कंटेस्टेड डाइवोर्स और म्यूच्यूअल डाइवोर्स में क्या फर्क है?

कंटेस्टेड डाइवोर्स और म्यूच्यूअल डाइवोर्स में क्या फर्क है?

शादियों को सबसे मजबूत बंधन माना जाता है। शादी एक ऐसा बंधन है, जो कपल को एक दूसरे के प्रति कमिटेड और डेडिकेटेड रखता है। लेकिन कई बार इस मीठे रिश्ते में भी खटास आ जाती है। जब शादियां अच्छी तरह से काम नहीं कर रही हो, तब अलग हो जाना ही बेहतर होता है। डाइवोर्स लेने के दो कानूनी तरीके है – ‘म्यूचुअल डाइवोर्स’ और ‘कंटेस्टेड डाइवोर्स’।

दोनों प्रकार के डाइवोर्स की तुलना:

(1) म्यूच्यूअल डाइवोर्स या आपसी सहमति से डाइवोर्स:

दोनों पार्टनर्स अपने आप को सही साबित करने या कुछ पाने के लिए लड़े बिना, आपस में सहमति से शादी को ख़त्म करने का फैसला लेते हैं। तो इसको “म्यूच्यूअल डाइवोर्स” कहा जाता है। इसमें कपल मिलकर डाइवोर्स की शर्तों का फैसला करते है। जैसे की बच्चों की कस्टडी, गुजारा भत्ता, और प्रॉपर्टी का बंटवारा आदि।

(2) कंटेस्टेड डाइवोर्स या एक तरफा डाइवोर्स:

एक पार्टनर डाइवोर्स फाइल करता है, लेकिन दूसरा पार्टनर डाइवोर्स नहीं लेना चाहता है। इसमें, एक पार्टनर को डाइवोर्स लेने के लिए दूसरे पार्टनर के खिलाफ कोर्ट में संघर्ष करना पड़ता है।

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डाइवोर्स पिटिशन के प्रकार:-

म्यूच्यूअल डाइवोर्स में, दोनों पार्टनर्स एक जॉइंट पिटिशन फाइल करते है। जबकि कंटेस्टेड डाइवोर्स में, एक पार्टनर कोर्ट में दूसरे पार्टनर के खिलाफ एक तरफ़ा डाइवोर्स की पिटिशन फाइल करता है।

दोनों डाइवोर्स के आधार:-

म्यूच्यूअल डाइवोर्स में, सबसे कॉमन आधार है कि कपल के रिलेशन खराब और तनावपूर्ण है। और उनकी शादी और अंतहीन कष्टों को खत्म करने की जरूरत है।

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हालाँकि, एक तरफा डाइवोर्स के आधार हैं – मानसिक क्रूरता, अडल्ट्री, शारीरिक क्रूरता, मानसिक बीमारी, दुनिया का त्याग, धर्म परिवर्तन, कोई फैलने वाली यौन बीमारी आदि। इनमें से किसी भी आधार पर कपल डाइवोर्स ले सकते है।

कोर्ट की कार्यवाही:- 

म्यूच्यूअल डाइवोर्स की कार्यवाही में यह स्टेप्स शामिल होते हैं –

(1) पहला प्रस्ताव: सबसे पहले डाइवोर्स की जॉइंट पिटीशन फाइल करनी होती है।

(2) सुलह कराना: अगर कोर्ट को लगता है कि कपल के बीच सुलह हो सकती है। तो वह कपल को फिर से सोंचने के लिए कुछ टाइम देते है।

(3) दूसरा प्रस्ताव: पहली पिटीशन और दूसरी पिटीशन फाइल होने में कम से कम 6 महीने का गैप होना चाहिए। इस बीच अगर कपल की सुलह होती है, तो पहली पिटीशन वापस ले ली जाती है। वरना दूसरी पिटीशन फाइल करवा दी जाती है।

(4) डाइवोर्स डिक्री: दूसरी पिटीशन फाइल करने के बाद, अगर कोर्ट को लगता है कि अब शादी को बचाया नहीं जा सकता है। तो कोर्ट डाइवोर्स की डिक्री जारी कर देती है।

एक तरफ़ा डाइवोर्स की कार्यवाही में यह स्टेप्स शामिल हैं –

(1) पहला प्रस्ताव: जिस पार्टनर को डाइवोर्स लेना है, वो अपने पार्टनर के खिलाफ डाइवोर्स की पिटीशन फाइल करता है।

(2) दूसरे पार्टनर को नोटिस: पहले पार्टनर द्वारा कोर्ट में डाइवोर्स की पिटीशन फाइल की गयी है, इसका “डाइवोर्स नोटिस” दूसरे पार्टनर के पास भेजा जाता है।

(3) स्टेटमेंट रिकॉर्डिंग: इसके बाद दोनों पार्टनर्स को कोर्ट में पेश होना होता है और उनके ब्यान दर्ज किये जाते है।

(4) क्रॉस-एग्जामिनेशन: इस स्टेप में कपल के द्वारा पेश किये गए सबूतों और गवाहों की क्रॉस-एग्जामिनेशन की जाती है।

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(5) डाइवोर्स डिक्री: क्रॉस-एग्जामिनेशन में सब ठीक रहता है, तो कोर्ट डाइवोर्स की डिक्री जारी कर देती है।

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