चेक बाउंस या चेक का अनादर तब होता है जब एक ‘प्राप्तकर्ता’ यानी वह व्यक्ति जिसे चेक के माध्यम से भुगतान प्राप्त करना है बैंक की आवश्यकता को पूरा करने में विफल रहता है यानी बैंक में पर्याप्त धन नहीं है। या फिर चेक में उल्लिखित राशि बैंक में मौजूद राशि से अधिक है। चेक बनाने वाले को ‘ आहर्ता ‘ कहा जाता है, जबकि भुगतान करने के लिए निर्देशित व्यक्ति (बैंक) को प्राप्तकर्ता कहा जाता है। और जिस व्यक्ति के नाम पर चेक पर हस्ताक्षर किया जा रहा है, उसे चेककर्ता कहा जाता है।
सवाल ये है कि यदि मुझे दिया गया चेक बाउंस हो जाए तो क्या किया जाए? आइये इस आलेख के माध्यम से आज हम यह समझने का प्रयास करते हैं।
आइये पहले यह समझते हैं कि एक
चेक के बाउंस होने के क्या कारण हो सकते हैं?
चेक बाउंस आमतौर पर उस राशि के लेन-देन के कारण होता है जो बैंक खाते की वर्तमान शेष राशि से अधिक हो जाती है।यानी बैंक खाते में अपर्याप्त ओपनिंग बैलेंस चेक बाउंस होने का कारण बन सकता है।
चेक बाउंस तब भी हो सकता है जब हस्ताक्षर के संबंध में कोई त्रुटि हो; यदि आहर्ता के हस्ताक्षर मेल नहीं खाते हैं, तो चेक बाउंस हो सकता है।
यदि दिनांक समाप्त होने के बाद चेक बैंक में जमा किया जाता है तो यह चेक बाउंस होने का कारण भी बन सकता है। चेक की वैधता आमतौर पर 3 महीने होती है जिसका अर्थ है कि चेक को 3 महीने से पहले बैंक में जमा करना होगा अन्यथा चेक स्वयं अमान्य हो जाएगा।
पोस्ट-डेटेड चेक वे होते हैं जो भविष्य में किसी तारीख के लिए जारी किए जाते हैं, लेकिन देय तिथि से बहुत पहले जमा कर दिए जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप चेक बाउंस भी हो सकता है।
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यदि ‘शब्दों में राशि’ के खंड में एक संख्या है या इसके विपरीत चेक बाउंस होने की भी एक उच्च संभावना है।
एक चेक बाउंस तब भी हो सकता है यदि चेक की स्थिति पास करने योग्य नहीं है और यानि यह क्षतियों से इतना भरा हुआ है कि चेक का विवरण समझ से बाहर हो जाता है।
किसी भी प्रकार की स्क्रिबलिंग या गन्दा सुधार चेक को अमान्य कर सकता है और चेक बाउंस हो सकता है। समाप्त वैधता वाले चेक जारी करने या अप्रमाणिक ओवरराइटिंग के कारण भी चेक बाउंस हो सकता है।
स्पष्ट ओवरराइटिंग वाला चेक भी बाउंस होने के लिए बाध्य है।
जब उपयोगकर्ता द्वारा बैंक खाते को बंद करने के बाद बैंक को ही चेक जारी किया जाता है तो वह भी बाउंस होने के लिए बाध्य होता है।
चेक बाउंस हो सकता है अगर चेक करने वाले की मृत्यु हो गई हो,दिवालिया हो गया हो, या मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गया हो।
क्रास्ड चेक भी चेक बाउंस का कारण बन सकता है।
चेक बाउंस हो सकता है यदि चेक में ऐसी राशि का उल्लेख है जो चेक ओवरड्राफ्ट की सीमा को पार कर जाती है।
चेक बाउंस हो सकता है यदि अदाकर्ता बैंक की गलत शाखा में चेक जमा करता है या यदि बैंक चेक की प्रामाणिकता पर संदेह करता है।
अगर चेक बाउंस हो जाए तो क्या करें
चेक के बाउंस का मामला निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के अंतर्गत आता है। जब कोई चेक पहली बार बाउंस होता है, तो बैंक भुगतान न करने के कारणों का उल्लेख करते हुए ‘चेक रिटर्न मेमो’ जारी करता है। धारक चेक पर तारीख के तीन महीने के भीतर बैंक को चेक फिर से जमा कर सकता है यदि उसे विश्वास है कि चेक दूसरी बार सम्मानित हो सकता है।
हालाँकि यदि परिणाम समान है तो अदाकर्ता परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 138 के तहत एक आपराधिक शिकायत दर्ज कर सकता है। एक अदाकर्ता आदेश के तहत समरी सूट के माध्यम से चेक राशि की वसूली के लिए एक अलग दीवानी मुकदमा भी दर्ज कर सकता है। यह मुकदमा सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की XXXVII (37) के तहत किया जाएगा। इसके अतिरिक्त अदाकर्ता भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 406 और धारा 420 के तहत एक आपराधिक शिकायत भी दर्ज कर सकता है । भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 के उल्लंघन के बिना एक दीवानी मुकदमा और साथ ही एक आपराधिक मुकदमा दोनों एक साथ भी दायर किया जा सकता है।
प्राप्तकर्ता चेक रिटर्न मेमो प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर कानूनी नोटिस के माध्यम से राशि के भुगतान की मांग कर सकता है। यदि चेक का भुगतान करने वाला कानूनी नोटिस के 15 दिनों के भीतर राशि का भुगतान नहीं करता है, तो कानूनी कार्रवाई या कार्यवाही कानूनी नोटिस भेजे जाने की तारीख के एक महीने के भीतर शुरू हो सकती है।
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