शादी सामाजिक तौर पर नए परिवारों को जोड़ती है। बहुत लोग अपनी शादीशुदा ज़िन्दगी को सफल करने में कामयाब होते हैं। दूसरी तरफ, कुछ लोगों खासतौर पर महिलाएं को अपनी शादी में अत्याचार सहने पड़ते है। उन्हें ‘इंडियन लीगल राइट्स’ को जानने की जरूरत है। जो उन्हें भारतीय संविधान द्वारा मिले है।
शादी के बाद के अधिकार:-
महिलाओं को शादी के बाद यह सभी अधिकार मिलते है –
(1) हस्बैंड के घर में रहना:-
शादी के बाद वाइफ को अपने ससुराल में रहने का पूरा अधिकार है। वह घर हस्बैंड द्वारा बनाया गया, किराये का, जॉइंट फैमिली का या फिर पुश्तैनी घर हो सकता है। विधवा महिला को भी उसके मृत हस्बैंड के घर में रहने का हक़ दिया गया है। साथ ही, अगर कपल के डाइवोर्स की प्रोसेस जारी है, तो वाइफ को डाइवोर्स की डिक्री जारी होने तक हस्बैंड के घर में रहने का अधिकार है।
(2) स्त्रीधन का अधिकार:-
स्त्रीधन का मतलब शादी में वाइफ को मिला हुआ धन, जैसे की गिफ्ट्स और पैसे। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के सेक्शन 14 और हिंदू विवाह अधिनियम,1955 में सेक्शन 27 के तहत वाइफ अपना स्त्रीधन मांग सकती है। चाहें वो स्त्रीधन उसके पति या ससुराल वालों के पास ही क्यों ना रखा हो उस स्त्रीधन पर केवल महिला का ही हक़ रहेगा। अगर कोई व्यक्ति महिला के स्त्रीधन को उसे देने से इंकार कर देता है, तो ”घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण 19 A अधिनियम” के तहत महिला शिकायत कर सकती है।
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(3) बच्चे की कस्टडी का अधिकार:-
अगर कपल का डाइवोर्स हो रहा है या हो चुका है, तो वाइफ अपने बच्चे की कस्टडी ले सकती है। मुख्यत: जब बच्चा 5 साल से छोटा है। इसी के साथ, अगर वाइफ अपना ससुराल छोड़ कर जा रही है, तो वो बिना किसी कानूनी कार्यवाही के अपने बच्चे को अपने साथ ले जा सकती है। और अगर घर में झगडे की सिचुएशन पैदा होती है, तो वाइफ अपने बच्चे की कस्टडी अपने पास रख सकती है। चाहें वाइफ और हस्बैंड को ईकुअल कस्टडी राइट्स ही क्यों न मिले हुए हो।
(4) अबॉर्शन कराने का अधिकार:-
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971, के तहत महिला को यह अधिकार है कि वे अपनी मर्जी से अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को ख़त्म कर सकती है। इसके लिए महिला को अपने ससुराल वालों या अपने पति की सहमति की जरूरत नहीं है। लेकिन अगर प्रेगनेंसी 24 हफ़्तों से ज्यादा की हो चुकी है, तो उसे अबो्र्ट कराने के लिए कोर्ट की परमिशन की जरूरत पड़ती है। कोर्ट से 24 हफ़्तों से ज्यादा की प्रेगनेंसी ख़त्म करने का आर्डर बहुत रेयर केसिस में मिलता है।
(5) संपत्ति लेने का अधिकार:-
2005 के हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के संशोधन के तहत, मैरिड या अनमैरिड बेटी अपने पिता की प्रॉपर्टी पर बराबरी का अधिकार रखती है। बेटी की शादी हो गयी हो, विधवा हो, तलाकशुदा हो, या किसी और परिस्तिथि में हो, वह अपने पिता की प्रॉपर्टी में बराबरी का अधिकार रखती है। हालाँकि, अगर पिता ने विल बनाकर बेटी को बेदखल किया है, तो विल के आधार पर उसे पिता की प्रॉपर्टी में हिस्सा नहीं दिया जायेगा।
इसी तरह वाइफ अपने पहले हस्बैंड की प्रॉपर्टी पर अपना अधिकार जता सकती है। हालांकि, ये अधिकार तभी माँगा जा सकता है, जब हस्बैंड ने उसे प्रॉपर्टी से बेदखल करने की विल ना बनाई हो।
इसके साथ ही, अगर किसी महिला का हस्बैंड उसे डाइवोर्स दिए बिना दूसरी शादी कर लेता है, तो उस सिचुएशन में हस्बैंड की पूरी प्रॉपर्टी पर उसकी पहली वाइफ का अधिकार माना जाता है।