बिहार सरकार ने शराब कानून में क्या बदलाव किया है?

बिहार सरकार ने शराब कानून में क्या बदलाव किया है?

बिहार सरकार के शराब बंदी कानून को लेकर लगातार हो रही आलोचनाओं की वजह से इसी साल अप्रैल में शराब बंदी कानून से जुड़े कानूनों में तब्दीली की थी। बिहार सरकार में अभी हाल में ही ज़हरीली शराब पीने की वजह से हुई मौतों के बाद एक बार फिर शराब बंदी की नीतियां सवालों के घेरे में आ गई हैं।

अप्रैल 2022 में बिहार विधान सभा मे पारित किए गए शराबबंदी कानून संशोधन विधेयक 2022 के तहत बिहार सरकार ने अपनी शराब बंदी की नीतियों में बदलाव किए थे। उसके बाद भी हुई मौतों ने इन बदलावों को सवालों के घेरे में ला दिया है। आइये एक बार नज़र डालते हैं कि अप्रैल 2022 में बिहार विधानसभा द्वारा पारित बिहार शराबबंदी कानून संशोधन विधेयक 2022 के तहत क्या बदलाव किए गए थे?

बिहार में शराब बंदी को ले कर जिस तरह के कानून थे वे बेहद सख़्त थे। उदाहरण के तौर पर यदि पहली बार कोई शराब पी कर पकड़ा जाता तो उसे जुर्माने के रूप में 50,000 रुपये देने पड़ते थे। वहीं शराब बंदी संशोधन के तहत अब इस सजा को बदल दिया गया है। 

संशोधन के बाद अब बिहार में पहली बार शराब पी कर पकड़े जाने पर जुर्माने की रकम को घटा कर 2 से 5 हज़ार तक कर दिया गया है। इसके साथ ही जुर्माना न दे पाने की स्थिति में एक महीने की जेल का भी प्रावधान रखा गया है।

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यानि अगर देखा जाए तो पहली बार शराब पी कर पकड़े जाने पर सजा बेहद कम कर दी गई है। जहां पहले 50,000 रुपयों का जुर्माना भरना होता था अब मजिस्ट्रेट द्वारा केवल जुर्माना लगा कर छोड़ देने की बात कही गई है। वहीं जुर्माने की रकम भी कम कर दी गई है।

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यह सज़ा एक बार शराब पी कर पकड़े जाने पर ही है। यदि कोई व्यक्ति एक बार से ज़्यादा शराब पी कर पकड़ा जाएगा तो उस पर कार्यवाही सख़्त हो सकती है। ऐसे व्यक्ति पर भारी सजा होने के प्रावधान बनाए गए हैं। इन नई नीतियों के तहत पुलिस को भी इस बात का अधिकार प्रदान किया गया है कि भारी मात्रा में अवैध शराब पकड़े जाने पर सैम्पल मात्रा के अतिरिक्त पूरी शराब नष्ट की जा सकती है। गौर तलब हो कि ऐसा पहले होने पर पुलिस को कलेक्टर से इजाज़त लेनी पड़ती थी।

बिहार सरकार की शराब बंदी की नीतियों में हुए संशोधन के तहत सिवाए धारा 35 के अंतर्गत आने वाले अपराधों के अतिरिक्त अन्य सभी अपराधों की सुनवाई विशेष न्यायालयों में की जाएगी। इस संशोधन का असर लंबित मामलों पर भी हुआ। बिहार की जेलों में ऐसे कई कैदी हैं जो शराब पीते पकड़े गए हैं और दो महीने से अधिक समय से जेल में बंद हैं और सुनवाई की राह देख रहे थे अब वे निर्धारित जुर्माना अदा कर जेल से बाहर आ सकेंगे।

बिहार राज्य की इस मद्य निषेध नीति पर भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपनी नाराजगी जाहिर की थी। दिसम्बर 2020 में भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने कहा कि बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 का यह कदम “दूरदर्शिता की कमी” के साथ लिया गया था।

वहीं 8 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल और एमएम सुंदरेश की पीठ ने शराब के मामलों में जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए बिहार सरकार को प्रभाव के आकलन के बिना और न्यायिक बुनियादी ढांचे के उन्नयन के बिना शराबबंदी कानून लागू करने के लिए फटकार लगाई।

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गौरतलब हो कि साल 2016 से बिहार में लागू शराब बन्दी के बावजूद इस से सम्बंधित मामलों में कोई कमी नहीं आई है। बंद के बावजूद बिहार की कई न्यायालयों में इस से सम्बंधित अब भी कई मामले लंबित पड़े हुए हैं और न्याय की राह देखते-देखते अब भी हज़ारों लोग जेलों में हैं।

फिर से क्यों चर्चा में

हाल ही में बिहार के सारण में 70 लोगों की मौत जहरीली शराब पीने की वजह से हो गई थी। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि बिहार की इन शराब नीतियों में अब भी कहीं न कहीं चूक तो है।

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