भारत में कंटेस्टेड डाइवोर्स या एक तरफ़ा तलाक कानूनी रूप से अलग होने का एक फॉर्मल तरीका है। यह एक ऐसी सिचुएशन को दिखता है, जिसमें हस्बैंड या वाइफ ने अपने पार्टनर से डाइवोर्स लेने का पूरा मन बना लिया है क्योंकि उनके पार्टनर ने गलत किया है, जैसे मारपीट, मेंटली टार्चर, अडल्ट्री आदि। तो इस सिचुएशन में पीड़ित पार्टनर कंटेस्टेड डाइवोर्स मिल जाता है।
कंटेस्टेड डाइवोर्स के स्टेप्स:-
कंटेस्टेड डाइवोर्स लेने के स्टेप्स इस प्रकार है –
(1) डाइवोर्स की पिटीशन फाइल करना:-
सबसे पहले डाइवोर्स की मांग करने वाले हस्बैंड या वाइफ को कोर्ट में डाइवोर्स की पिटीशन फाइल करनी होती है। यह पिटीशन फैमिली कोर्ट में सबमिट करनी होती है। डाइवोर्स फाइल करने के बाद कोर्ट के द्वारा लीगल नोटिस भिजवाया जाता है।
(2) कोर्ट की हियरिंग:-
इसके बाद, कोर्ट द्वारा मिली डेट पर कपल को पेश होना होता हैं। अगर कोर्ट को लगता है की कपल के बीच सुलह हो सकती है, तो कोर्ट इस इशू को “लीगल सर्विसेज अथॉरिटी” को भेज देती है। जहां सुलहकर्ता मौजूद होते हैं। अगर कपल की सुलह हो जाती है, तो डाइवोर्स की पिटीशन कोर्ट से वापस ले ली जाती है। अगर सुलह नहीं होती, तो डाइवोर्स के आगे के स्टेप्स को फॉलो किया जाता है।
(3) रेस्पोंडेंट पार्टनर का जवाब:-
इस स्टेप में डाइवोर्स फाइल करने वाले पार्टनर से सहमत ना होने पर रेस्पोंडेंट पार्टनर कोर्ट में एक काउंटर फाइल करता है। इस काऊंटर में रेस्पोंडेंट पार्टनर को साबित करना होता है कि डाइवोर्स फाइल करने वाले पार्टनर ने पिटीशन में उस पर गलत आरोप लगाए है।
(4) डाक्यूमेंट्स सब्मिशन:-
इस स्टेप में, कपल द्वारा कोर्ट में डाक्यूमेंट्स और जरूरी जानकारी पेश की जाती है। ताकि कोर्ट केस का सही से आकलन कर पाए।
(5) समझौता:-
डाक्यूमेंट्स और जानकारी को आँकने के बाद, कोर्ट उन बातों पर विचार करती है, जिन पर फैसला लिया जाना है। सिविल प्रोसीजर कोड का आदेश XIV विचार किये हुए पॉइंटस को सेटल करती है। यह पॉइंट्स डाइवोर्स देने से रिलेटेड कपल के बीच अनसुलझे मतभेदों को लेकर ही होते है। इस स्टेज पर, कोर्ट डाइवोर्स की इस प्रक्रिया को थर्ड पार्टी से बातचीत करने के लिए भी रेफर कर सकती है।
(6) क्रॉस-एग्जामिनेशन:-
इस स्टेप में कोर्ट, विटनेस की सुनवाई और परीक्षण के लिए एक निश्चित तारीख तय करती हैं। इससे पहले, विटनेस को तय की गयी तारीखों पर कोर्ट की कार्यवाही में शामिल होने के लिए समन जारी कर दिया जाता है। इस स्टेप में क्रॉस-एग्जामिनेशन, अंतिम सुनवाई आदि भी शामिल हैं।
(7) आदेश/डिक्री:-
उपलब्ध कराए गए सभी आर्ग्यूमेंट्स और सबूतों के आधार पर निष्कर्ष निकालने के बाद, कोर्ट आदेश सुनाती है। आदेश में डाइवोर्स देने या इनकार करने की डिक्री जारी करती है।