भारतीय संविधान के तहत ज्यूडिशियल रिव्यू क्या है?

भारतीय संविधान के तहत ज्यूडिशियल रिव्यू क्या है?

ज्यूडिशियल रिव्यू एक प्रक्रिया है जिसमें अदालतें जांचती हैं कि क्या कानून और सरकारी फैसले संविधान के अनुसार हैं। इसका मतलब है कि कोई भी कानून या सरकारी कार्रवाई संविधान की सीमाओं के बाहर नहीं होनी चाहिए और लोगों के अधिकारों का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।

अगर किसी को लगता है कि कोई कानून या सरकारी निर्णय संविधान के खिलाफ है, तो वे इसे अदालत में चुनौती दे सकते हैं। अदालत फिर यह देखती है कि उस कानून या फैसले ने संविधान का उल्लंघन किया है या नहीं। अगर हाँ, तो अदालत उस कानून या फैसले को बदल सकती है या रद्द कर सकती है।

यह प्रक्रिया इसलिए जरूरी है ताकि सरकार अपनी तय की गई सीमाओं में काम करे और लोगों के अधिकार सुरक्षित रहें। ज्यूडिशियल रिव्यू यह सुनिश्चित करती है कि सरकार के सभी फैसले सही और न्यायपूर्ण हों। कुल मिलाकर, यह प्रक्रिया सरकार के कामकाज को संविधान के अनुसार रखने में मदद करती है।

सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट को ज्यूडिशियल रिव्यू का अधिकार होता है। अनुच्छेद 32 के तहत, यदि किसी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो वह सुप्रीम कोर्ट में जा सकता है। अनुच्छेद 226 के तहत, हाई कोर्टमें भी इसी तरह की शिकायत की जा सकती है। ज्यूडिशियल रिव्यू राज्य और केंद्र दोनों के बनाए हुए कानूनों पर की जा सकती है।

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सुप्रीम कोर्ट का अधिकार

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 लोगों को सीधे सुप्रीम कोर्ट में जाने का अधिकार देता है यदि वे मानते हैं कि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। इसका मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति महसूस करता है कि उसकी स्वतंत्रताएँ जैसे बोलने की आज़ादी या व्यक्तिगत स्वतंत्रता की इज़्जत नहीं की जा रही है, तो वह सुप्रीम कोर्ट से मदद मांग सकता है। इसलिए, भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 भी मौलिक अधिकारों की रक्षा और गारंटी करने वाला माना जाता है।

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सुप्रीम कोर्ट विभिन्न प्रकार की रिट जारी कर सकती है, जैसे कि हबियस कॉर्पस, मंडेमस, सर्टियोरी, क्वो वारंटो, और प्रोहिबिशन। यह समझना ज़रूरी है कि संविधान के तहत दिए गए रिट  अधिकार खास शक्तियों के साथ आते हैं। ये शक्तियाँ केवल डिस्क्रेशनेरी होती हैं, लेकिन इनमें कोई भी असीमित सीमा नहीं होती। इसका मतलब है कि संविधान मनमानी निर्णयों को नहीं मानता। इसलिए, जब सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 32 के तहत किसी मामले का फैसला करती है, तो वह निर्णय ठीक और स्पष्ट तर्कों पर आधारित होना चाहिए।

अनुच्छेद 32 यह सुनिश्चित करता है कि लोग सीधे और जल्दी सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच सकें ताकि उनके अधिकारों की रक्षा हो सके। यह अनुच्छेद बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सरकार की कार्रवाई पर नजर रखता है और यह सुनिश्चित करता है कि सभी के अधिकार सुरक्षित रहें। 

हाई कोर्ट का अधिकार

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत, हाई कोर्ट को रिट  जारी करने का अधिकार मिलता है। इनमें हबियस कॉर्पस, मंडेमस, प्रोहिबिशन, क्वो वारंटो, सर्टियोरी, या इनमें से कोई भी रिट  शामिल हो सकती है। ये रिट किसी भी व्यक्ति या सरकारी अधिकारी के खिलाफ जारी की जा सकती हैं।

  • अनुच्छेद 226(1) के अनुसार, भारत के हर हाई कोर्ट को यह अधिकार है कि वह किसी भी व्यक्ति या सरकारी अधिकारी को आदेश दे सके और रिट जारी कर सक। ये आदेश संविधान के मौलिक अधिकारों और अन्य कानूनी अधिकारों की रक्षा के लिए होते हैं, और यह अदालत के इलाके में लागू होते हैं।
  • अनुच्छेद 226(2) के तहत, हाई कोर्ट किसी भी सरकारी अधिकारी या व्यक्ति को आदेश दे सकते हैं, भले ही वे कोर्ट के इलाके से बाहर हों। यह तब होता है जब मामला कोर्ट के क्षेत्र में पूरी तरह से जुड़ा हुआ हो, भले ही वह सरकारी अधिकारी या व्यक्ति कहीं और रहता हो।
  • अनुच्छेद 226(3) के अनुसार, अगर हाई कोर्ट बिना डिफेंडेंट  को रिट और सबूत दिए, या बिना उसे सुनने का मौका दिए कोई टेम्पररी ऑर्डर जैसे रोक लगाता है, तो अदालत को दो हफ्ते के अंदर उस रिट पर फैसला करना होगा। यह दो हफ्ते तब से शुरू होंगे जब रिट अदालत को मिले या दूसरी पार्टी को मिले, जो भी बाद में हो। अगर दो हफ्ते में फैसला नहीं होता, तो टेम्पररी ऑर्डर अपने आप खत्म हो जाएगा। अगर दो हफ्ते का आखिरी दिन अदालत के बंद होने का दिन हो, तो आदेश अगले दिन तक जारी रहेगा जब अदालत खुलेगी।
  • अनुच्छेद 226(4) के अनुसार, हाई कोर्ट को अनुच्छेद 226 के तहत दिए गए अधिकारों का मतलब यह नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट अपने अधिकारों का उपयोग अनुच्छेद 32(2) के तहत नहीं कर सकता।
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ज्यूडिशियल रिव्यू का मुख्य काम है यह देखना कि कानून, जो लेजिस्लेचर बनाती है, वे भारतीय संविधान के खिलाफ न हों। यह चेक करती है कि पास्ड किए गए कानून सही हैं या नहीं। इसके अलावा, ज्यूडिशियल रिव्यू यह भी सुनिश्चित करती है कि सभी लोगों को सही न्याय मिले। इसलिए, इसे संविधान का रक्षक भी कहा जा सकता है।

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