भारतीय न्याय संहिता की धारा 351 क्या है आपराधिक धमकी और इसकी सजा?

What is Section 351 of Bharatiya Nyaya Sanhita criminal intimidation and its punishment

हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अक्सर ऐसी सिचुएशंस होती हैं जहाँ कोई व्यक्ति दूसरे को धमकी देकर उसे डराने या नियंत्रित करने की कोशिश करता है। ये धमकियाँ शारीरिक, मानसिक, या भावनात्मक हो सकती हैं और इससे डर और परेशानी होती है।

इस ब्लॉग में हम आपको बताएंगे कि “आपराधिक धमकी ” का क्या मतलब है, इसे धारा 351 के तहत कैसे परिभाषित किया गया है, और इसके लिए क्या सजा निर्धारित की गई है। अंत में, पाठकों को यह स्पष्ट समझ में आ जाएगा कि यह कानून भारत में कैसे काम करता है और असल ज़िंदगी में इसका क्या महत्व है।

क्या होती है आपराधिक धमकी?

आपकी सुरक्षा और सम्मान का उल्लंघन करने वाले कई अपराधों में से एक है आपराधिक धमकी। जब कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को उसके जीवन, शारीरिक सुरक्षा, या संपत्ति को नुकसान पहुँचाने की धमकी देता है, तो वह भारतीय कानून के तहत आपराधिक धमकी का अपराध करता है। यह एक गंभीर अपराध है क्योंकि इससे न केवल व्यक्ति का मानसिक संतुलन प्रभावित होता है, बल्कि यह समाज में भय और असुरक्षा का वातावरण भी उत्पन्न करता है।

हम अक्सर सुनते हैं कि लोग एक-दूसरे को जान से मारने, अपहरण करने या किसी अन्य प्रकार की हिंसा की धमकी देते हैं। ऐसे कृत्य न केवल मानवीय गरिमा को ठेस पहुँचाते हैं, बल्कि ये कानूनी दृष्टिकोण से भी आपराधिक होते हैं।

भारतीय न्याय संहिता की धारा 351 के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को ऐसी धमकी देता है, जो उस व्यक्ति को डरने या घबराने पर मजबूर कर दे, तो यह आपराधिक धमकी की श्रेणी में आता है। इसके तहत किसी के शरीर को नुकसान पहुँचाने या उसकी संपत्ति को नष्ट करने की धमकी दी जाती है, तो वह इस धारा में दंडनीय अपराध माना जाएगा।

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किन परिस्थितियों में धारा 351 लागू होती है?

  • किसी व्यक्ति ने दूसरे व्यक्ति को शारीरिक नुकसान पहुँचाने, उसकी संपत्ति को नुकसान पहुँचाने या उसे मानसिक रूप से परेशान करने की धमकी दी हो।
  • धमकी केवल मौखिक (जैसे गालियाँ देना या डराना) या लिखित (जैसे चिट्ठी, सोशल मीडिया संदेश) हो सकती है।
  • ऑनलाइन धमकी व्हाट्सएप, फेसबुक या अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर भी यदि धमकी दी जाती है तो इसे इस धारा में माना जाता है।
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उदाहरण के लिए, अगर कोई व्यक्ति आपको फोन कॉल या सोशल मीडिया के जरिए जान से मारने की धमकी देता है, तो वह धारा 351 के तहत आ सकता है।

सजा और दंड – कितना कठोर है कानून?

धारा 351(2)  के तहत अपराध सिद्ध होने पर सजा का प्रावधान स्पष्ट है। इस धारा में अपराधी को:

  • जेल में सजा हो सकती है, जो तीन साल तक बढ़ाया जा सकती है।
  • इसके अलावा जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
  • असंज्ञेय (Non Cognizable) अपराध होने के कारण पुलिस बिना वॉरंट के गिरफ्तारी नहीं कर सकती है।
  • जमानती अपराध (Bailable offence) होने के कारण, यदि किसी पर इस धारा के तहत आरोप साबित होते हैं, तो उसे जमानत मिल सकती है।

यदि यह अपराध पहली बार किया गया है, तो सजा कम हो सकती है, लेकिन यदि यह अपराध दोहराया जाता है, तो दंड अधिक कठोर हो सकता है।

डिजिटल युग में आपराधिक धमकी: सोशल मीडिया और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स

आजकल इंटरनेट का उपयोग बढ़ने के साथ-साथ धमकियाँ देने के तरीके भी बदल गए हैं। अब कोई व्यक्ति व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर या इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर धमकी दे सकता है। भारतीय कानून इस प्रकार की डिजिटल धमकियों को भी गंभीरता से लेता है।

धारा 351 के तहत डिजिटल धमकी को भी अपराध माना जाता है, और इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट, 2001 के तहत भी इसकी सजा निर्धारित की जाती है। उदाहरण के तौर पर, यदि किसी ने सोशल मीडिया के जरिए जान से मारने या अपहरण करने की धमकी दी, तो यह भी धारा 351 के तहत माना जाएगा।

धारा 351 के तहत शिकायत कैसे करें?

  • पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करें: यदि किसी ने आपको धमकी दी है, तो सबसे पहले आपको अपने नजदीकी पुलिस स्टेशन में जाकर शिकायत दर्ज करनी चाहिए। इसके लिए आपको एफआईआर (First Information Report) दर्ज करानी होगी, जो पुलिस को अपराध की जानकारी देती है और मामले की आधिकारिक शुरुआत होती है।
  • धमकी के साक्ष्य प्रस्तुत करें: अपनी शिकायत में आपको धमकी के पुख्ता साक्ष्य देने होंगे, ताकि पुलिस जांच कर सके और सही तरीके से कार्रवाई कर सके। इसके कुछ उदाहरण हैं:
    • कॉल रिकॉर्डिंग: यदि आपको फोन कॉल के माध्यम से धमकी दी गई है, तो उस कॉल की रिकॉर्डिंग को साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं।
    • चैट और संदेश: यदि आपको किसी व्हाट्सएप, एसएमएस या सोशल मीडिया के जरिए धमकी दी गई है, तो उन संदेशों की फोटो या स्क्रीनशॉट लेना और उन्हें पुलिस को देना जरूरी होगा।
    • गवाह: अगर धमकी देने के समय कोई अन्य व्यक्ति मौजूद था या उसे पता है, तो वह गवाह के तौर पर पुलिस के सामने अपना बयान दे सकता है, जो मामले की सच्चाई साबित करने में मदद करेगा।
  • पुलिस द्वारा जांच: एफआईआर दर्ज करने के बाद, पुलिस मामले की जांच करेगी। वह धमकी देने वाले व्यक्ति से पूछताछ करेगी, और साक्ष्यों के आधार पर कार्रवाई करेगी। अगर आरोपी के खिलाफ पुख्ता प्रमाण मिलते हैं, तो पुलिस उसे गिरफ्तार कर सकती है और कानूनी कार्रवाई शुरू कर सकती है।
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क्या आपराधिक धमकी के मामले को आपसी सहमति से सुलझाया जा सकता है?

  • आपराधिक धमकी के मामले में सुलह संभव है, लेकिन यह अदालत की स्वीकृति और मामले की गंभीरता पर निर्भर करता है।
  • अगर मामला गंभीर नहीं है, तो पीड़ित और आरोपी आपसी समझौते से इसे सुलझा सकते हैं, जिससे मामला बंद हो सकता है।
  • अदालत यह सुनिश्चित करती है कि सुलह दबाव, धमकी या अनुचित तरीके से नहीं हुई हो और न्यायपूर्ण हो।
  • यदि सुलह हो जाती है, तो अदालत उसे स्वीकार कर सकती है और आरोपी को सजा में रियायत दे सकती है।

विक्रम जोहार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, AIR 2019 SC 2109

इस मामले में में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा कि केवल गाली-गलौच करना या गंदे शब्दों से किसी को अपमानित करना आपराधिक धमकी का अपराध नहीं बनता। अगर आपराधिक धमकी का आरोप साबित करना है, तो अभियोजन को यह साबित करना होगा:

  • आरोपी ने किसी को धमकी दी।
  • वह धमकी उस व्यक्ति, उसकी प्रतिष्ठा या संपत्ति को नुकसान पहुँचाने की थी, या किसी और व्यक्ति को जो उस व्यक्ति से जुड़ा हो।
  • आरोपी ने धमकी दी थी ताकि उस व्यक्ति को डराकर उसे कुछ ऐसा करने के लिए मजबूर किया जा सके, जो वह कानूनी तौर पर नहीं करना चाहिए, या कुछ ऐसा छोड़ने के लिए, जिसे वह कानूनी तौर पर करने का हक रखता था।

बॉम्बे हाई कोर्ट का निर्णय (2024): तलाक के कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए मौखिक धमकी आपराधिक धमकी नहीं है

  • एबीसी बनाम महाराष्ट्र राज्य​, 2024  मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने BNS की धारा 351 के तहत दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कर दिया, यह कहते हुए कि तलाक के कागजात पर साइन करने की मौखिक धमकी आपराधिक धमकी नहीं है।
  • कोर्ट ने कहा कि किसी भी कार्य को आपराधिक धमकी माना जाने के लिए, उसका उद्देश्य व्यक्ति को डराना या उसे अपनी इच्छा के खिलाफ कुछ करने के लिए मजबूर करना होना चाहिए।
  • इस मामले में, जो धमकी दी गई थी, उसमें वह उद्देश्य नहीं था कि शिकायतकर्ता को डराया जाए, इसलिए कोर्ट ने एफआईआर को खारिज कर दिया।
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निष्कर्ष

यह निर्णय भारतीय न्यायपालिका के दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हैं कि आपराधिक धमकी केवल विकृत उद्देश्य या गुस्से से नहीं की जाती, बल्कि यह समाज में भय और असुरक्षा का कारण बनती है। इन मामलों में अदालत ने धमकी देने वाले व्यक्ति के मानसिक स्थिति और धमकी के गंभीर प्रभाव का मूल्यांकन किया और दोषियों को सजा दी। इन मामलों से यह भी स्पष्ट होता है कि डिजिटल माध्यमों से दी गई धमकियाँ भी कानूनी दृष्टिकोण से उतनी ही गंभीर मानी जाती हैं जितनी वास्तविक जीवन में दी गई धमकियाँ।

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FAQs

1. क्या गाली देना भी आपराधिक धमकी माना जा सकता है?

गाली देना आमतौर पर आपराधिक धमकी नहीं माना जाता, लेकिन यदि गाली में हिंसा की धमकी हो, तो इसे BNS धारा 351 के तहत अपराध माना जा सकता है।

2. क्या फोन पर धमकी देना BNS धारा 351 के अंतर्गत आता है?

हां, फोन पर दी गई धमकी BNS धारा 351 के तहत अपराध है, यदि धमकी से डर उत्पन्न हो और व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने का इरादा हो।

3. सोशल मीडिया पर धमकी का क्या उपाय है?

सोशल मीडिया पर धमकी मिलने पर पुलिस में शिकायत करें, स्क्रीनशॉट और अन्य सबूत एकत्र करें और कानूनी कार्रवाई के लिए वकील से सलाह लें।

4. अगर सबूत न हो तो क्या केस बनता है?

बिना सबूत के मामला कमजोर हो सकता है, लेकिन गवाहों के बयान या परिस्थितिजन्य साक्ष्य से भी मामला चल सकता है।

5. धारा 351 में गिरफ्तारी की संभावना क्या है?

धारा 351 में यह गैर-संज्ञेय अपराध है, इसलिए बिना वारंट गिरफ्तारी नहीं हो सकती, लेकिन जांच में बाधा डालने पर गिरफ्तारी हो सकती है।

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