पैरोल एक ऐसा तरीका है जिसमें जेल से बाहर आते हुए व्यक्ति को अपनी पूरी सजा खत्म किए बिना रिहा किया जाता है, लेकिन उन्हें कुछ नियमों का पालन करना होता है और एक पैरोल अधिकारी की निगरानी में रहना होता है। इसका मतलब है कि वे जेल से बाहर तो हैं, लेकिन उन्हें नियमित रूप से रिपोर्ट करनी होती है और तय किए गए शर्तों का पालन करना होता है।
प्रॉबेशन एक अलग तरीका है जिसमें जेल जाने के बजाय अपराधी को समाज में रहने की इजाजत दी जाती है, लेकिन उन्हें एक प्रॉबेशन अधिकारी की निगरानी में रहना होता है। वे जेल में नहीं होते, बल्कि घर पर रहते हैं और कुछ विशेष नियमों का पालन करते हैं। यह प्रणाली उन्हें सही रास्ते पर बने रहने और दोबारा अपराध करने से रोकने में मदद करती है, साथ ही समाज में सही तरीके से रहने के लिए समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान करती है।
पैरोल और प्रॉबेशन दोनों का उद्देश्य सजा देने के साथ-साथ सुधार पर ध्यान देना है। ये तरीकों से अपराधियों को यह साबित करने का मौका मिलता है कि वे कानून के अनुसार रह सकते हैं, जबकि उनकी निगरानी भी की जाती है। इसका लक्ष्य है कि अपराधियों को समाज में सफलतापूर्वक वापस लाया जा सके, समाज की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके और दोबारा अपराध होने की संभावना कम की जा सके।
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पैरोल और प्रॉबेशन से जुड़े नियम
भारत में प्रॉबेशन से संबंधित प्रावधान 1958 के “प्रॉबेशन ऑफेंडर्स एक्ट” के तहत दिए गए हैं। पहले, ये प्रावधान 1973 के “कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर” की धारा 360 में शामिल थे। लेकिन अब, सी.आर.पी.सी को “भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023” से बदल दिया गया है, और इस नए कानून के तहत प्रॉबेशन से संबंधित प्रावधान अब धारा 401 में दी गई है।
भारत में पैरोल के नियम 1894 के “प्रिज़न एक्ट” और 1900 के “प्रिज़नर्स एक्ट” में दिए गए हैं। लेकिन भारत में पैरोल के लिए कोई एक ही कानून नहीं है। हर राज्य अपने हिसाब से पैरोल के नियम बना सकता है। इसलिए, हर राज्य में पैरोल के नियम अलग अलग है।
पैरोल और प्रॉबेशन की शर्तें
पैरोल पर रहने वाले लोगों को पैरोल बोर्ड द्वारा तय की गई कुछ शर्तों का पालन करना होता है। इनमें नियमित रूप से अपने पैरोल अधिकारी से मिलना, नौकरी या शिक्षा से जुड़ा कोई कार्यक्रम करना, नशे और शराब से दूर रहना, और पीड़ितों या अपराध रिकॉर्ड वाले लोगों से संपर्क न करना, ये सब चीज़ शामिल हो सकती है।अगर वे इन शर्तों का उल्लंघन करते हैं, तो उन्हें ज्यादा निगरानी, इलेक्ट्रॉनिक मॉनिटरिंग, या फिर से जेल भेजे जाने जैसी सज़ाएँ मिल सकती हैं।
जब किसी को प्रोबेशन मिलती है, तो उसे कुछ खास नियम मानने होते हैं। इसमें शामिल होता है कि वह अपने प्रोबेशन अधिकारी से नियमित रूप से मिले, सुधार के कार्यक्रमों में भाग ले, समाज सेवा करे, जुर्माना या मुआवजा अदा करे, और कोर्ट के आदेशों का पालन करे। अगर वह इन नियमों का पालन नहीं करता, तो उसे कड़ी निगरानी, प्रोबेशन रद्द होने, या और सजा मिल सकती है।
पैरोल और प्रॉबेशन के गुण और दोष
प्रोबेशन के कुछ फायदे हैं। यह पहली बार अपराध करने वाले लोगों को जेल में पुराने अपराधियों के खराब प्रभाव से बचाता है। यह खासतौर पर युवा अपराधियों को सुधारने और उन्हें वापस सामान्य जीवन में लाने में मदद करता है। इससे जेलों में भीड़ कम होती है और लोगों को दूसरी बार सही रास्ते पर आने का मौका मिलता है।
लेकिन, कभी-कभी अपराधियों को पूरी सजा से बचाया जा सकता है। इससे यह गलत संदेश भी जा सकता है कि अपराध करने पर भी उन्हें सजा नहीं मिलेगी।
अगर हम पैरोल की बात करें तो, यह कैदियों को अपने परिवार और समाज से जुड़े रहने का मौका देती है, जिससे वे अपने व्यक्तिगत मुद्दों को सुलझा सकते हैं और परिवार की जरूरी बातों में शामिल हो सकते हैं। यह उन्हें जेल की नकारात्मक प्रभावों से कुछ समय के लिए राहत देती है और उनकी सुधार और पुनर्वास में मदद करती है। पैरोल भी कैदियों को जेल में अच्छा व्यवहार बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करती है, क्योंकि अच्छा व्यवहार उन्हें पैरोल का मौका दिला सकता है।
हालांकि, जेल में अच्छा व्यवहार करने का मतलब यह नहीं है कि कैदी बाहर आने के बाद भी अच्छा व्यवहार करेंगे। इसके अलावा, राजनीतिक हस्तक्षेप की संभावना भी होती है, क्योंकि जिन कैदियों के पास राजनीतिक संपर्क होते हैं, उन्हें पैरोल मिलने में आसानी हो सकती है।
निष्कर्ष
पैरोल और प्रोबेशन जेल के बाहर सुधार के तरीके हैं जो कैदियों को समाज में फिर से शामिल होने का मौका देते हैं। ये सिस्टम जेल की नकारात्मक प्रभावों से बचाने और सुधार की दिशा में मदद करते हैं। हालांकि, सजा से बचने का जोखिम और राजनीतिक हस्तक्षेप जैसी चुनौतियाँ भी हैं। इसलिए, इन तरीकों का सही ढंग से उपयोग और निगरानी आवश्यक है ताकि समाज में सुरक्षा और न्याय कायम रहे।
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