तलाक किसी भी शादीशुदा जोड़े के लिए किसी दुरास्वप्न से कम नहीं होता है। मगर तलाक अक्सर परिस्थिति जन्य ही होते हैं। शादीशुदा जीवन मे कुछ मामलों का बढ़ जाना कभी कभी तलाक की नौबत बन सकता है और कभी कभी यह आपसी सहमति के साथ ही एक अच्छे नोट पर लिया जाता है। सवाल ये है कि डायवोर्स कितने प्रकार का होता है? आइये जानते हैं कानून के अनुसार डायवोर्स कितने प्रकार का होता है।
भारत मे विवाह और तलाक के मामले व्यक्तिगत धर्म से सम्बंध रखते हैं। इस लिए हिंदुओ की बात आने पर इसे हिन्दू विवाह अधिनियम 1955, मुस्लिमों में इसे मुस्लिम विवाह विच्छेद अधिनियम 1939 और अन्य अंतरजातीय और सभी समुदायों के लिए विशेष विवाह अधिनियम 1956 द्वारा शाषित किया जाता है। आइये जानते हैं डायवोर्स कितने प्रकार का होता है।
मुख्यतः डायवोर्स दो प्रकार के होते हैं:
1. आपसी सहमति से तलाक
2. आपसी सहमति के बग़ैर तलाक या काँटेस्टेड तलाक
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आपसी सहमति से तलाक
इस तरह के डायवोर्स में जब पति और पत्नी दोनों ही तलाक के लिए राजी हों तो न्यायालय द्वारा तलाक की याचिका पर विचार किया जाता है। इसके लिए पति-पत्नी को संबंधित अधिनियम के अनुसार 1 वर्ष या दो वर्ष तक विलग रहने का भी प्रावधान है। इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि सिद्ध हो सके कि यह दम्पत्ति अलग अलग रहने में सक्षम है।
तलाक का यह प्रकार पेचीदा न होने और सस्ता होने की वजह से अक्सर उन दम्पतियों द्वारा भी इस्तेमाल किया जाता है जिनमें हो सकता है कि कोई एक व्यक्ति तलाक के प्रति अनिच्छा प्रदर्शित कर रहा हो। आपसी सहमति से लिये गए तलाक में सम्पत्ति का बंटवारा और साथ ही बच्चों की कस्टडी के मामले में भी दम्पत्ति पारस्परिक सहमत होते हैं।
आपसी सहमति से तलाक देते वक्त दंपति को तीन बातों का मुख्यतः ध्यान रखना होता है जिन पर विचार करने के बाद वे तलाक की याचिका दायर कर सकते हैं। वे तीन बातें हैं:
1. गुज़ारा भत्ता या मेंटेनेंस
2. बच्चों की कस्टडी (यदि हैं तो)
3. सम्पत्ति का विभाजन
न्यायालय के निर्णय के अनुसार आपसी सहमति से तलाक की अवधि छह महीने से 18 महीनों तक की होती है। हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 बी और स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 की धारा 28 दम्पति को तलाक से पूर्व कम से कम 1 वर्ष तक विलग रहने के लिए बाध्य करती हैं। यहाँ अलग अलग रहने का अर्थ अलग अलग जगह से न हो कर पति पत्नी के रूप में साथ न रहने से है।
कॉंटेस्टेड तलाक या बिना आपसी सहमति के तलाक
तलाक का यह प्रकार अक्सर विवादित मामलों में देखने को मिलता है। यह सभी धर्मों पर लागू भी नहीं होता। काँटेस्टेड तलाक के मामले में पति या पत्नी द्वारा बिना कारण बताए तलाक नहीं मांगा जा सकता। वे विशिष्ट कारण हैं:
- क्रूरता- पति या पत्नी द्वारा यदि एक दुसरे पर क्रूरता की गई हो।
- दूसरी स्त्री के साथ रहना- यदि पति या पत्नी द्वारा अपने जीवनसाथी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के साथ संबंध बनाए गए हों।
- अलग रहना- यदि पति पत्नी दो वर्ष की अवधि से ज़्यादा अलग रह रहे हों। यह नियम ईसाइयों पर लागू नहीं होगा।
- धर्म परिवर्तन- यदि पति या पत्नी में से किसी ने भी धर्म परिवर्तन कर लिया हो।
- मानसिक विकार- यदि पति या पत्नी में से कोई मानसिक विकार से ग्रसित हो।
- संक्रामक रोग- यदि पति पत्नी में से किसी एक को संक्रामक रोग हुआ हो। जैसे एच आई वी इत्यादि।
- विवाहित जीवन का त्याग- यदि पति या पत्नी में से किसी ने दाम्पत्य जीवन का त्याग कर दिया हो।
- मृत्यु का पूर्वानुमान- यदि पति या पत्नी की सात सालों तक कोई ख़बर न हो तो उन्हें मृत मान लिया जाएगा एवं तलाक के लिए अर्जी दाखिल की जा सकेगी।
यदि पति या पत्नी को लगता है कि इन आठों कारणों में से कोई कारण ऐसा है जिसकी वजह से उसका वैवाहिक जीवन अब सही नहीं रह सकता ऐसी स्थिति में पति या पत्नी द्वारा काँटेस्टेड तलाक की याचिका को न्यायालय के सामने पेश किया जा सकता है।