भारत में धर्म के अनुसार एडॉप्शन प्रोसेस क्या है?

भारत में धर्म के अनुसार एडॉप्शन प्रोसेस क्या है?

भारत में सभी धर्मो के अलग अलग पर्सनल लॉ बनाये गए है। ताकि किसी धर्म के लोगों को परेशानी ना हो और वह अपनी ज़िंदगी अच्छे से जी पाए। इस पर्सनल लॉ के अंदर परसनल मैटर्स जैसे शादी, डाइवोर्स, चाइल्ड कस्टडी, मेंटेनेंस, आदि आता है। आईये जानते है इन पर्सनल लॉ के तहत अलग-अलग धर्मों के लिए एडॉप्शन प्रोसेस क्या है।

हिन्दुओं के लिए:-

हिन्दू धर्म के अन्तर्ग्रत सिख, जैन, और बौद्ध धर्म के लोह आते है। हिन्दुओं के लिए एडॉप्शन प्रोसेस के लिए एडॉप्शन एंड मेंटेंनेस एक्ट लागू किया गया था। इस एक्ट के अभी नियम इस प्रकार है – 

(1) जो व्यक्ति एडॉप्शन करना चाहता है, उसका बालिग़ होना जरूरी है। 

(2) एडॉप्शन करने के लिए व्यक्ति का हस्बैंड या वाइफ होना जरूरी नहीं है। एक अन मैरिड व्यक्ति भी बच्चे अडॉप्ट कर सकते है। 

(3) एडॉप्शन के समय अगर अडॉप्ट करने वाले व्यक्ति का कोई पार्टनर है, तो पार्टनरकी सहमति जरूरी है। 

(4) एडॉप्शन करने वाले व्यक्ति के पार्टनर को अगर कोर्ट से अयोग्य माना गया है तो उसकी सहमति के बिना भी एडॉप्शन किया जा सकता है। अकेले व्यक्ति को भी बच्चा अडॉप्ट करने का अधिकार है। 

(5) अगर व्यक्ति के पार्टनर की मृत्यु हो गयी है या कपल का डाइवोर्स हो चुका है तब भी पार्टनर की सहमति की जरूरत नहीं है। 

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मुसलमानों के लिए:- 

मुसलमानों को टोटल एडॉप्शन की परमिशन नहीं दी गयी है। गार्डियन एंड वार्ड एक्ट 1890 के सेक्शन 8 के तहत उन्हें गार्डियनशिप लेने की मान्यता प्राप्त है। इसके तहत उन्हें गार्डियनशिप के लिए बनाये गए सभी नियम और कानूनों का पालन करना होता है। जैसे कि बच्चे का सम्बन्ध उसके बायोलॉजिकल पेरेंट्स के साथ हमेशा बना रहना चाहिए। जबकि अब मुसलमानों को भी एडॉप्शन के अधिकार दिए गए है। यह सभी अधिकार उन्हें जुवेनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन एक्ट 2000 के तहत दिए गए है। धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत भारत में किसी भी व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह चाइल्ड अडॉप्ट कर सकते है। चाहे वह किसी भी धर्म या जाती का पालन करते हो। 

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ईसाईयों और पारसियों के लिए:- 

ईसाई और पारसी लोगों को पूरी तरह से एडॉप्शन की अनुमति नहीं दी गयी है। अगर कोई ईसाई या पारसी व्यक्ति चाइल्ड अडॉप्ट करना चाहता है तो गार्डियन एंड वार्ड एक्ट 1890 के तहत कानून से अनुमति ले सकते है। इस एक्ट के तहत कपल बच्चे के गार्डियन बन सकते है। गार्डियनशिप के नियमों के अनुसार वह बच्चे को अपने पास रखकर उसकी देखभाल कर सकते है, लेकिन पूरी तरह कानूनी रूप से उसे अडॉप्ट करके उसके माता-पिता नहीं बन सकते है।

इस एक्ट के अनुसार बच्चा बालिग होने मतलब 18 वर्ष का होने पर गार्डियन से सारे सम्बन्ध तोड़ कर जा सकता है। उस बच्चे के पास ईसाई कानून के अनुसार गार्डियन की संपत्ति या विरासत में कोई कानूनी अधिकार नहीं होगा। जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 के अनुसार किसी भी धर्म के पर्सनल लॉ को शामिल नहीं किया जाता है। जिसके तहत ईसाई और पारसी लोग भी बच्चा अडॉप्ट कर सकते है।

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