विधि द्वारा एक व्यक्ति की प्रतिष्ठा को संरक्षित किया जाता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 11 के अनुसार जहां इंजरी को परिभाषित किया गया है वहाँ पर भी ” शरीर, दिमाग़, सम्पत्ति जैसे शब्दों के साथ ही रेप्यूटेशन यानि की इज़्ज़त की भी बात की गई है”। मानहानि को भारतीय दंड संहिता द्वारा धारा 499 के अंतर्गत एक दंडनीय अपराध घोषित किया गया है। यदि कोई व्यक्ति आपकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाता है तो ऐसी स्थिति में आप उस व्यक्ति पर मानहानि का मुकदमा दायर कर सकते हैं।
मानहानि का मुकदमा दायर करने के लिये पहले मानहानि के लिए अनिवार्यता क्या होती हैं कि समझ लेना चाहिए। आइये जानते हैं कि मानहानि के लिए अनिवार्यता क्या है?
मानहानि साबित करने के लिए जरूरी बातें
मानहानि सिद्ध करने के लिए कुछ बातें अनिवार्य होनी चाहिए। यदि बयान या कृत्य इस अनिवार्यता की श्रेणी में नहीं आता है तो वह मानहानि के मुकदमे के योग्य नहीं रहेगा।
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कही गयी बात अपमानजनक हो
किसी व्यक्ति के लिए या उसे कही (लिखित या मौखिक) गयी बात से यदि व्यक्ति का अपमान होता हो तो इस स्थिति में उस कही हुई बात को मानहानि के लिए एक कारक मान लिया जाएगा। इस बात को बेहतर समझने के लिए एक केस के बारे में जानते है।
रामजेठमलानी बनाम सुब्रमण्यम स्वामी, 2006 के मामले में प्रतिवादी द्वारा लिखित में यह कहा गया कि वाद पेश कर रहे व्यक्ति को प्रतिबंधित संगठन लिट्टे द्वारा पैसे प्राप्त हुए थे। यह बयान मानहानि कारक माना गया और इस के लिए प्रतिवादी को उत्तरदायी माना गया।
कथन प्रतिवादी द्वारा वादी को सम्बोधित किया हुआ हो
मानहानि को साबित करने के लिए दूसरी सबसे ज़्यादा ज़रूरी बात यह है कि दिया गया बयान चाहे वह लिखित हो या मौखिक प्रतिवादी द्वारा वादी को सम्बोधित कर दिया गया हो। यानि कि जिस न्यायालय के समक्ष वाद प्रस्तुत किया है बयान उसे ही सम्बोधित किया हुआ होना चाहिए।
कथन प्रकाशित हुआ हो
मानहानि को साबित करने के लिए इस अनिवार्यता का अर्थ यह है कि मानहानि करने के उद्देश्य से दिया गया कथन उस व्यक्ति के अतिरिक्त दूसरे व्यक्ति को भी ज्ञात होना चाहिए। इसे समझने के लिए महेंद्रराम बनाम हरन्दन प्रसाद,1956 का उदाहरण सटीक होगा। जहाँ वादी को सम्बोधित करते हुए प्रतिवादी द्वारा एक पत्र उर्दू भाषा में लिखा गया। चूंकि वादी उर्दू पढ़ने में सक्षम न थे इस लिए उन्होंने यह पत्र उर्दू के जानकार एक दूसरे व्यक्ति से पढ़वाया, जहां उन्होंने पत्र में कुछ मानहानि करते हुए कथन पाए। अदालत ने माना कि प्रतिवादी को मानहानि के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि उन्हें यह ज्ञान था कि वादी उर्दू पढ़ने में सक्षम नहीं है।
मानहानि के दायरे से कुछ व्यवस्थाओं को बाहर रखा गया है। जिन्हें हम आम तौर पर बचाव या डिफेन्स के रूप में जानते हैं। वे बचाव
जो मानहानि के दायरे में नहीं आते हैं वे हैं:
- संसदीय कार्यवाहियाँ
- न्यायिक कार्यवाहियाँ
- राज्य संचार से सम्बंधित कार्यवाहियाँ
इन के अलावा कुछ विशेषाधिकार भी हैं जो मानहानि की श्रेणी से अलग हैं:
- कर्तव्य के निर्वहन करते हुए दिए गए बयान
- बिना द्वेष के दिये गए बयान।
मानहानि का मुकदमा कैसे दायर करें?
किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ मानहानि का मुकदमा सिविल एवं आपराधिक दोनों ही श्रेणी में किया जा सकता है। हम यहां दोनों ही तरीकों को समझने का प्रयास करेंगे।
सिविल सूट के माध्यम से
यदि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ठेस पहुंचाई गई है तो वह दीवानी मुकदमा दायर कर सकता है। दीवानी मुकदमा दायर करने के लिए व्यक्ति को सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के अंतर्गत धारा 19 का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके अतरिक्त सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 के ज़रिए भी मानहानि का सिविल मुकदमा दायर किया जा सकता है। दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 200 के अंतर्गत भी मानहानि का मुकदमा दायर किया जा सकता है।
सिविल सूट के माध्यम से दायर मुकदमे के लिए प्रक्रिया
- सर्वप्रथम एक लिखित शिकायत दर्ज करनी होगी जिसमे न्यायलय के नाम के साथ ही पक्षों का नाम पता का उल्लेख होगा एवं वादी द्वारा एक घोषणा पत्र संलग्न होगा।
- कोर्ट फीस एवं कार्यवाही शुल्क का भुगतान किया जाना होगा।
- तीसरे चरण में सुनवाई की प्रक्रिया शुरू होती है जहाँ न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि मामला कितना सही है। यदि न्यायालय संतुष्ट होता है तो प्रतिवादी को नोटिस भेज दिया जाता है एवं वादी द्वारा कार्यवाही शुल्क एवं शिकायत की दो प्रतियां मांगी जाती हैं।
- इस चरण में लिखिति बयानों को नोटिस के 30 दिनों के भीतर जमा करना होगा।
- इस चरण में वादी द्वारा जवाब प्रस्तुत किया जाएगा। यह जवाब प्रतिवादियों के लिखिति बयानों के सम्बंध में प्रस्तुत किया जाएगा।
- न्यायालय द्वारा फ्रेमिंग ऑफ इश्यू किया जाएगा। 15 दिनों के अंदर साक्ष्यों की सूची को पेश करना अनिवार्य होगा।
- एक निर्धारित दिनाँक पर न्यायालय द्वारा साक्ष्यों की बहस होगी। अंतिम बहस के पश्चात अंतिम आदेश की प्रमाणित प्रति प्रदान की जाएगी।
मानहानि मुकदमा: आपराधिक नज़रिए से
भारतीय दंड संहिता की धारा 499 के अंतर्गत मानहानि का उल्लेख किया गया है जो इसे एक अपराध के रूप में इंगित करता है। इस धारा के अंतर्गत मानहानि का मुकदमा एक आपराधिक नज़रिए से भी दायर किया जा सकता है।
धारा 499 के अंतर्गत मुकदमा दायर करने की प्रक्रिया इस प्रकार है:
- सर्वप्रथम पुलिस को शिकायत दर्ज कराई जानी चाहिए।
- दर्ज की गई शिकायत को मजिस्ट्रेट को भेजा जाएगा। मजिस्ट्रेट से अनुमति प्राप्त होते ही सम्बंधित अधिकारी मामले की जांच शुरू कर देगा।
- यदि पुलिस द्वारा काम करने में लापरवाही बरती जा रही हो तो शिकायतकर्ता सीधे मजिस्ट्रेट को शिकायत भेज सकते हैं।
- यदि मजिस्ट्रेट संतुष्ट होते हैं तो आरोपी को न्यायालय में प्रस्तुत होने ले लिए नोटिस जारी करेंगे। संतुष्ट न होने पर मजिस्ट्रेट पुलिस को जांच के लिए कह सकेंगे।
- पुलिस द्वारा जांच के बाद अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की जाएगी।
- चार्जशीट दायर होने के बाद कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर के अंतर्गत धारा 190 के तहत आरोपी को वारंट जारी किया जाएगा।
- यदि दोष स्वीकार होता है तो धारा 229 के तहत आरोपी दोषी करार दे दिया जाएगा।