अगर नाबालिग से शादी हो जाए तो कानून क्या कहता है?

What does the law say if a minor gets married

नाबालिगों की शादी, जिसे बाल विवाह कहा जाता है, दुनियाभर में एक गंभीर समस्या है। यह बच्चों के मूल अधिकारों का उल्लंघन करती है और उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डालती है। इसलिए अधिकांश देशों ने शादी की न्यूनतम उम्र तय करने के लिए कानून बनाए हैं, ताकि व्यक्ति पूरी समझ के साथ शादी जैसा बड़ा निर्णय ले सके।

फिर भी, बाल विवाह आज भी होते हैं, कभी-कभी सांस्कृतिक प्रथाओं, आर्थिक दबावों या कानूनी खामियों के कारण। इस ब्लॉग का उद्देश्य बाल विवाह के कानूनी पहलुओं को समझाना है, यह बताना कि जब एक नाबालिग की शादी होती है तो क्या होता है और क्यों कानून नाबालिगों को ऐसी शादियों से बचाता है।

क्या सामाजिक परंपराएं कानून से ऊपर हैं?

भारत में बाल विवाह की स्थिति भारत में बाल विवाह एक गंभीर सामाजिक समस्या है, जिसे कानून द्वारा प्रतिबंधित किया गया है। यह समस्या विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलती है, जहां सामाजिक परंपराएं और जातीय रिवाजों का पालन किया जाता है। कई स्थानों पर लड़कियों को जल्दी शादी करने के लिए दबाव डाला जाता है, जो उनकी शारीरिक और मानसिक स्थिति के लिए हानिकारक हो सकता है।

सामाजिक परंपराएं बनाम कानूनी सच्चाई हमारे समाज में विभिन्न धार्मिक, सांस्कृतिक और पारंपरिक विचारधाराओं के कारण बाल विवाह को सामान्य माना जाता है। हालांकि, कानूनी दृष्टिकोण से इसे अपराध माना जाता है और ऐसे विवाहों को वैध नहीं माना जाता।

नाबालिग की परिभाषा कानून में भारतीय कानून में नाबालिग को वह व्यक्ति कहा जाता है जिसकी उम्र 18 वर्ष से कम हो। इस उम्र तक, किसी व्यक्ति को मानसिक और शारीरिक रूप से परिपक्व नहीं माना जाता, और ऐसे में किसी से शादी करना कानूनी रूप से गलत है।

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शादी करने की कानूनी उम्र क्या है?

पुरुष और महिला की वैध शादी की उम्र:

भारत में, पुरुषों के लिए वैध शादी की न्यूनतम उम्र 21 वर्ष और महिलाओं के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है। यह उम्र इस बात को सुनिश्चित करने के लिए है कि दोनों पार्टनर मानसिक और शारीरिक रूप से शादी के लिए तैयार हों।

शादी की उम्र को लेकर प्रमुख कानून:

  • प्रोहिबिशन ऑफ़ चाइल्ड मैरिज एक्ट, 2006: यह कानून बाल विवाह को रोकने के लिए बनाया गया है, जिसमें नाबालिगों की शादी को गैरकानूनी माना जाता है। इसके तहत, 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की और 21 वर्ष से कम उम्र का लड़का शादी नहीं कर सकते।
  • हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955: हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत, हिंदू धर्म में शादी के लिए महिला की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुष की 21 वर्ष निर्धारित की गई है। यह कानून पारंपरिक हिंदू विवाहों को मान्यता देता है और बाल विवाह को निषेध करता है।
  • मुस्लिम पर्सनल लॉ: मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत, शादी की उम्र को लेकर कोई स्पष्ट आयु सीमा नहीं है, लेकिन मुस्लिम समाज में 18 वर्ष से कम उम्र में शादी करने को गलत माना जाता है, हालांकि कुछ क्षेत्रों में यह प्रथा अभी भी प्रचलित है।
  • स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954: स्पेशल मैरिज एक्ट भारत में ऐसे विवाहों को मान्यता देता है, जो विभिन्न धर्मों के लोग आपस में करते हैं। इसके तहत, महिला की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और पुरुष की 21 वर्ष निर्धारित की गई है। 
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अगर नाबालिग से शादी हो जाए तो क्या वह शादी वैध मानी जाएगी?

नाबालिग से शादी होने पर, यह सवाल उठता है कि क्या वह शादी कानूनी रूप से वैध मानी जाएगी। भारतीय कानून के अनुसार, जब एक नाबालिग से शादी होती है, तो वह शादी वैध नहीं मानी जाती। प्रोहिबिशन ऑफ़ चाइल्ड मैरिज एक्ट के तहत, नाबालिगों के बीच विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिलती, और इसे तुरंत अमान्य घोषित किया जा सकता है। यदि विवाह नाबालिग लड़की या लड़के के द्वारा किया गया है, तो कानून उन्हें वैध रूप से इसे रद्द करने का अधिकार देता है।

  • वोयड मैरिज: इस प्रकार का विवाह पूरी तरह से अवैध और अमान्य होता है। जैसे नाबालिग से शादी करना, जिसके लिए दोनों पक्षों का कानूनी रूप से शादी करने का अधिकार नहीं होता। यह विवाह किसी भी परिस्थिति में मान्य नहीं हो सकता।
  • वॉइडेबल मैरिज: इस प्रकार के विवाह में दोनों पक्षों की सहमति से विवाह हुआ होता है, लेकिन किसी कानूनी कारण से उसे चुनौती दी जा सकती है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति को धोखे से शादी के लिए मजबूर किया गया हो, तो यह विवाह वॉइडेबल हो सकता है।

प्रोहिबिशन ऑफ़ चाइल्ड मैरिज एक्ट की धारा 3 और 12 की व्याख्या

  • धारा 3: यह धारा बाल विवाह को रोकने के लिए बनाई गई है। इसके तहत नाबालिगों (लड़की की आयु 18 वर्ष से कम और लड़के की आयु 21 वर्ष से कम) का विवाह करना कानूनी रूप से अपराध है। यदि कोई व्यक्ति नाबालिग से शादी करता है, तो उसे जुर्माना और जेल की सजा हो सकती है।
  • धारा 12: इस धारा के तहत, अगर कोई नाबालिग की शादी करता है, तो शादी को अमान्य घोषित किया जा सकता है। विवाह के बाद यदि लड़की या लड़का बालिग हो जाता है, तो वे शादी को रद्द करने का अधिकार रखते हैं।

नाबालिग से शादी करने पर क्या सज़ा हो सकती है?

बाल विवाह को अपराध माना जाता है और यह संज्ञेय अपराध होता है, जिसका मतलब है कि पुलिस बिना वॉरंट के अपराधी को गिरफ्तार कर सकती है। इसके अलावा, यह गैर-जमानती अपराध भी है, अर्थात अपराधी को जमानत नहीं मिल सकती है। यह विशेष रूप से इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह नाबालिगों के अधिकारों का उल्लंघन है और समाज के लिए एक गंभीर समस्या।

  • विवाह करने वाले व्यक्ति पर: ​यदि कोई व्यक्ति नाबालिग से विवाह करता है, तो प्रोहिबिशन ऑफ़ चाइल्ड मैरिज एक्ट के तहत उसे दंडित किया जा सकता है। इस धारा के अनुसार, दोषी पाए जाने पर अधिकतम 2 साल तक का सश्रम कारावास और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों सजा का प्रावधान है।
  • विवाह कराने वाले पुजारी/मौलवी/पंडित पर: यदि कोई पुजारी, मौलवी, या पंडित नाबालिगों की शादी कराता है, तो उसे प्रोहिबिशन ऑफ़ चाइल्ड मैरिज एक्ट के तहत दंडित किया जा सकता है। इस एक्ट के अनुसार, बाल विवाह संपन्न कराने वाले व्यक्ति को 2 साल तक की कठोर कारावास और 1 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। यह प्रावधान विवाह कराने वाले धार्मिक गुरुओं पर भी लागू होता है, जो जानबूझकर बाल विवाह संपन्न कराते हैं।
  • मातापिता और रिश्तेदारों पर: यदि माता-पिता और रिश्तेदार नाबालिगों की शादी कराने में सहायता करते हैं, तो उन्हें प्रोहिबिशन ऑफ़ चाइल्ड मैरिज एक्ट के तहत दंडित किया जा सकता है। इस एक्ट के अनुसार, ऐसे व्यक्तियों को 2 साल तक की कठोर कारावास और 1 लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।
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क्या नाबालिग लड़की शादी रद्द कर सकती है?

भारतीय कानून नाबालिगों की रक्षा के लिए सख्त प्रावधान रखता है, विशेष रूप से बाल विवाह से संबंधित। यदि किसी नाबालिग लड़की की शादी होती है, तो उसे अपनी शादी को रद्द करने का कानूनी अधिकार प्राप्त है।

प्रोहिबिशन ऑफ़ चाइल्ड मैरिज एक्ट की धारा 3 के तहत, यदि विवाह के समय एक पक्ष नाबालिग था, तो वह अपनी शादी को रद्द करने के लिए पेटिशन दायर कर सकता है। यह अधिकार विवाह के संपन्न होने के बाद से दो वर्ष की अवधि में प्रयोग किया जा सकता है।

विवाह रद्द करने के लिए निम्नलिखित कानूनी प्रक्रिया का पालन करना होता है:

  • पेटिशन दायर करना: विवाह रद्द करने के लिए सबसे पहला कदम है, जिला न्यायालय में पेटिशन दायर करना। पेटिशन में व्यक्ति को यह बताना होता है कि विवाह के कारण कौन से कारण या परिस्थिति हैं जिनकी वजह से वह विवाह को रद्द करना चाहता है। न्यायालय यह विचार करेगा कि पेटिशन सही है या नहीं और फिर वह आगे की प्रक्रिया शुरू करेगा।
  • अभिभावक की सहमति: यदि पेटिशन दायर करने वाला व्यक्ति नाबालिग है, तो उसके द्वारा विवाह रद्द करने के लिए उसके अभिभावक या संरक्षक की सहमति जरूरी होती है। नाबालिग के मामले में, अभिभावक या संरक्षक ही पेटिशन को न्यायालय में दायर कर सकते हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि नाबालिग के अधिकारों और सुरक्षा का ख्याल रखा जा रहा है।
  • आवश्यक दस्तावेज: विवाह रद्द करने के लिए जरूरी दस्तावेजों में जन्म प्रमाणपत्र या आयु प्रमाण (नाबालिग होने पर), विवाह प्रमाणपत्र (विवाह का प्रमाण) और नाबालिग की स्थिति में शैक्षिक प्रमाणपत्र या अन्य दस्तावेज (आयु 18 वर्ष से कम होने का प्रमाण) शामिल हैं।

क्या नाबालिग के साथ सहमति से शारीरिक संबंध अपराध है?

यदि कोई वयस्क नाबालिग (18 वर्ष से कम उम्र) के साथ सहमति से भी शारीरिक संबंध बनाता है, तो यह अपराध माना जाता है। भारत में सहमति की उम्र 18 वर्ष है, और इससे कम उम्र के व्यक्ति की सहमति कानूनी रूप से मान्य नहीं होती।

यदि पति-पत्नी हैं, फिर भी यौन संबंध अपराध क्यों माने जाते हैं? भारत में, यदि पत्नी की उम्र 18 वर्ष से कम है, तो उसके साथ यौन संबंध बनाना कानूनी रूप से बलात्कार माना जाता है। यह नियम विवाह की स्थिति में भी लागू होता है, क्योंकि नाबालिग की सहमति कानूनी रूप से मान्य नहीं होती।

इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 2017 मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शादी के बाद भी, यदि पत्नी 18 साल से कम है, तो उसके साथ यौन संबंध बनाना बलात्कार माना जाएगा। इस फैसले ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 में विवाह के दौरान नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध बनाने से संबंधित अपवाद को समाप्त कर दिया।

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पीड़िता क्या कदम उठा सकती है?

  • FIR दर्ज करवाना: FIR दर्ज कराना अपराध की आधिकारिक सूचना देना है। आप स्वयं या किसी विश्वसनीय व्यक्ति के माध्यम से नजदीकी पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करा सकते हैं। यदि पुलिस अधिकारी एफआईआर दर्ज करने से मना करें, तो यह कृत्य दंडनीय है।
  • चाइल्ड हेल्पलाइन से संपर्क: यदि आप नाबालिग हैं और आपके साथ अपराध हुआ है, तो चाइल्ड हेल्पलाइन (1098) पर कॉल करके सहायता ले सकते हैं। यह सेवा 24/7 उपलब्ध है और आपकी गोपनीयता की रक्षा करती है।​
  • चाइल्ड प्रोटेक्शन कमिटी से मदद लेना: स्टेट चाइल्ड प्रोटेक्शन कमिटी नाबालिगों के अधिकारों की रक्षा करती हैं। आप अपनी शिकायत इन समितियों में दर्ज करा सकते हैं, जो उचित कार्रवाई सुनिश्चित करती हैं।​

मोइदुट्टी मुसलियार और अन्य बनाम सब इंस्पेक्टर वडक्केंचेरी पुलिस, 2024

केरल हाईकोर्ट ने 15 जुलाई, 2024 को अपने फैसले में कहा कि प्रोहिबिशन ऑफ़ चाइल्ड मैरिज एक्ट, 2006 भारत के सभी नागरिकों पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। इसका मतलब है कि जो व्यक्तिगत कानून बाल विवाह की अनुमति देते हैं, वे इस कानून के सामने नहीं टिकते और बाल विवाह को रोकने के लिए यह कानून सर्वोपरि है।

केरल हाईकोर्ट ने कहा कि प्रोहिबिशन ऑफ़ चाइल्ड मैरिज एक्ट, 2006 मुस्लिम व्यक्तिगत कानून से ऊपर है। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि नागरिकता सबसे महत्वपूर्ण है, जबकि धर्म प्राथमिकता नहीं रखता।

निष्कर्ष

बाल विवाह एक गंभीर सामाजिक कुप्रथा है, जो न केवल कानूनी रूप से निषिद्ध है, बल्कि यह बच्चों के अधिकारों और उनके भविष्य से भी खिलवाड़ करती है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बाल विवाह बच्चों की स्वतंत्रता और पसंद का उल्लंघन करता है, और इसे किसी भी व्यक्तिगत कानून या परंपरा से बाधित नहीं किया जा सकता। समाज के प्रत्येक सदस्य की जिम्मेदारी है कि वे इस कुप्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाएं और बाल विवाह की रोकथाम में सक्रिय भूमिका निभाएं, ताकि हमारे समाज से यह बुराई समाप्त हो सके।​

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FAQs

1. अगर लड़की ने मर्जी से शादी की है तो क्या वह भी अपराध है?

यदि लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम है, तो उसकी सहमति से भी विवाह अवैध होगा और यह बाल विवाह के रूप में अपराध माना जाएगा।

2. क्या बाल विवाह में पति को जेल हो सकती है?

हां, अगर विवाह नाबालिग लड़की से हुआ है, तो पति पर बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत 2 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।

3. क्या कोर्ट बिना लड़की की शिकायत के भी कार्रवाई कर सकता है?

हां, कोर्ट बाल विवाह के मामले में स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई कर सकता है, खासकर यदि यह बाल विवाह निषेध अधिनियम का उल्लंघन करता है।

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