भारत में शादी करना एक बहुत एहम फैसला माना जाता है। इसे एक पवित्र बंधन समझा जाता है। साथ ही, इसे धूम-धाम से मनाया भी जाता है। हालाँकि, यह समझना जरूरी है कि जितनी धूम-धाम से शादी की जा रही है उतना ही जरूरी है उस शादी को कानून की नज़र में मान्य करना। एक शादी कानूनी रूप से तभी पूर्ण और मान्य समझी जाती है जब उसका रजिस्ट्रेशन करा दिया गया हो। भारत में अलग अलग धर्मों के लोगों की शादी को अलग-अलग धर्मों के मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर कराया जाता है। अलग-अलग धर्मों के अनुसार रजिस्ट्रेशन निम्नलिखित प्रकार से कराया जाता है –
हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन
एक सामाजिक शादी या आर्य समाज में की गयी शादी को अनुच्छेद (article) 8 के अनुसार शादी के दिन ही हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत कोर्ट में रजिस्टर कराया जा सकता है। सारे दस्तावेजों की जांच शादी के लिए प्रार्थना-पत्र देने के दिन पर ही कर ली जाती है। उसके बाद, भारत सरकार द्वारा नियुक्त किये गए मैरिज रजिस्ट्रार द्वारा कपल की शादी रजिस्टर कर दी जाती है।
स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन
स्पेशल मैरिज एक्ट की प्रक्रिया बाकि एक्ट के तहत थोड़ी लम्बी है। हम इस पूरी प्रक्रिया को 5 स्टेप्स से समझते है।
- सबसे पहले दोनों पार्टनर्स द्वारा अपने-अपने जिले के मैरिज ऑफ़िसर को सूचना दी जानी चाहिए। सूचना के साथ दोनों पार्टनर्स की उम्र और निवास स्थान का सबूत/प्रूफ देना होता है। इसके अलावा, दोनों पार्टनर्स में से किसी एक को सूचना देने की तारीख से लेकर अगले एक महीने तक उसी शहर में रहना जरूरी है जहां शादी की सूचना दी गयी है।
- मैरिज ऑफ़िसर कपल द्वारा दी गयी सूचना को प्रकाशित/पब्लिश करते हैं। फिर ऑफिस और जिला कार्यालय में इस सूचना को लगाया जाता है।
- इसके बाद मैरिज ऑफ़िसर द्वारा पब्लिश की गयी शादी की सूचना पर अगर कपल के किसी रिश्तेदार की आपत्ति दर्ज होती है तो उस आपत्ति की 30 दिनों के अंदर जांच की जाती है और अगर आयी हुई आपत्ति का आधार वैध होता है, तो उस कपल की शादी नहीं हो सकती है।
- अगर इस सूचना पर कोई आपत्ति नहीं आती है तो मैरिज ऑफ़िसर कपल को उनकी शादी के लिए एक तारीख और समय देता है।
- फिर शादी वाले दिन कपल को उपस्थित होना होता है और मैरिज अफसर के सामने दोनों पार्टनर्स, तीन गवाह और मैरिज ऑफ़िसर घोषणा पर साइन करते हैं। दोनों पार्टनर्स और तीन गवाहों के साइन हो जाने के बाद शादी को कानूनी रूप से सम्पन्न समझा जाता है।
- इसके बाद मैरिज ऑफ़िसर “मैरिज सर्टिफिकेट लेटर बुक” में कपल का प्रमाण पत्र दर्ज करता है। इस सर्टिफिकेट को कपल की कोर्ट मैरिज करने का सबूत मतलब उनकी शादी का मैरिज सर्टिफिकेट माना जाता है। यह मैरिज सर्टिफिकेट पूरे भारत और विदेशों में मान्य होता है।
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अलग धर्म में की जाने वाली शादी
भारत के लिए गर्व की बात है कि यहां अलग-अलग धर्म के लोग रहते है। यहाँ सभी व्यक्ति अपनी जाति, विचारधारा और संस्कृति से स्वतंत्र होकर शादी कर सकते है। कानूनी रूप से अलग धर्म में शादी करना गलत या गैर-कानूनी नहीं है। बशर्ते इसके लिए सभी जरूरतों को पूरा किया जाना चाहिए। भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 हमारे जीवन और स्वतंत्रता को सुरक्षा प्रदान करता है। और सभी को अपने हिसाब से रहने की स्वतंत्रता देता है। ऐसी शादियों का रजिस्ट्रेशन स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत किया जाता है।
विदेशी शादी
एक विदेशी नागरिक भी भारत में आकर शादी कर सकता है। अगर एक पार्टनर भारत के अलावा किसी अन्य देश का नागरिक है और एक पार्टनर भारत का नागरिक है तो ऐसे कपल की शादी स्पेशल मैरिज एक्ट-1954 या हिंदू मैरिज एक्ट-1955 के तहत कोर्ट से रजिस्टर कराई जा सकती है। इस शादी के लिए विदेशी पार्टनर को भारत में ‘निवासी विवाह पंजीकरण कार्यालय’ में शादी की सूचना देनी होती है।
मुस्लिम शादी
इस्लामी या मुस्लिम कानून में शादी या “निकाह” एक शुद्ध और बुनियादी समझौता/अग्रीमेंट होता है जिसके लिए एक संरचना या अनुष्ठान करने की कोई जरूरत नहीं होती है। निकाह में दूल्हा और दुल्हन के बीच शरीयत के अनुसार तीन से चार लोगों में दोनों की (दूल्हा और दुल्हन) अनुमति लेनी होती है। अनुमति के दौरान लड़का और लड़की शादी को अपनाते हुए ‘कुबूल है’ कहते हैं। इस दौरान निकाहनामा में लड़की की महर की रकम के साथ दोनों के साइन करवाए जाते हैं और निकाह पूरा हो जाता है। मुस्लिम लोग अपनी शादी का रजिस्ट्रेशन मुस्लिम मैरिज एक्ट के तहत करा सकते है।
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