मिडिएशन कोर्ट की हियरिंग के बजाय कोर्ट के बाहर किया जाने वाला सेटलमेंट होता है। मिडिएशन कोर्ट केस के मुकाबले कम खर्चे में और जल्दी होने वाली प्रक्रिया है जहां दोनों पार्टीज़ की बात होती है और मीडिएटर द्वारा उनके डिस्प्यूट का सेटलमेंट कराया जाता है। अन्य अदालती कार्यवाही के बजाय भी मिडिएशन प्रक्रिया गोपनीय प्रकृति की होती है, पार्टियों की लिखित सहमति के बिना पार्टियों द्वारा दी जा रही किसी भी जानकारी का आगे खुलासा नहीं किया जा सकता है।
मिडिएशन कार्यवाही क्या है?
मिडिएशन की कार्यवाही में सिविल प्रकृति के सभी केस जैसे रिकवरी सूट, वैवाहिक मुद्दे, प्रॉपर्टी के विवाद, चेक बाउंस आदि के केसिस को सेटलमेंट के लिए भेजा जाता है ताकि जल्दी समाधान हो सके और डिस्प्यूट क ख़त्म करने में खर्च भी कम हो।
कोर्ट आम तौर पर मिडिएशन की प्रक्रिया के लिए पेंडिंग डिस्प्यूट्स और केसिस को भेजा जाता है, लेकिन इसके लिए दोनों पर्टीज़ की सहमति लेना जरूरी है हालाँकि इसमें कुछ एक्सेप्शन्स भी है जैसे कोर्ट बिना पार्टीज़ की सहमति के भी उनका कोर्ट केस मेडिएशन में भेज डक्ति ै अगर कोर्ट को केस देख क्र लगता है कि मेडिएशन में जाना उनके लिए न्यायप्रिय, फायदेमंद और बेहतर ऑप्शन साबित हो सकता है।
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मिडिएशन के प्रकार
- कोर्ट द्वारा मिडिएशन – एक कोर्ट सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के सेक्शन 89 के तहत केसिस को मिडिएशन की प्रक्रिया के लिए भेज सकता है।
- प्राइवेट मिडिएश – प्राइवेट मिडिएशन उन विवादों/ डिस्प्यूट के लिए किया जाता है जो प्री-लिटिगेशन यानि कोर्ट में केस फाइल करने से पहले किया जाता है।
मीडिएटर कैसे नियुक्त करें?
सभी पार्टीज़ की सहमति होने पर डिस्प्यूट को सुलझाने के लिए उनके द्वारा मीडिएटर को नियुक्त किया जा सकता है। अगर सभी पार्टीज़ सहमत नहीं हैं तो कोर्ट द्वारा उनके केस को मीडिएटर के पास भेजा जा सकता है। ज्यादातर सभी कोर्ट्स के मिडिएशन केंद्र होते है, जहां वो कोर्ट अपने केसिस को सेटलमेंट के लिए भेज सकती है।
मीडिएटर बनने के लिए कौन एलिजिबल है?
- सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज
- हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज
- डिस्ट्रिक्ट और सेशन कोर्ट के रिटायर्ड जज
- दस साल से ज्यादा के अनुभव के लिए कानून का अभ्यास करने वाला व्यक्ति
- कम से कम 15 साल से ज्यादा के अनुभव वाले कानून के एक्सपर्ट
- सामाजिक कार्यकर्ता
- मिडिएशन और सुलह के एक्सपर्ट
मीडिएटर तय हुए समय पर पार्टियों से मिलेंगे, पूरी मिडिएशन प्रक्रिया के बारे में बताएंगे। इसके बाद दोनों पार्टी के बीच चल रहे डिस्प्यूट के बारे में सुलह करने के लिए चर्चा की जाएगी। मिडिएशन की इस मीटिंग में पार्टियों के साथ उनके संबंधित वकील भी हो सकते हैं।
मिडिएशन दोनों पार्टियों के साथ या अलग-अलग सेशन आयोजित कर सकता है। वह पार्टियों को उनकी शिकायतों, मांगों और अपेक्षाओं को समझाने और सौहार्दपूर्ण समाधान के लिए उपयुक्त ऑप्शन्स का चयन करने में उनकी मदद करने के लिए अधिकृत करता है। अगर पार्टियों के बीच समझौता हो जाता है, तो समझौता लिखित रूप में होगा और पार्टियों या उनके वकीलों द्वारा हस्ताक्षरित होगा। अगर कोई वकील पार्टियों का प्रतिनिधित्व कर रहा है, तो मीडिएटर भी सेटलमेंट के समझौते पर साइन कर सकता है। इसके बाद पार्टियों को सेटलमेंट का समझौता दिया जाता है और उन्हें मिडिएशन द्वारा रेफरल कोर्ट में भेज दिया जाता है।
सेटलमेंट एग्रीमेंट मिलने के बाद, कोर्ट आम तौर पर सुनवाई की तारीख सात दिनों में तय करता है। लेकिन किसी भी स्थिति में यह 14 दिनों से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। ऐसी सुनवाई की तारीख पर, अगर कोर्ट संतुष्ट है कि सभी पार्टियों ने विवाद को सुलझा लिया है, तो कोर्ट समझौते के बाद फैसला जारी करेगी।
अगर पार्टियों के बीच समझौता नहीं किया जा सकता है, तो बिना वजह बताए केवल असहमति होने पर, समझौता ना होने की सूचना देने से केस को रेफरल कोर्ट में भेज दिया जाएगा, जिसके बाद पार्टियों के बीच मुकदमेबाजी को आगे बढ़ाया जायेगा।
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