जमानत कितने प्रकार की होती है?

जमानत की अर्जी कहा देते है, नॉन वेलेबल में जमानत क्यों नहीं होती है, जमानत का मुख्य आधार क्या होता है

इंसान को गलतियों  का पुतला कहा गया है।  हम लोगों से जाने अनजाने में कहीं ना कहीं हमेशा गलतियां होती रहती हैं। क्योंकि हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं जहां पर अलग-अलग तरह के कानूनों को मानना और उनका सम्मान करना हमारी जिम्मेदारी है । यदि हर व्यक्ति कानूनों का उल्लंघन करने लगे तो मनुष्य द्वारा बनाए गया समाज समाज न होकर एक ऐसे जंगल का रूप ले लेगा जहां पर अधिक ताकतवर जानवर अपने से छोटे लोगों को पल झपकते ही मार देते हैं और वहां का पूरा माहौल भयानक होता है । 

इसी तरह कभी-कभी हम लोग कोई गलती नहीं भी करते हैं लेकिन बदले में हमको कानूनी प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ जाता है कभी-कभी निर्दोष व्यक्ति भी जेल पहुंच जाता है। ऐसे ही लोगों के लिए जमानत की सुविधा भारत के संविधान द्वारा दी गई है।  जमानत मुख्य रूप से आरोपी के तरफ से दायर याचिका के बाद मिलती है जिसमें उसे निर्देश दिया जाता है कि जब भी कोर्ट सुनवाई करेगा उसके से संबंधित कोर्ट सुनवाई करेगा तब आरोपी अथवा जिस व्यक्ति की जमानत हुई है उसे कोर्ट में उपस्थित होना होगा । क्योंकि जमानत के लिए आरोपी तथा अन्य जमानत लेने वाले लोगों की संपत्ति कोर्ट दांव पर लगा देता है यदि उक्त तिथि में आरोपी कोर्ट में नहीं पहुंचता है तो न्यायालय आगे की कार्यवाही के रूप में संपत्ति भी जप्त कर सकता है ‌। इस जमानत की प्रक्रिया के अलग-अलग तरह के नियम है तथा इसके अलग-अलग प्रकार है आगे हमेशा आर्टिकल में जानेंगे कि जमानत के कौन-कौन से प्रकार होते हैं- 

1- अग्रिम जमानत – जमानत का यह तरीका जिसका नाम अग्रिम जमानत होता है अंग्रेजी में से एंटीसिपेटरी बैल कहा जाता है खास तौर पर यह उन आरोपियों को दिया जाता है जिन्हें ऐसी आशंका होती है कि उन्हें पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जा सकता है । ऐसी स्थिति में कोई भी व्यक्ति जिस पर आरोप लगाया जा रहा हो वह अग्रिम जमानत हेतु न्यायालय में इसका आवेदन कर सकता है। 

2- अंतरिम जमानत – यदि किसी आरोपी को अग्रिम जमानत देने पर कुछ पावन दिया हूं तो ऐसे समय में उसे अंतरिम जमानत के लिए आवेदन करना चाहिए । इस तरह की जमानत के लिए न्यायालय आरोपी व्यक्ति को बहुत ही कम समय के लिए जेल से बाहर जाने की इजाजत देता है। 

3- साधारण जमानत – साधारण जमानत भी भारत के हर नागरिक का अधिकार यदि किसी भी व्यक्ति को किसी भी आरोप में पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया जाता है तो वह साधारण जमानत के लिए न्यायालय के समक्ष अपना आवेदन प्रस्तुत कर सकता है सीआरपीसी की धारा 437 के तहत यदि न्यायालय चाहे तो ऐसे व्यक्ति को साधारण जमानत दे सकता है।

4- थाने से जमानत – यदि कोई व्यक्ति एक बार पुलिस थाने में गिरफ्तार हो करके आता है तो न्यायालय के अतिरिक्त थाने के पास भी जमानत देने का अधिकार होता है। लेकिन थाने द्वारा जमानत सिर्फ कुछ ही सामान्य केस जैसे मारपीट गाली-गलौज धमकी देना आदि छोटे मामूली अपराधों मैं आरोपी को जमानत दी जाती है।

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