भारतीय दंड संहिता की धारा 107 किसी व्यक्ति द्वारा किसी अन्य व्यक्ति को अपराध करने के लिए उकसाने, प्रेरित करने या सहमति देने के बारे में है। इस धारा के तहत, व्यक्ति को अपराध में भागीदार के रूप में माना जाता है, भले ही उसने स्वयं अपराध न किया हो। धारा 107 में निम्नलिखित महत्वपूर्ण तत्व शामिल हैं:
- प्रेरणा देना या उकसाना: किसी व्यक्ति को अपराध करने के लिए उकसाना या प्रेरित करना, धारा 107 के तहत अपराध माना जाता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति से कहा कि “तुम इसे मार डालो,” या “तुम इसे लूट लो,” तो उसे प्रेरणा देना माना जाएगा।
- सहमति या साजिश का होना: किसी अपराध में भागीदारी के लिए किसी व्यक्ति की सहमति या साजिश का होना भी इस धारा के अंतर्गत आता है। यदि किसी व्यक्ति ने किसी अन्य के साथ मिलकर अपराध करने की योजना बनाई हो, तो उसे इस धारा के तहत सजा दी जा सकती है।
- अपराध की प्रकृति: यदि अपराध गंभीर है, जैसे हत्या, बलात्कार, डकैती, आदि, तो प्रेरणा देने वाले व्यक्ति की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। ऐसे मामलों में दोषी की सजा अधिक गंभीर हो सकती है, क्योंकि उकसाने वाला व्यक्ति अपराध की गंभीरता को और बढ़ावा दे रहा होता है।
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धारा 107 के कानूनी महत्व क्या है?
भारतीय दंड संहिता की धारा 107 का कानूनी महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह न केवल अपराध करने वाले व्यक्ति को बल्कि उसे उकसाने या प्रेरित करने वाले व्यक्ति को भी दोषी ठहराती है। यह उन मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जहां मुख्य अपराधी तो नहीं पकड़ा जाता, लेकिन उस अपराध को अंजाम देने के लिए प्रेरणा देने वाला व्यक्ति जिम्मेदार होता है।
इस धारा का उद्देश्य उन लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करना है, जो किसी अपराध की योजना बनाने या उसे अंजाम देने में मानसिक या भावनात्मक रूप से सक्रिय रूप से शामिल होते हैं। यह एक प्रकार से अपराधी की मानसिक स्थिति पर आधारित है, यानी व्यक्ति का इरादा क्या था और उसने कैसे किसी अन्य व्यक्ति को अपराध करने के लिए प्रेरित किया।
धारा 107 के अंतर्गत क्या सजा दी जाती है?
भारतीय दंड संहिता की धारा 107 के तहत दंड उस अपराध की गंभीरता पर निर्भर करता है जिसे उकसाया गया था। इस धारा के तहत दंड का निर्धारण निम्नलिखित रूपों में किया जा सकता है:
- सज़ा के तौर पर जेल हो सकती है: यदि किसी व्यक्ति ने किसी अन्य व्यक्ति को अपराध करने के लिए उकसाया है, तो उसे उस अपराध के लिए उतनी ही सजा मिल सकती है, जितनी सजा उस अपराध को करने वाले व्यक्ति को मिलेगी। यानी, उकसाने वाला भी उस अपराध के लिए उतना ही जिम्मेदार होगा जितना उस अपराध को करने की सज़ा होती है।
- सज़ा के तौर पर जुर्माना हो सकती है: जुर्माना भी एक प्रकार का दंड हो सकता है। यह उस व्यक्ति से लिया जाता है, जिसने किसी अन्य को अपराध करने के लिए प्रेरित किया। जुर्माने की राशि अदालत द्वारा तय की जाती है और यह अपराध की गंभीरता पर निर्भर करती है।
- दंड का संयोजन: कई मामलों में, आरोपी को कारावास और जुर्माने दोनों का दंड भी दिया जा सकता है। यह दंड अधिक गंभीर मामलों में लागू होता है, जहां अपराध की योजना या प्रेरणा अधिक स्पष्ट होती है।
उकसावे के तरीके क्या हैं?
- उकसावे द्वारा उकसाना (Abetment by Instigation): “उकसाना” का मतलब होता है किसी व्यक्ति को किसी कार्य को करने के लिए सक्रिय रूप से प्रेरित करना। इसका अर्थ है कि वह व्यक्ति किसी अन्य को सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से शब्दों के माध्यम से किसी काम को करने के लिए उकसाता है, जैसे प्रोत्साहित करना, उकसाना या उत्तेजित करना। सामान्य सलाह देना उकसाना नहीं माना जाता, बल्कि इसमें कुछ सक्रिय सुझाव या उत्तेजना शामिल होनी चाहिए। इसके अलावा, उकसाने के लिए यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी महत्वपूर्ण तथ्य को छिपा ले, जो कि जाहिर होना चाहिए, तो भी उकसाना माना जाएगा। उकसाना शब्द, पोस्ट, टेलीग्राम, फोन आदि के जरिए भी किया जा सकता है।
- साजिश द्वारा उकसाना (Abetment by Conspiracy): “साजिश द्वारा उकसाना” तब होता है जब किसी अपराध को अंजाम देने के लिए दो या दो से अधिक लोग मिलकर कोई समझौता करते हैं। हालांकि, धारा 120A आईपीसी के तहत सिर्फ समझौता करना अपराध होता है, लेकिन धारा 107 में साजिश के तहत उकसाने के लिए उस समझौते को लागू करने के लिए कोई ठोस कदम या अवैध काम करना जरूरी होता है। यानी, साजिश के बाद कोई न कोई अवैध क्रियावली करनी पड़ती है, तभी वह उकसाना माना जाएगा।
- जानबूझकर सहायता करके उकसाना (Abetment by Intentionally Aiding): “जानबूझकर मदद से उकसाना” में मुख्य रूप से सक्रिय भागीदारी की आवश्यकता होती है। केवल अपराध के स्थान पर मौजूद होना जानबूझकर मदद नहीं माना जाता, जब तक कि उस व्यक्ति का वहां होना अपराध को अंजाम देने का उद्देश्य न हो। उदाहरण के तौर पर, यदि एक पुजारी द्विविवाह में समारोह करता है, तो उसे जानबूझकर उस अपराध में मदद करने वाला माना जाएगा, क्योंकि उसने जानबूझकर उस अपराध को अंजाम देने में सहायता की।
धारा 107 से जुड़े न्यायिक दृष्टिकोण
सम्राट बनाम परिमल चटर्जी (1932) के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी अपराध का उकसावा तब माना जाएगा, जब कोई व्यक्ति उस अपराध को करने के लिए सक्रिय रूप से मदद करता या प्रोत्साहित करता है। साथ ही, जो अपराध किया जा रहा है, वह खुद भी कानून के तहत दंडनीय होना चाहिए।
भारतीय दंड संहिता की धारा 107 में तीन प्रमुख क्रियाएँ शामिल हैं: उकसाना, साजिश, और जानबूझकर मदद। मालन बनाम महाराष्ट्र राज्य (1957) के मामले में बंबई उच्च न्यायालय ने इस धारा के तहत अपराध के आवश्यक तत्वों को स्पष्ट किया। अदालत ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति किसी और को अपराध करने के लिए उकसाता है, या दूसरों के साथ मिलकर अपराध की साजिश करता है, या जानबूझकर किसी की मदद करता है, तो वह उकसाने का दोषी होगा।
रमन कुमार बनाम राज्य के मामले में, उच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि अगर किसी व्यक्ति ने केवल सलाह दी है, तो वह धारा 107 के तहत दोषी नहीं ठहराया जा सकता। यहाँ अदालत ने यह स्पष्ट किया कि केवल विचारशील सलाह देना उकसाने के बराबर नहीं माना जा सकता।
निष्कर्ष
भारतीय दंड संहिता की धारा 107 एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है, जो उन व्यक्तियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का प्रावधान करती है जिन्होंने किसी अन्य व्यक्ति को अपराध करने के लिए प्रेरित किया या उसकी साजिश में भाग लिया। यह धारा अपराध की साजिश, सहमति और प्रेरणा देने वाले मामलों में न्याय सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है। धारा 107 का उद्देश्य अपराधी की मानसिक स्थिति को समझना और उसे उन अपराधों के लिए जिम्मेदार ठहराना है जो उन्होंने दूसरों को करने के लिए प्रेरित किया। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि केवल अपराधी ही नहीं, बल्कि वे लोग भी जो किसी अपराध को बढ़ावा देते हैं, उनके खिलाफ भी कानूनी कार्रवाई की जा सके।
इस धारा के माध्यम से अपराध की रोकथाम में मदद मिलती है और समाज में अपराधों को बढ़ावा देने वालों को दंडित किया जाता है। यह समाज में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
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