बड़े उम्र में तलाक, जिसे “ग्रे डिवोर्स” कहा जाता है, अब अधिक सामान्य हो रहा है क्योंकि लोग लंबे समय तक जीते हैं और अपने अंतिम सालों में खुशी और संतोष को प्राथमिकता देते हैं। हाल की रिसर्च के मुताबिक, 50 साल और उससे ज्यादा उम्र के लोगों में तलाक की दर 1990 के दशक से दोगुनी हो गई है। ग्रे डिवोर्स पर हुई रिसर्च में यह दिखाया गया है कि समय के साथ तलाक की दर बढ़ी है, लेकिन COVID-19 महामारी के दौरान इसमें कुछ कमी भी आई है।
हालांकि तलाक को अक्सर युवा जोड़ों से जोड़ा जाता है, लेकिन अब बड़े लोग भी लंबे समय से चल रहे विवाहों को खत्म करने का फैसला कर रहे हैं। लेकिन बड़ी उम्र में तलाक लेना, युवा उम्र में तलाक लेने से अलग होता है। इसमें कुछ खास कानूनी बातें होती हैं जिन्हें समझना जरूरी है, जैसे संपत्ति का बंटवारा, रिटायरमेंट अकाउंट्स, पति/पत्नी को मिलने वाली सहायता (अलिमनी), और स्वास्थ्य बीमा। जो लोग ग्रे डिवोर्स का सामना कर रहे हैं, उनके लिए इन कानूनी बातों को समझना बहुत जरूरी है ताकि वे अपनी वित्तीय और मानसिक सुरक्षा सुनिश्चित कर सकें।
ग्रे डिवोर्स क्या है?
ग्रे डिवोर्स उस स्थिति को कहते हैं जब 50 साल या उससे अधिक उम्र के जोड़े तलाक लेते हैं। “ग्रे” शब्द इन लोगों की उम्र को दर्शाता है, जो आमतौर पर अपने अंतिम सालों में होते हैं और शायद रिटायरमेंट के करीब होते हैं या पहले ही रिटायर हो चुके होते हैं।
युवा जोड़ों के तलाक से अलग, ग्रे डिवोर्स अक्सर लंबे समय तक चले विवाहों के बाद होता है, जो 20, 30 या 40 साल तक चल चुके होते हैं। ग्रे डिवोर्स के कारण बहुत अलग हो सकते हैं, और इन्हें समझना महत्वपूर्ण है ताकि उम्रदराज लोग जो तलाक लेना चाहते हैं, उनके सामने जो खास चुनौतियाँ हैं, उन्हें सही तरीके से निपटा जा सके।
ग्रे डिवोर्स के कारण क्या हो सकते है?
- संबंधों में दूरियां (Empty Nest Syndrome): कई जोड़ों के लिए शादी में संतुष्टि और उद्देश्य बच्चों को पालने से जुड़ा होता है। जब बच्चे बड़े होकर घर छोड़ देते हैं, तो कुछ जोड़े खुद को खाली घोंसले जैसी स्थिति में पाते हैं, जहाँ उनके पास एक-दूसरे को साथ रखने के लिए कोई सामान्य आधार नहीं होता। जिम्मेदारियों का कम होना, इस बात का एहसास दिला सकता है कि सालों में वे एक-दूसरे से दूर हो गए हैं।
- लंबी उम्र (Longer Life Expectancies): लोग पहले से ज्यादा लंबा जी रहे हैं, और जैसे-जैसे जीवनकाल बढ़ता है, वैसे-वैसे नए बदलाव और शुरुआत का मौका भी मिलता है। जब लोग 50 साल या उससे ज्यादा की उम्र में पहुंचते हैं, तो वे महसूस करते हैं कि उनके पास अभी भी कई दशक का समय है, और वे एक असंतुष्ट या दुखी शादी को छोड़कर नया जीवन शुरू करना चाहते हैं।
- आर्थिक स्वतंत्रता (Financial Independence): पिछले कुछ दशकों में महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता में बहुत सुधार हुआ है, क्योंकि अब अधिक महिलाएं काम करती हैं और अपनी आय कमाती हैं। इसके कारण, 50 साल और उससे ऊपर की महिलाएं ऐसी शादियों को छोड़ने का आत्मविश्वास महसूस करती हैं, जो मुख्य रूप से आर्थिक कारणों से चल रही थीं। अपनी आय होने के कारण, वे अपने पति पर वित्तीय रूप से कम निर्भर महसूस करती हैं।
- सामाजिक मानदंडों में बदलाव (Changing Social Norms): तलाक के प्रति समाज की सोच बदल गई है। अब कई समाजों में तलाक को कलंकित नहीं किया जाता, और उम्रदराज लोग ऐसे विवाह को खत्म करने में ज्यादा सहज महसूस करते हैं, जो अब उनके लिए फायदेमंद नहीं है। इसके अलावा, जीवन के इस पड़ाव पर नए सिरे से शुरुआत करने का सामाजिक स्वीकृति बढ़ी है, जो लोगों को अपनी खुशी की तलाश करने के लिए प्रेरित करता है।
- एक-दूसरे से दूर होना (Growing Apart): समय के साथ लोग बदलते हैं, और लंबे समय तक चलने वाली शादियों में जोड़े पा सकते हैं कि वे एक-दूसरे से दूर हो गए हैं। जो शौक, रुचियां, और जीवन लक्ष्य पहले मेल खाते थे, वे अब अनुकूल नहीं रहते। यह दूरी एक या दोनों पार्टनरों को यह एहसास दिला सकती है कि अब वे शादी में संतुष्ट नहीं हैं।
- स्वास्थ्य समस्याएँ और रिटायरमेंट का तनाव (Health Issues and Retirement Stress): जीवन के आखिरी सालों में शारीरिक और मानसिक चुनौतियाँ सामने आ सकती हैं, जैसे स्वास्थ्य समस्याएँ और रिटायरमेंट का तनाव। जोड़े देख सकते हैं कि देखभाल की जिम्मेदारियाँ, वित्तीय बदलाव, या नए जीवन के इस चरण से असंतोष के कारण शादी पर दबाव बन रहा है, जिससे वे शादी पर सवाल उठाने लगते हैं।
भारत में ग्रे डिवोर्स के कानूनी पहलु क्या है?
भारत में तलाक के मामलों की संख्या में वृद्ध जोड़ों का प्रतिशत बढ़ता जा रहा है। यहां तलाक की प्रक्रिया में कुछ कानूनी पहलू हैं जिन पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता होती है:
तलाक की प्रक्रिया
भारत में तलाक की प्रक्रिया नागरिकों के लिए विभिन्न कानूनों के तहत होती है। यदि दोनों पार्टनर आपसी सहमति से तलाक चाहते हैं, तो हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955 के तहत “म्यूचुअल कंसेंट” (आपसी सहमति) के आधार पर तलाक प्राप्त किया जा सकता है। यदि दोनों पार्टनर सहमत नहीं हैं, तो उन्हें अदालत के माध्यम से तलाक की प्रक्रिया अपनानी होगी, जो एक लंबा और जटिल कदम हो सकता है।
संपत्ति का बंटवारा
तलाक के दौरान संपत्ति का बंटवारा सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण पहलू होता है। उम्रदराज जोड़ों के लिए, यह और भी जटिल हो सकता है, क्योंकि उन्होंने वर्षों में काफी संपत्ति जमा की हो सकती है, जैसे कि रियल एस्टेट, रिटायरमेंट अकाउंट्स, और पेंशन।तलाक की प्रक्रिया में, संपत्तियाँ आमतौर पर दो श्रेणियों में बांटी जाती हैं:
- वैवाहिक संपत्ति: यह वह संपत्ति होती है जो शादी के दौरान एकत्रित की जाती है, जैसे आय, घर, कारें, रिटायरमेंट बचत, और निवेश।
- व्यक्तिगत संपत्ति: यह वह संपत्ति होती है जो एक पक्ष ने शादी से पहले हासिल की थी या शादी के दौरान उपहार या विरासत के रूप में मिली थी।
पति/पत्नी को सहायता (अलिमनी)
अलिमनी या पति/पत्नी को सहायता, बहुत से उम्रदराज व्यक्तियों के लिए तलाक के दौरान एक महत्वपूर्ण मुद्दा होता है। भारत में, अलिमनी स्वचालित रूप से नहीं दी जाती है और यह शादी की स्थिति और दोनों पार्टनरों की वित्तीय स्थिति पर निर्भर करता है। उम्रदराज व्यक्तियों को अलिमनी मिल सकती है, खासकर अगर एक व्यक्ति दूसरे पर वित्तीय रूप से निर्भर है।
अलिमनी तय करते समय भारतीय अदालतें निम्नलिखित बातों पर विचार करती हैं:
- शादी की अवधि: लंबी शादियाँ आमतौर पर अधिक अलिमनी तय करती हैं।
- दोनों पार्टनरों की वित्तीय स्थिति: अगर एक पार्टनर की आय या वित्तीय क्षमता दूसरे से बहुत अधिक है, तो अलिमनी दी जा सकती है ताकि कम आय वाले पार्टनर को जीवन स्तर बनाए रखने में मदद मिल सके।
- उम्र और स्वास्थ्य: उम्रदराज लोग या जिनका स्वास्थ्य ठीक नहीं है, वे अलिमनी के हकदार हो सकते हैं, क्योंकि वे तलाक के बाद खुद को संभालने में सक्षम नहीं हो सकते।
- स्थायी बनाम अस्थायी अलिमनी: अलिमनी अस्थायी (तलाक की प्रक्रिया के दौरान) या स्थायी (तलाक के बाद लंबे समय तक) हो सकती है। स्थायी अलिमनी आमतौर पर लंबी शादियों में दी जाती है, खासकर जब प्राप्तकर्ता पार्टनर की आय की क्षमता उम्र, स्वास्थ्य समस्याओं, या नौकरी के कौशल की कमी के कारण सीमित हो।
रिटायरमेंट और पेंशन
ग्रे डिवोर्स में, रिटायरमेंट बचत और पेंशन बहुत महत्वपूर्ण हो जाती हैं। क्योंकि दोनों पति-पत्नी अक्सर रिटायरमेंट की उम्र के करीब होते हैं, यह समझना बहुत जरूरी है कि रिटायरमेंट फंड्स को कैसे बांटा जाएगा।
- पेंशन और रिटायरमेंट फंड्स: भारत में, अगर पेंशन शादी के दौरान कमाई गई है, तो उसे आमतौर पर वैवाहिक संपत्ति माना जाता है। अन्य संपत्तियों की तरह, तलाक के दौरान पेंशन भी दोनों पार्टनरों में बांटी जा सकती है। इसके लिए कानूनी सलाह लेना जरूरी हो सकता है ताकि एक पार्टनर भविष्य में वित्तीय सुरक्षा से वंचित न हो जाए।
- सामाजिक सुरक्षा और लाभ: भारत में कुछ पश्चिमी देशों की तरह केंद्रीकृत सामाजिक सुरक्षा प्रणाली नहीं है। हालांकि, वरिष्ठ नागरिकों को कुछ कल्याणकारी लाभ मिलते हैं, जैसे स्वास्थ्य देखभाल में सब्सिडी, टैक्स लाभ और परिवहन में छूट। ये लाभ उस पार्टनर के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं, जिसकी तलाक के बाद आय कम हो।
हाल ही में, भारत में ‘ग्रे डिवोर्स’ की प्रवृत्ति में वृद्धि देखी जा रही है, विशेषकर 50 वर्ष और उससे अधिक आयु के जोड़ों में। इस संदर्भ में, 2024 में एक महत्वपूर्ण मामला “स्मिता शर्मा बनाम संजय शर्मा” सामने आया, जिसमें एक 69 वर्षीय पति ने अपनी 73 वर्षीय पत्नी को 3.7 करोड़ रुपये का स्थायी अलिमनी देने के लिए अपनी कृषि भूमि और फसलों को बेचने का निर्णय लिया। यह मामला हरियाणा के करनाल जिले का है, जहां पति-पत्नी ने 43 वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद तलाक लिया। इस समझौते के तहत, पत्नी और बच्चों ने पति की संपत्ति पर भविष्य में किसी भी दावे से मना कर दिया।
यह मामला उच्च न्यायालय में मेडिएशन के माध्यम से सुलझाया गया और तलाक की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया गया।
इस मामले ने भारत में ग्रे डिवोर्स के बढ़ते चलन और उससे संबंधित कानूनी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया है। विशेषकर, स्थायी अलिमनी की राशि और संपत्ति के विभाजन के मामलों में न्यायालयों की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह निर्णय यह दर्शाता है कि न्यायालयों ने इस प्रकार के मामलों में समझौते और मेडिएशन को प्रोत्साहित किया है, जिससे दोनों पक्षों के लिए संतुलित समाधान सुनिश्चित किया जा सके।
ग्रे डिवोर्स के मामलों में, विशेषकर जब दोनों पक्षों की आयु अधिक होती है, तो अलिमनी और संपत्ति के विभाजन के मामलों में न्यायालयों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। इस प्रकार के मामलों में, न्यायालय यह सुनिश्चित करते हैं कि दोनों पक्षों को उनके योगदान और भविष्य की आवश्यकताओं के आधार पर उचित न्याय मिले। यह निर्णय इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो ग्रे डिवोर्स के मामलों में न्यायिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।
ग्रे तलाक का भावनात्मक और सामाजिक प्रभाव क्या हो सकता है?
ग्रे डिवोर्स के कानूनी और वित्तीय प्रभाव बहुत महत्वपूर्ण होते हैं, लेकिन इसके भावनात्मक और सामाजिक पहलुओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उम्रदराज लोगों के लिए तलाक भावनात्मक तनाव का कारण बन सकता है, खासकर जो लोग लंबे समय तक शादी में रहे हैं। उन्हें अकेलापन, पहचान की कमी या भविष्य को लेकर चिंता हो सकती है।
- सामाजिक कलंक: भारत में, खासकर उम्रदराज लोगों के लिए तलाक अभी भी सामाजिक रूप से कुछ हद तक कलंकित हो सकता है, हालांकि यह अब कम होता जा रहा है। परिवार, दोस्त और समुदाय के लोग आलोचना कर सकते हैं, जिससे तलाकशुदा व्यक्ति को अपनी सामाजिक जिंदगी में मुश्किल हो सकती है।
- भावनात्मक समर्थन और काउंसलिंग: ग्रे डिवोर्स का सामना कर रहे उम्रदराज लोगों को भावनात्मक समर्थन की जरूरत होती है। थेरेपी, काउंसलिंग, या तलाकशुदा वृद्धों के लिए सपोर्ट ग्रुप्स की मदद से व्यक्ति तलाक के बाद के जीवन में ढलने में मदद पा सकते हैं और अपनी नई जिंदगी में खुश रहने के नए तरीके ढूंढ सकते हैं।
निष्कर्ष
ग्रे डिवोर्स एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति है, और वृद्धावस्था में तलाक के कानूनी पहलू समाज के लिए एक नया और चुनौतीपूर्ण विषय बन गए हैं। इस मामले में सभी कानूनी पहलुओं को समझना और सही मार्गदर्शन प्राप्त करना बेहद महत्वपूर्ण है। एक अनुभवी वकील से सहायता लेकर आप अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं और तलाक की प्रक्रिया को शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण तरीके से पूरा कर सकते हैं।
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FAQs
1. ग्रे डिवोर्स क्या है?
ग्रे डिवोर्स उस तलाक को कहा जाता है, जो 50 साल या उससे ज्यादा उम्र के लोगों के बीच होता है। यह तलाक लंबे समय तक चले विवाहों के बाद होता है, और अक्सर वृद्धावस्था में अपने जीवन की नई शुरुआत करने के लिए लिया जाता है।
2. ग्रे डिवोर्स के कारण क्या हो सकते हैं?
ग्रे डिवोर्स के कई कारण हो सकते हैं जैसे, बच्चे घर से बाहर चले जाते हैं, लंबी उम्र की वजह से नए बदलावों की जरूरत, आर्थिक स्वतंत्रता, और बदलते सामाजिक मानदंड, जिनसे तलाक लेने का विचार उत्पन्न होता है।
3. ग्रे डिवोर्स में संपत्ति का बंटवारा कैसे होता है?
ग्रे डिवोर्स में तलाक के दौरान संपत्ति का बंटवारा किया जाता है। इसमें वैवाहिक संपत्ति (जो शादी के दौरान एकत्रित की गई हो) और व्यक्तिगत संपत्ति (जो शादी से पहले या विरासत में मिली हो) शामिल होती है। यह बंटवारा कानूनी प्रक्रिया के तहत होता है और इसमें न्यायालय की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
4. क्या ग्रे डिवोर्स के दौरान पति/पत्नी को अलिमनी मिलती है?
हां, ग्रे डिवोर्स के दौरान अगर एक पक्ष वित्तीय रूप से दूसरे पर निर्भर है, तो उसे अलिमनी मिल सकती है। अलिमनी की राशि शादी की अवधि, दोनों पार्टनरों की वित्तीय स्थिति, और उनके स्वास्थ्य के आधार पर तय की जाती है।
5. ग्रे डिवोर्स का भावनात्मक और सामाजिक प्रभाव क्या हो सकता है?
ग्रे डिवोर्स का भावनात्मक प्रभाव गंभीर हो सकता है। तलाक के बाद वृद्ध व्यक्तियों को अकेलापन, पहचान की कमी, और भविष्य को लेकर चिंता हो सकती है। साथ ही, भारत में तलाक को अभी भी सामाजिक रूप से कुछ हद तक कलंकित माना जाता है, जो तलाकशुदा व्यक्ति को सामाजिक स्तर पर परेशान कर सकता है।