तीन तलाक भारत में गैरकानूनी है।

तीन तलाक भारत में गैरकानूनी है।

तलाक! तलाक! तलाक!

आपने फिल्मों में सुना और देखा होगा कि कैसे मुस्लिम हस्बैंड तीन बार तलाक कहकर अपनी वाइफ को तलाक दे देते है और तुरंत उन्हें छोड़ देते है। इस सिचुएशन में वाइफ अपनी शादी को बचाने के लिए कोई उपाय ना होने पर बेसहारा रह जाती है। आज इस ब्लॉग में हम इसी से सम्बंधित बात करने वाले है। इसमें हम जानेंगे कि ट्रिपल तलाक क्या है और कैसे यह असंवैधानिक या गैरकानूनी है। आपको यह भी पता चलेगा कि तीन तलाक बिल पास होने से भारतीय मुस्लिम महिलाओं को किस तरह मदद मिली है।

तीन तलाक क्या है?

मुस्लिम धर्म में हस्बैंड दो तरीकों से अपनी शादी तोड़ सकता है। सबसे पहले, तलाक-ए-सुन्नत मुस्लिम शादी को तोड़ने का एक पारंपरिक रूप है और इसे आगे तलाक-ए-अहसान और तलाक-ए-हसन में बांटा गया है। दूसरी तरफ, तलाक-ए-बिद्दत है जिसे तीन तलाक के नाम से भी जाना जाता है। तीन तलाक एक ऐसी प्रोसेस है, जिसमें हस्बैंड तीन बार ‘तलाक’ बोलकर अपनी वाइफ को डाइवोर्स दे सकता है। मुस्लिम हस्बैंड द्वारा अपनी वाइफ को तीन बार तलाक बोलते ही मुस्लिम धर्म में वह कपल डाइवोर्सी माने जाते है। साथ ही, इस डाइवोर्स के प्रभाव को बदला नहीं जा सकता है। तीन तलाक का यूज़ सिर्फ़ हस्बैंड अपनी वाइफ को डाइवोर्स देने के लिए कर सकते है। लेकिन, वाइफ अपने हस्बैंड को तीन तलाक नहीं दे सकती है। 

तीन तलाक बिल को मुस्लिम महिला बिल (शादी पर अधिकारों का संरक्षण) के रूप में भी जाना जाता है। भारतीय संसद ने यह बिल 30 जुलाई 2019 को पास किया और भारत सरकार ने 1 अगस्त 2019 को इसे लागू किया, जिसके तहत मुस्लिम पुरुषों द्वारा अपनी वाइफ को तीन तालक देना कानूनी अपराध माना जाता है। 

तीन तलाक कानून लागू होने से पहले क्या होता था?

भले ही मुस्लिम पर्सनल लॉ में तीन तलाक का चलन सालों पुराना ही क्यों ना हो, लेकिन कुरान में इसका कोई जिक्र नहीं है। मुस्लिम लॉ में तीन तलाक को डाइवोर्स लेने का सबसे बुरा और पापपूर्ण रूप माना जाता है।

जैसा कि ऊपर भी बताया गया है, यह डाइवोर्स केवल मुस्लिम हस्बैंड यूज़ कर सकते है और वाइफ को यह पूछने का कोई अधिकार नहीं है कि हस्बैंड ने डाइवोर्स क्यों दिया है। हस्बैंड तीन तलाक देने की वजह बताने के लिए बाध्य नहीं है।

मुस्लिम हस्बैंड द्वारा तीन तलाक का दुरुपयोग किया गया है क्योंकि उन्हें ऐसा करने पर कोई स्पष्टीकरण/एक्सप्लनेशन नहीं देना पड़ता है। यहां तक ​​कि टेक्स्ट मैसेज पर तीन बार तलाक लिखने पर भी शादी खत्म हो जाती है। तीन तलाक बोलते ही इसका प्रभाव शुरू हो जाता है। इस प्रकार हस्बैंड बिना किसी वजह और एक्सप्लनेशन दिए तीन तलाक बोलकर इसका फायदा उठा लेते है। ऐसा करना खुलेआम मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन करना है और वाइफ की समानता और न्याय के खिलाफ माना जाता है। इस तरह के डाइवोर्स में मेंटेनेंस या गुज़ारे भत्ते की भी कोई गुंजाइश नहीं रहती है।

तीन तलाक की संवैधानिक वैधता:

सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में शायरा बानो v भारत संघ के केस में तीन तालक को असंवैधानिक/गैरकानूनी घोषित कर दिया था। केस यह था कि शायरा बानो ने तीन बातों को चुनौती देते हुए एक पिटीशन फाइल की थी। “तीन तलाक, निकाह हलाला और एक से ज्यादा शादी” इन तीन बातों को चुनौती दी गयी थी। निकाह हलाला का मतलब जहां एक कपल का डाइवोर्स हो चुका है, लेकिन वह फिर से आपस में शादी करना चाहते है। एक्स हस्बैंड से दोबारा शादी करने के लिए महिला को पहले किसी अन्य लड़के से शादी करनी होगी और उससे तलाक लेना होगा, उसके बाद फिर वह अपने पहले एक्स हस्बैंड से दोबारा शादी कर सकती है। मुस्लिम लॉ में पुरुषों को एक से ज्यादा शादी करने और 1 से ज्यादा वाइफ रखने की अनुमति है। 

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तीन तलाक को गैरकानूनी घोषित करने से पहले सुप्रीम कोर्ट ने कई जरूरी बातों का ध्यान रखा है। जैसे की तीन तलाक मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत डाइवोर्स लेने का एक तरीका है और सुप्रीम कोर्ट के पास धार्मिक मामले में ऐसे किसी भी पर्सनल लॉ के प्रावधान को चुनौती देने का कोई अधिकार नहीं है। हालांकि, तीन तलाक महिलाओं के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है और आर्टिकल 14 में कहा गया है कि ऐसा कोई भी प्रोविज़न जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो, सुप्रीम कोर्ट के पास उस प्रावधान को असंवैधानिक या गैरकानूनी घोषित करने की पावर है।

तीन तलाक की इस पापपूर्ण प्रथा को भारत के संविधान के आर्टिकल 14, 15 और 21 के तहत चुनौती दी गई थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने तीन तलाक को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत गलत और उल्लंघन के रूप में इसकी घोषणा की है। यह घोषणा श्रीमती सुमैला बनाम आकिल जमील के केस में जहां हस्बैंड ने तीन बार तलाक बोलकर अपनी वाइफ को तलाक दे दिया था।

कानूनी विकास:

सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल तालक को असंवैधानिक और अवैध घोषित करने के बावजूद भी ट्रिपल तालक के कई केसिस फाइल किए गए। इस वजह से केंद्र सरकार से तीन तलाक पर कानून बनाने को कहा गया। दिसंबर 2017 में, लोकसभा ने मुस्लिम बिल (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) नाम का एक बिल पास किया था।  हालांकि, बिल राज्यसभा में पास नहीं हुआ।

सितंबर 2018 में, कैबिनेट द्वारा एक आर्डिनेंस पास किया गया था, जिसमें तीन तलाक को एक अपराध माना गया था। जिस अपराध के लिए 3 साल की जेल के दंड का प्रोविज़न था।

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फाइनली जुलाई 2019 में, यह बिल राष्ट्रपति की सहमति के साथ लोकसभा और राज्यसभा दोनों में पास हो गया। मुस्लिम बिल (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) के लागू होने पर तीन तलाक एक अपराध बन गया है, जिसके लिए 3 साल की जेल हो सकती है।

निष्कर्ष:

समाज हमेशा से और शायद आज भी महिलाओं के साथ भेदभाव कर रहा है। एक महिला की एडवाइस, विश्वास, अधिकार, पसंद को कभी महत्व नहीं दिया गया और तीन तलाक इसी भेदभाव का एक उदाहरण है। लेखक की राय में डाइवोर्स एक व्यक्ति के जीवन के सबसे जरुरी फैसलों में से एक है। साथ ही, यह दोनों पार्टनर्स की लाइफ को सेम एफेक्ट करता है। इस प्रकार मुस्लिम पर्सनल लॉ में ऐतिहासिक बदलाव लाना जरूरी था। तीन तलाक देने को अपराध घोषित करने के साथ साथ सरकार द्वारा माइनॉरिटीज को सशक्त बनाने के लिए भी कदम उठाया गया।

कानून के लागू होने के बावजूद, अभी भी ट्रिपल तालक प्रचलित है। अगर आपके खिलाफ इस तरह का कोई काम किया जाता है, तो आप लीड इंडिया के बेस्ट लॉयर्स की मदद ले सकते हैं, जो इस तरह के आपराधिक व्यवहार के खिलाफ आपको सही न्याय दिलाएंगे। हम शादी, डाइवोर्स, क्रिमिनल केसिस, बेल मैटर्स आदि में स्पेशलाइजेशन रखने वाले लॉयर्स की एक लम्बी लिस्ट पेश करते हैं। लीड इंडिया के एक्सपीरियंस लॉयर्स ऑनलाइन लीगल एडवाइस भी देते हैं।

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