महिलाओं के टॉप 10 अधिकार

महिलाओं के टॉप 10 अधिकार।

भारत में महिलाओं को हमेशा ही पुरुषों से कम आँका गया है। महिलाओं के मान-सम्मान की रक्षा करने के लिए कई सारे कानून और प्रावधान भी बनाये गए है। लेकिन इनके बावजूद भी भारत की महिलाओं की स्थिति में कोई ख़ास सुधार नहीं आया है। महिलाओं की इस स्तिथि की एक वजह ये भी है की उन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता ही नहीं है। संविधान, भारतीय सरकार और समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स ने महिलाओं को उनके हक दिलाने के लिए बहुत से नियम और कानून बनाए हैं। महिलाओं की रक्षा के लिए उन्हें आर्थिक और सामाजिक तौर पर कई अधिकार दिए गए हैं। ताकी महिलाओं को सशक्त किया जा सके। आज हम ऐसे ही 10 अधिकारों के बारे में बताएंगे।

महिलाओं के संपत्ति/उत्‍तराधिकार से जुड़े अधिकार:

(1) पिता की संपत्ति पर बेटी का हक़:- 

सुप्रीम कोर्ट, हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 2005 और हिंदू अनडिवाइडेड फैमिली (HUF) के तहत, पिता जिंदा हों या नहीं, पिता की प्रॉपर्टी पर बेटा और बेटी दोनों का समान अधिकार है। अब बेटी की शादी के बाद भी बेटी का पिता की प्रॉपर्टी पर अधिकार रहता है।

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(2) कंपनसेशन पर बेटियों को भी नौकरी मिलेगी:- 

पिता की मृत्यु हो जाने के बाद बेटियों को भी कंपनसेशन पर नौकरी पाने का अधिकार है। बेटी मैरिड हो या अनमैरिड इस बात से फर्क नहीं पड़ता है। 2015 में,  लागू हुआ कि अगर नौकरी होते हुए पिता की मृत्यु हो जाती है, तो मैरिड बेटी भी कंपनसेशन के आधार पर पिता की नौकरी पाने का अधिकारी रखती है।

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(3) गुजारे भत्ते का अधिकार:-

सुप्रीम कोर्ट ने 4 नवंबर 2020 को गुजारा भत्ता और एलीमनी के लिए देश भर की सभी कोर्ट के लिए गाइडलाइंस जारी की थी। अगर कोई महिला अपने लिए गुजारे भत्ते की अर्जी दर्ज करती है, तो उसे बताना होगा कि उसके पास कितनी प्रॉपर्टी है और उस महिला का खर्च कितना है। साथ ही, महिला के हस्बैंड को अपनी प्रॉपर्टी की डिटेल्स और देनदारी का ब्यौरा देना होगा। जिस दिन से केस फाइल किया जाएगा, उसी दिन से गुजारे भत्ते की देनदारी होगी।

(4) बराबर वेतन का अधिकार:-

समान पारिश्रमिक अधिनियम के तहत, कभी भी लिंग के आधार पर सैलरी, भत्‍तों और भुगतान में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता है। किसी भी काम के लिए जितनी सैलरी मेल्स को मिलती है, उतनी ही सैलरी महिलाओं को भी लेने का अधिकार है।

(5) ससुराल की प्रताड़ना का केस मायके में हो सकता है दर्ज:-

अगर किसी वाइफ को उसके हस्बैंड या ससुराल वालों ने दहेज के लिए परेशान किया। तो वाइफ ससुराल को छोड़कर जहां भी जाकर रहती है या पनाह लेती है, वहां की कोर्ट में भी उसकी शिकायत पर सुनवाई की जा सकती है। इसके साथ, सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के अनुसार, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत वाइफ अपने हस्बैंड के घर में रहने की मांग कर सकती है, जहां वह पहले भी डोमेस्टिक रिलेशन में रह चुकी है।

(6) गिरफ्तारी, पूछताछ और कानूनी सहायता से जुड़े अधिकार:-

बहुत ज्यादा जरूरी ना हो, तो महिला को सूरज ढलने के बाद और सूरज उगने से पहले गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। महिलाओं को सिर्फ महिला कॉन्‍स्‍टेबल ही गिरफ्तार कर सकती है। महिला को बिना कानूनी इजाज़त के रात के समय पुलिस स्टेशन में हिरासत में नहीं रख सकते है। बलात्‍कार पीड़िताओं के लिए मुफ्त कानूनी सहायता दी गई है।

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(7) स्‍टाकिंग से सुरक्षा का अधिकार:-

आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013 के तहत स्‍टाकिंग करने पर जेल हो सकती है। किसी भी महिला का पीछा करना या बिना महिला की मर्जी के उससे संपर्क बनाने की कोशिश करना, महिला के मना करने पर भी उसे बात करने के लिए फोर्स करना जुर्म है। ऐसा करने पर पुलिस उस व्यक्ति के खिलाफ कानूनी ऐक्‍शन ले सकती है। इस बात पर नजर रखना की कोई महिला इंटरनेट पर क्‍या करती है, ये भी स्‍टाकिंग के दायरे में आता है।

(8) पहचान जाहिर न करने का अधिकार:-

सेक्सुअल एब्यूज़ की शिकार पीड़िताएं अपनी पहचान छिपा सकती है। ताकि समाज में पीड़िताओं को परेशानी ना हो। अगर किसी भी सेक्सुअल एब्यूज की शिकार पीड़‍िता की पहचान उसकी मर्जी के बिना प्रकाशित की गयी, तो ऐसा करने वाले को दो साल तक की जेल की सज़ा और जुर्माना हो सकता है।

(9) महिलाएं कहीं भी FIR करा सकती है:-

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, कोई भी पीड़िता किसी भी एरिया के पुलिस स्टेशन में अपनी FIR दर्ज करा सकती हैं। इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वह घटना किस पुलिस स्टेशन के एरिया में हुई है। एफआईआर दर्ज होने और मजिस्‍ट्रेट के सामने चेक रिपोर्ट सबमिट होने के बाद, एफआईआर को संबंधित पुलिस स्टेशन में मूव किया जा सकता है। अगर महिलायें खुद पुलिस स्टेशन जाने में सक्षम नहीं है, तो अब वह ईमेल या पत्र के जरिए भी अपनी एफआईआर दर्ज करवा सकती हैं।

(10) यौन शोषण से रक्षा का अधिकार:-

अगर महिला के साथ उसके वर्कप्लेस पर यौन शोषण हुआ है, तो वह यौन शोषण अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज करा सकती है। साथ ही, जिस कंपनी में महिला के शोषण किया गया है, उस कम्पनी की “आंतरिक POSH कमिटी” को 3 महीने के अंदर सारी छान-बीन करके फैसला करना होता है। इसके बाद जिला स्‍तर पर “स्‍थानीय शिकायत कमिटी” के सामने भी महिला अपनी शिकायत दर्ज कर सकती है। अगर इस केस पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है, तो कंपनी के खिलाफ सख्त ऐक्‍शन लिया जा सकता है।

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