जब शादी में समस्याएँ आती हैं, तो कई मुद्दे सामने आ सकते हैं। बच्चों की कस्टडी तय करती है कि बच्चे कहाँ रहेगा और किसके साथ कितना समय बिताएगा। मेंटेनेंस एक प्रकार का फाइनेंसियल सपोर्ट है जो एक पार्टनर को डाइवोर्स के बाद दूसरे पार्टनर को देना पड़ सकता है। संपत्ति का बंटवारा वह प्रक्रिया है जिसमें मैरिड लाइफ के दौरान इकट्ठी की गई संपत्ति और कर्जों को सही तरीके से बांटा जाता है।
इन समस्याओं को जल्दी और सही तरीके से सुलझाना बहुत जरूरी है। इससे परिवारिक रिश्ते अच्छे रहते हैं और सभी लोग आसानी से आगे बढ़ सकते हैं। इससे भावनात्मक तनाव भी कम होता है, जो ऐसे समय में बहुत अधिक हो सकता है। जल्दी समाधान से कानूनी खर्च भी कम होते हैं और लंबे विवादों से बचा जा सकता है। इससे हर कोई अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरू कर सकता है और अगर बच्चे हैं, तो उनके लिए एक सकारात्मक माहौल बना रह सकता है।
अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रेसोलुशन (ए.डी.आर) क्या है?
शादी की समयस्या को सुलझाने के लिए कानूनी रूप से कुछ वैकल्पिक उपाय भी है, इन्हे अल्टरनेटिव डिस्प्यूट रेसोलुशन कहा जाता है। एडीआर एक तरीका है जिससे विवादों को कोर्ट में जाए बिना हल किया जा सकता है। इसमें एक तीसरा व्यक्ति मदद करता है ताकि दोनों पक्ष आपसी सहमति पर पहुंच सकें। एडीआर को कोर्ट की अनुमति से कोर्ट के साथ भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
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एडीआर के कई फायदे है:
- यह आमतौर पर सस्ता होता है।
- कोर्ट के मुकाबले समय की बचत करता है।
- कोर्ट की जटिलताओं से बचाता है।
- पति-पत्नी बिना डर के खुलकर चर्चा कर सकते हैं।
- हार – जीत की भावना नहीं होती, इसलिए रिश्ते कायम रहते हैं।
- कई पक्षों के विवाद में सभी अपनी राय एक ही जगह रख सकते हैं।
- प्रक्रिया को निजी रखा जा सकता है।
- व्यावहारिक और फायदेमंद समाधान पर ध्यान केंद्रित करता है।
- अधिक मुद्दों पर विचार करता है और भविष्य की रुचियों की रक्षा करता है।
परिवार के विवाद सुलझाने के लिए एडीआर की कौन-कौन सी विधियाँ हैं?
आर्बिट्रेशन
आर्बिट्रेशन एक प्रक्रिया है जिसमें विवाद को एक या अधिक आर्बिट्रेटर के पास भेजा जाता है, जिनका निर्णय लीगली बाइंडिंग होता है और जिसे कोर्ट द्वारा लागू किया जा सकता है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से एक निजी, कोर्ट के बाहर समाधान का विकल्प देती है। आर्बिट्रेशन की कुछ विशेषताएँ हैं:
- आर्बिट्रेशन केवल सहमति से होता है। यह तब ही संभव है जब दोनों पक्ष इसे मान लें, आमतौर पर इसे कॉन्ट्रैक्ट में आर्बिट्रेशन क्लॉज़ जोड़कर किया जाता है।
- पार्टीज़ खुद आर्बिट्रेटर चुनती हैं। इससे उन्हें एक निष्पक्ष और बिना पक्षपाती प्रक्रिया सुनिश्चित करने का मौका मिलता है।
- पार्टीज़ अन्य विवरण भी तय कर सकती हैं, जैसे तारीख, समय, और स्थान। इससे आर्बिट्रेशन प्रक्रिया अधिक प्रभावी और उनके अनुसार होती है।
मीडिएशन
मीडिएशन एक प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्ति, जिसे मीडिएटर कहते हैं, विवाद सुलझाने में मदद करता है। वह दोनों पक्षों के बीच बातचीत को आसान बनाता है, उन्हें समझने में मदद करता है, और मिलकर समाधान खोजने की कोशिश करता है ताकि दोनों पक्ष एक समझौते पर पहुँच सकें। मीडिएटर का काम विवाद को हल करना नहीं होता, बल्कि यह होता है कि वह दोनों पक्षों को बातचीत करने और समझौता करने में मदद करे। बच्चों की देखरेख और खर्च जैसे मामलों में, मीडिएशन सबसे अच्छा तरीका साबित हुआ है। ज्यादातर मामलों में, यह प्रक्रिया जल्दी पूरी हो जाती है और सिर्फ 2-3 बैठकों में ही विवाद सुलझ जाता है।
क्या मीडिएशन प्रगति कर रहा है?
विवादों को सुलझाने की यह प्रक्रिया बहुत तीव्र गति से विकसित हो रही है तथा ना केवल आम जनता बल्कि न्यायालयों द्वारा इसको स्वीकार किया जा रहा है। यह विकास की दिशा में एक कदम है। विकसित राष्ट्र मीडिएशन को बढ़ावा देकर, न्यायिक प्रक्रिया में होने वाले आर्थिक बोझ को, बहुत कम कर चुके हैं।
कॉंसिलिएशन
कॉंसिलिएशन एक नॉन-बाइंडिंग प्रोसेस है जिसमें समझौता करने वाला व्यक्ति दोनों पक्षों को विवाद सुलझाने में मदद करता है। यह जज की तरह नहीं होता जो विवाद सुनकर अंतिम फैसला देता है। समझौता करने वाला बस मार्गदर्शन करता है ताकि दोनों पक्ष खुद एक समझौते पर पहुंच सकें।
गौरव नागपाल बनाम सुमेधा नागपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों को कोर्ट में जाने से पहले समझौते और बातचीत की कोशिश करनी चाहिए। इस प्रक्रिया में विवाद सुलझाने के लिए अधिक फ्लैक्सिबिलिटी और समय मिलता है, जिससे पार्टियाँ खुद समाधान निकाल सकती हैं।
नेगोशिएशन
नेगोशिएशन को किसी भी प्रकार की डायरेक्ट या इनडायरेक्ट बातचीत कहा जाता है, जिसमें आपसी मतभेद वाले पक्ष मिलकर समाधान निकालने के तरीके पर चर्चा करते हैं। यह प्रक्रिया मौजूदा समस्याओं को सुलझाने के लिए या भविष्य में अच्छे संबंध स्थापित करने के लिए भी इस्तेमाल की जा सकती है।
नेगोशिएटर बच्चे के भविष्य को ध्यान में रखते हुए पूरी कोशिश करता है। इस प्रक्रिया के दौरान बच्चे देखते हैं कि उनके माता-पिता विवाद के बावजूद मिलकर काम कर रहे हैं। अक्सर, ऐसे उपायों के तहत बच्चे की कस्टडी माता पिता में से किसी एक को सौंप दी जाती है।
लोक अदालत
लोक अदालत, जिन्हें जन अदालत भी कहा जाता है, परिवारिक विवादों के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये अदालतें संपत्ति विवाद, वित्तीय मुद्दे, डिवोर्स और बच्चों की कस्टडी जैसे मामलों में मदद करती हैं। लोक अदालतों को सिविल कोर्ट के समान अधिकार दिए गए हैं।
लोक अदालत के क्या फायदे है ?
- लोक अदालत में मामला पेश करने के लिए कोई कोर्ट फीस नहीं लगती। अगर आपने पहले से फीस अदा की है और मामला लोक अदालत में सुलझ जाता है, तो फीस वापस मिल जाएगी।
- लोक अदालत में विवादों को फ्लैक्सिबिलिटी और तेजी से निपटाया जाता है। यहां सामान्य कोर्ट की तरह कड़े नियमों का पालन नहीं होता।
- लोक अदालत के निर्णय कोर्ट के निर्णय की तरह बाइंडिंग होते हैं और आमतौर पर अपील नहीं की जा सकती, जिससे विवाद जल्दी सुलझ जाते हैं।
हालांकि एडीआर के तरीके कई फायदे देते हैं, उनकी सफलता इस पर निर्भर करती है कि दोनों पक्ष कितने तैयार हैं। भारत में एडीआर को बेहतर बनाने के लिए, लोगों को इसके विकल्पों के बारे में जागरूक करना, पेशेवरों को सही प्रशिक्षण देना, और एक सहायक कानूनी ढांचा बनाना जरूरी है। इससे परिवारिक मामलों में एडीआर की उपयोगिता और सफलता बढ़ सकती है।
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