बेल और जमानत में क्या अंतर है?

बेल और जमानत में क्या अंतर है?

बेल एक कानूनी प्रक्रिया है जो हिरासत या जेल  में बंद कैदी अथवा विचाराधीन कैदी या आरोपी के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करती है। जब भी किसी आरोपी को इस बात का अंदेशा होता है कि उसे किसी फर्जी केस में गिरफ्तार किया जा सकता है अथवा उस पर लगाए गए आरोप निराधार है तो वह अग्रिम जमानत के लिए आवेदन करता है । जिससे कि वह खुद की सच्चाई साबित कर सके।                                                 

बेल क्या है ?

साफ शब्दों में कहें तो बेल किसी भी आरोपी के लिए न्यायालय द्वारा मिली क्लीन चिट है । बेल मिलने वाला आरोपी तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कानूनी तौर पर न्यायालय द्वारा उसे दोषी सिद्ध नहीं कर दिया जाता है। और यही कारण है बेल मिले व्यक्ति को आरोपी कहा जा सकता है परन्तु अपराधी बिल्कुल भी नहीं।

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बेल के मुख्य प्रकार होते हैं

अग्रिम बेल ( Anticipatory Bail)  अग्रिम बेल, इसे एडवांस बेल के नाम से भी जाना जाता है। इस तरह की बेल किसी आरोपी की गिरफ्तारी से पहले दी जाती है। जब भी किसी व्यक्ति को आशंका होती है कि उसे झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया जा सकता है तो वह सीआरपीसी की धारा 438 के अंतर्गत अग्रिम जमानत के लिए कोर्ट में अर्जी लगा सकता है।

नियमित बेल (रेगुलर बेल) नियमित बेल भी किसी आरोपी को अरेस्ट होने के बाद मिलती है  लेकिन इसके 

गारंटर द्वारा लिए एक निश्चित धनराशि अथवा कोई जमीन आदि  “मुचलके” के तौर पर जमा कराई जाती है।

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जमानत क्या होती है?

“जमानत” का मतलब होता है “सुरक्षा की गारंटी”। जब कोई व्यक्ति गिरफ्तार होता है, तो उसको केस से संबंधित कार्यों में न्यायालय में अपनी उपस्थिति का आश्वासन देने के लिए जमानत जमा करनी होती है। यह जमानत उस व्यक्ति के आरोपों के खिलाफ जमा की जाती है और उसके लिए एक आश्वासन होता है कि वह केस के दौरान पुलिस या कोर्ट के साथ सहयोग करेगा।

जमानत के मुख्य प्रकार होते हैं

नकद जमानत इसमें गिरफ्तार व्यक्ति को एक निश्चित रकम की नकद जमानत जमा करनी होती है। जब वह अपने केस के दौरान समय पर पुलिस या कोर्ट के साथ उपस्थित होता है, तो वह अपनी जमानत वापस पा सकता है।

अचल संपत्ति जमानत इसमें गिरफ्तार व्यक्ति की अचल संपत्ति, जैसे कि ज़मीन या मकान, की जमानत जमा की जाती है। इसका उपयोग वर्चस्व के लिए होता है और यह सुनिश्चित करता है कि गिरफ्तार व्यक्ति केस के दौरान समय पर उपस्थित होता है।

बेल और जमानत में अंतर 

बेल और जमानत दोनों ही कानूनी प्रक्रियाएं हैं जो आरोपी को उसके केस के दौरान सामान्य जीवन की ओर बढ़ने और स्वतंत्र रहने की अनुमति देती हैं, लेकिन उनमें थोड़ा अंतर होता है:

बेल आरोपी को केस के दौरान आजादी देता है, जबकि जमानत उसकी उपस्थिति को सुरक्षित करती है।

बेल के माध्यम से एक निश्चित राशि आरोपी अथवा उसका कोई संबंधित व्यक्ति जमा करता है जबकि जमानत में कोई भी अन्य व्यक्ति अपनी प्रापर्टी के साथ आरोपी की अदालत में उपस्थिति की गारंटी देता है।

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जमानत शब्द ज्यादातर भारत और पाकिस्तान में ही प्रचलित है जबकि अन्य देशों में बेल शब्द ही प्रचलन में है ।

बेल की मांग केस के प्रारंभिक चरण में की जा सकती है, जबकि जमानत केस के दौरान मिलती है।

अतः इस लेख के माध्यम से, हमने बेल और जमानत के महत्वपूर्ण अंतर को समझा है कि अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा की दृष्टि से इन उपायों का कैसे उपयोग किया जाता है ।

आपकी आरोप की प्रकृति और आपकी स्थिति के आधार पर, आपके केस में कौनसा उपाय सबसे उपयुक्त है, इस पर निर्भर करेगा। आपको अपने कानूनी वकील से सलाह लेना हमेशा बेहतर होता है, ताकि आप अपने केस के दौरान सही तरीके से निर्वहन कर सकें और अपने कानूनी अधिकारों की सुरक्षा कर सकें। 

यदि आप कानूनी सहायता के लिए किसी वकील की तलाश में हैं तो आज ही लीड इंडिया से संपर्क करें । 

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