अपनी वाइफ को डाइवोर्स देने का अधिकार देता है।
  • खुला दोनों पार्टनर्स का आपसी सहमति से तलाक है, जहां वाइफ द्वारा डाइवोर्स की कार्यवाही शुरू की जाती है, जहां वह अपने हस्बैंड को कुछ विचार देने के लिए सहमत होती है।
  • इस प्रकार, बेसिकली यह शादी के रिश्ते से “छुटकारा” है।
  • [मूनशी-बुजलु-उल-रहीम बनाम लतीफुटूनिसा (8 एमआईए 395, 399)] के केस में इसे सही तरीके से डिफाइन किया गया है, क्योंकि खुला सहमति से किया गया और वाइफ के कहने पर किया गया एक डाइवोर्स है। इसमें वाइफ शादी खत्म करने के लिए अपने हस्बैंड को मुआवज़े के रूप में कुछ देने के लिए सहमत होती है। 

मुस्लिम कानून के तहत मुबारत – 

  • इस पद्धति के तहत अगर हस्बैंड और वाइफ अब एक ही छत के नीचे रहने के लिए तैयार नहीं हैं और अपनी शादी को ख़त्म करके जल्द से जल्द अलग होना चाहते हैं, तो हस्बैंड या वाइफ दोनों में से कोई भी दूसरे पार्टनर को प्रस्ताव दे सकता है। साथ ही, दूसरे पार्टनर को डाइवोर्स के प्रस्ताव को एक्सेप्ट करना होगा।

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