शादी में क्रूरता हो तो क्या है महिलाओं के अधिकार ?

शादी में क्रूरता हो तो क्या है महिलाओं के अधिकार?

शादी के बाद महिलाओं की जीवन शैली, पहचान सब कुछ बदल जाता है। इसके बावजूद अगर उन्हें अपने हस्बैंड और ससुराल वालों से इज़्ज़त, प्यार और सपोर्ट ना मिले, तो महिला कभी खुश नहीं रह पति है। लेकिन अगर शादी में क्रूरता हो, तो ऐसी शादी का अस्तित्व ही ख़त्म हो जाता है। कई तरीकों से पुरुष अपनी पत्नियों को दबाने की कोशिश करते हैं। जैसे –

(1) परिजनों के सामने उनका अपमान करना।
(2) उन्हें यह महसूस कराना कि वे अपने पति से कमतर हैं।
(3) उनके साथ बदसलूकी करना।
(4) किसी अन्य महिला के साथ रोमांटिक संबंध होना।
(5) उनके साथ गुलामों जैसा व्यवहार करना।

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यह सभी पत्नियों के प्रति क्रूरता होती है। लम्बे समय तक हो रही क्रूर घटनाओं की वजह से कई बार महिलाएं सुसाइड कर लेती है। भारतीय संविधान से महिलाओं को यह अधिकार है कि वे अपने उप हो रहे अत्याचारों के आधार पर डाइवोर्स ले सकती है। साथ ही, आईपीसी के सेक्शन 498 ए के तहत क्रूरता दंडनीय अपराध है।

आईपीसीसी के सेक्शन 498ए के तहत, “अगर किसी महिला का हस्बैंड या ससुराल वाले उसके साथ क्रूरता करते है, तो उन्हें तीन साल की जेल और जुर्माना हो सकता है। सेक्शन 498ए के अनुसार, “क्रूरता” का अर्थ है किसी भी महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने या उसे आत्महत्या करने के लिए उकसाने के इरादे से किया गया कोई भी काम क्रूरता माना जाता है।

डाइवोर्स के आधार के रूप में क्रूरता:-

पहले डाइवोर्स केवल जुडिशल सेपरेशन का आधार था। बाद में 1976 के संशोधन में क्रूरता को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 10(1) के तहत डाइवोर्स का आधार माना गया। कोर्ट कार्यवाही करती है कि महिला के साथ किस प्रकार की क्रूरता हुई है। अगर कार्यवाही में क्रूरता साबित होती है तो डाइवोर्स की डिक्री जारी कर दी जाती है।

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