अगर भरण पोषण का भुगतान ना किया जाए, तो क्या परेशानियां हो सकती है?

अगर गुज़ारे भत्ते का भुगतान ना किया जाए, तो क्या परेशानियां हो सकती है?

कानून द्वारा तलाक के बाद भरण जीविकोपार्जन में असक्षम जीवनसाथी के पोषण या मेंटनेंस की बात कही गई है। तलाक के केस के बाद न्यायालय अक्सर भरण पोषण का आदेश देती हैं जिन्हें दिया जाना ज़रूरी होता है। मगर क्या हो यदि गुज़ारा भत्ता का भुगतान नहीं किया जाए?

आज इस आलेख के माध्यम से हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि यदि गुज़ारा भत्ता का भुगतान नहीं किया जाए तो क्या परेशानियाँ हो सकती हैं?

आइये समझते हैं:

भारत में भरण पोषण का अधिकार हिन्दू विवाह अधिनियम की 1955 के साथ ही विशेष विवाह अधिनयम 1956, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 एवं सी आर पी सी (CrPC) की धारा 125 के अंतर्गत प्राप्त करने का प्रावधान है। इन प्रावधानों का सहारा लेकर भरण पोषण के अधिकार को प्राप्त किया जा सकता है। न्यायालय द्वारा इन्हीं प्रावधानों को देखते हुए ही पति को पत्नी के भरण पोषण के आदेश भी जारी किए जाते हैं। मगर असल सवाल तब उठता है जब न्यायालय के आदेश दिये जाने के पश्चात भी पति द्वारा गुज़ारा भत्ता नहीं भुगतान किया जाता है। 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने रजनीश बनाम नेहा के मामले में गुज़ारे भत्ते और इसके भुगतान से संबंधित तमाम बातों को स्पष्ट करने के साथ ही इस बात की ओर भी प्रकाश डाला था कि यदि गुज़ारा भत्ता का भुगतान नहीं किया जाए तो क्या परेशानियां हो सकती हैं?

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भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने रजनीश बनाम नेहा के मामले में इस बात को स्पष्ट किया है कि जिस भी महिला को सी आर पी सी की धारा 125 के तहत भरण पोषण प्राप्त करने का आदेश न्यायालय द्वारा दिया जाता है। उसके पति द्वारा यदि आदेश के 1 वर्ष पूर्ण हो जाने पर भी गुज़ारा भत्ता नहीं दिया जाता है तब महिला के पास यह अधिकार होगा कि वो सी आर पी सी की धारा 125 (3) के तहत न्यायालय के समक्ष गुज़ारा भत्ता प्राप्त करने के संबंध में एक आवेदन प्रस्तुत कर सकेगी।

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चूंकि गुज़ारा भत्ता का आदेश न्यायालय द्वारा पति को दिया जाता है। ऐसे में यदि इस आदेश का पालन न किया जाए तो यह न्यायालय की अवमानना का मामला भी होगा। सी आर पी सी धारा 125(3) के तहत आये हुए आवेदन को संज्ञान में लेते हुए न्यायालय पति के ख़िलाफ़ गुज़ारा भत्ता का भुगतान न करने पर वारंट जारी कर सकता है।

न्यायालय इस बात का भी अधिकार प्रदान करता है कि गुज़ारा भत्ता का भुगतान न किये जाने की स्थिति में महिला द्वारा न्यायालय में एक वाद इस बात के लिए भी दायर किया जा सकता है। गुज़ारा भत्ता भुगतान न किये जाने की स्थिति में न्यायालय द्वारा इस भत्ते की वसूली पति की सम्पत्ति की कुर्की करके भी की जा सकेगी।

गुज़ारा भत्ता न दिए जाने पर न्यायालय द्वारा वारंट जारी किए जाने के पश्चात गिरफ्तारी का भी प्रावधान है। साथ ही संपत्ति के कुर्की के भी आदेश न्यायालय द्वारा दिये जा सकने का भी प्रावधान है। इस बात को भी ध्यान रखना चाहिए कि यदि पति सरकारी सेवा में है और गुज़ारा भत्ता नहीं दे रहा है तो न्यायालय सीधे उसके बैंक खाते से ही गुज़ारा भत्ता राशि काट ने का आदेश भी दे सकती है। गुज़ारा भत्ता का भुगतान न करने पर न्यायलय व्यक्ति की सम्पत्ति को बेच भी सकता है और साथ ही हर एक महीने की राशि के लिए हर एक महीने की जेल का भी प्रावधान है।

न्यायालय हमेशा आवश्यक स्थितियों और मानदंडों को ध्यान में रखते हुए ही भरण-पोषण की राशि तय करता है।

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रखरखाव की राशि निम्नलिखित कारकों को ध्यान में रखकर तय की जाती है:

  1. पति का अपनी पत्नी के प्रति व्यवहार
  2. व्यक्तिगत विवरण जिसमें उनके बच्चों से संबंधित विवरण भी शामिल हैं
  3. तलाक के बारे में आवश्यक विवरण
  4. पृथक्करण के मामले में उसका विवरण और अवधि
  5. दोनों पक्षों की वित्तीय स्थिति के बारे में जानकारी
  6. जिन आधारों पर पत्नी का भरण-पोषण का दावा आधारित है
  7. पति की आय की घोषणा

उनके विवाहित जीवन का विवरण और शर्तें

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए न्यायालय पति द्वारा भुगतान किए जाने वाले गुज़ारा भत्ता का निर्णय कर सकता है। और इस सब के बाद अगर वह स्वेच्छा से न्यायालय के आदेश की अवहेलना करता है, तो वह जवाबदेही के अधीन आएगा।

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