तलाक लेने की सबसे आसान प्रक्रिया कौन सी है?

What is the easiest process for getting a divorce

अक्सर लोगों को लगता है कि तलाक लेना मतलब एक लंबी कोर्ट की लड़ाई, सालों-साल चलने वाली तारीखें और मानसिक तनाव। पर सच्चाई ये है कि अगर पति-पत्नी आपसी सहमति से अलग होना चाहें, तो ये प्रक्रिया काफी सरल हो सकती है।
तलाक का मतलब सिर्फ रिश्ता खत्म करना नहीं, बल्कि ज़िंदगी में नए अध्याय की शुरुआत करना है, बिना कड़वाहट और कानूनी झंझट के।

तलाक के प्रकार – आसान और जटिल प्रक्रिया में क्या फर्क है?

भारत में तलाक के मुख्य दो प्रकार होते हैं:

आपसी सहमति से तलाक (Mutual Consent Divorce):

  • जब पति-पत्नी दोनों इस बात पर सहमत हों कि वे अब साथ नहीं रह सकते।
  • बिना विवाद, आपसी समझौते के आधार पर तलाक लिया जाता है।
  • सबसे आसान, शांतिपूर्ण और तेज़ तरीका।

एकतरफा तलाक (Contested Divorce):

  • जब एक पक्ष तलाक चाहता है लेकिन दूसरा नहीं।
  • इसमें आरोप-प्रत्यारोप, कोर्ट में सबूत, गवाह, और लंबी प्रक्रिया शामिल होती है।

इसके अलावा धार्मिक आधार पर तलाक की प्रक्रिया भी थोड़ी अलग होती है — जैसे हिंदू विवाह अधिनियम, मुस्लिम कानून, ईसाई डाइवोर्स एक्ट आदि।

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सबसे आसान तरीका – आपसी सहमति से तलाक क्या है?

यह वो प्रक्रिया है जिसमें दोनों पक्ष यह स्वीकार करते हैं कि उनका रिश्ता अब आगे नहीं बढ़ सकता। वे शांतिपूर्वक, आपसी समझौते से अपनी शादी को खत्म करना चाहते हैं।

इसमें जरूरी है कि:

  • शादी को कम-से-कम 1 साल हो चुका हो।
  • दोनों पति-पत्नी तलाक के लिए तैयार हों।
  • सभी विवाद जैसे गुज़ारा भत्ता, बच्चों की कस्टडी आदि पहले ही तय कर लिए गए हों।

आपसी सहमति से तलाक की कानूनी प्रक्रिया क्या है?

आपसी सहमति और निर्णय:

सबसे पहले दोनों पक्षों को तय करना होता है कि वे तलाक लेना चाहते हैं और सभी बातों पर सहमत हैं।

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पहली याचिका दाखिल करना (First Motion):

  • दोनों पक्ष मिलकर फैमिली कोर्ट में याचिका दाखिल करते हैं।
  • इस याचिका में शादी की तारीख, अलग रहने की अवधि, कारण और आपसी समझौते का ज़िक्र होता है।

छह महीने की प्रतीक्षा अवधि (Cooling-off period):

  • कोर्ट छह महीने का समय देता है ताकि दोनों पक्ष सोच-समझ लें।
  • अगर फिर भी तलाक ही चाहते हैं, तो अगला चरण शुरू होता है।
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कोर्ट को लगता है कि रिश्ता पूरी तरह खत्म हो गया है, तो यह छह महीने की अवधि माफ की जा सकती है।

दूसरी याचिका और अंतिम सुनवाई (Second Motion):

  • छह  महीने बाद दोनों पक्ष फिर कोर्ट में आते हैं और अपनी सहमति दोहराते हैं।
  • कोर्ट पूछताछ करता है कि तलाक जबरदस्ती तो नहीं है।

डिक्री और वैध तलाक आदेश:

अगर सब कुछ सही रहता है, तो कोर्ट तलाक की डिक्री (आदेश) जारी करता है और दोनों कानूनी रूप से अलग हो जाते हैं।

किन दस्तावेजों की ज़रूरत होती है?

  • विवाह प्रमाणपत्र
  • दोनों का पहचान पत्र (आधार कार्ड, वोटर ID आदि)
  • एड्रेस प्रूफ
  • पासपोर्ट साइज फोटो
  • आपसी समझौते का मसौदा (बच्चों की कस्टडी, गुज़ारा भत्ता आदि)

तलाक के लिए वकील की भूमिका और कानूनी सलाह

  • आपसी तलाक में एक ही वकील दोनों का केस संभाल सकता है, अगर दोनों पक्ष सहमत हों।
  • हालांकि, यह बेहतर है कि दोनों पक्ष अलग-अलग वकील रखें ताकि स्वतंत्र राय मिल सके।
  • वकील सही दस्तावेज़ तैयार करवाने, कोर्ट प्रक्रिया को सरल बनाने और आपके अधिकार सुनिश्चित करने में मदद करता है।

कोर्ट में पेशी – क्या कोर्ट जाना अनिवार्य होता है?

  • जी हां, कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना ज़रूरी होता है।
  • आमतौर पर दो बार कोर्ट जाना पड़ता है, फर्स्ट मोशन और सेकंड मोशन  पर।
  • कुछ मामलों में ऑनलाइन सुनवाई भी संभव है, लेकिन उसकी अनुमति कोर्ट को देनी होती है।
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तलाक की लागत – कितने खर्च की अपेक्षा रखें?

  • कोर्ट फीस: ₹500 – ₹2000
  • वकील की फीस: ₹10,000 – ₹50,000 (शहर और अनुभव पर निर्भर करता है)
  • डॉक्युमेंटेशन, नोटरी आदि: ₹2,000 – ₹5,000

आपसी तलाक की कुल लागत आमतौर पर ₹15,000 से ₹70,000 के बीच हो सकती है, जो आपके शहर, वकील की फीस और अन्य खर्चों पर निर्भर करती है।

तलाक को आसान बनाने के लिए व्यवहारिक सुझाव

  • संवाद में शांति रखें, आरोप-प्रत्यारोप से बचें
  • आपसी समझौता दस्तावेज़ अच्छे से तैयार करें
  • बच्चों के भविष्य को प्राथमिकता दें
  • परिवार और बाहरी दखल से बचें — यह व्यक्तिगत निर्णय है

एकतरफा तलाक की तुलना – क्यों यह कठिन और समय लेने वाला होता है?

  • इसमें आरोप, सबूत, गवाह और लंबी सुनवाई होती है
  • मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक नुकसान होता है
  • केस कई सालों तक चल सकता है
  • बच्चों पर भी इसका प्रभाव पड़ता है

इसलिए आपसी सहमति से तलाक कहीं अधिक व्यावहारिक, तेज़ और शांतिपूर्ण विकल्प होता है।

कौन-कौन से कानून लागू होते हैं आपसी तलाक में?

धर्मलागू कानूनप्रावधान
हिंदूहिंदू विवाह अधिनियम, 1955धारा 13B – आपसी सहमति से तलाक
मुस्लिमशरीयत कानूनतलाक-ए-मुबरात (Mutual Divorce)
ईसाईइंडियन डाइवोर्स एक्ट, 1869सेक्शन 10A
पारसीपारसी मैरिज एंड डाइवोर्स एक्ट, 1936सेक्शन 32B
अंतर्धार्मिक विवाहविशेष विवाह अधिनियम, 1954धारा 28

तलाक के बाद क्या करें? – कानूनी, सामाजिक और व्यक्तिगत कदम

  • तलाक डिक्री की प्रति संभालकर रखें
  • सभी दस्तावेज़ों में मैरिटल स्टेटस अपडेट करें
  • बच्चों की कस्टडी और भरण-पोषण के आदेशों का पालन करें
  • नया जीवन शुरू करने के लिए मानसिक और भावनात्मक तैयारी करें
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अमरदीप सिंह बनाम हरवीन कौर (2017)

इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि पति-पत्नी दोनों आपसी सहमति से तलाक चाहते हैं और कोर्ट को लगता है कि उनका रिश्ता पूरी तरह से खत्म हो चुका है, तो 6 महीने की प्रतीक्षा अवधि (Cooling-off period) को माफ किया जा सकता है। यह निर्णय तलाक की प्रक्रिया को तेज़ और सरल बनाने में सहायक है।

निष्कर्ष

तलाक जीवन का कठिन चरण हो सकता है, लेकिन आपसी समझदारी और संवाद से इसे सम्मानजनक तरीके से पूरा किया जा सकता है। आपसी सहमति से तलाक की प्रक्रिया तेज़ होती है, खर्च भी कम आता है और मानसिक तनाव भी बहुत हद तक कम हो जाता है। कोर्ट की लंबी प्रक्रिया और कानूनी लड़ाई से बचकर यदि दोनों पक्ष समझदारी से निर्णय लें, तो तलाक केवल एक अंत नहीं, बल्कि एक नई, बेहतर शुरुआत का रास्ता बन सकता है।

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FAQs

1. क्या 6 महीने की प्रतीक्षा अवधि माफ हो सकती है?

हां, अगर कोर्ट को लगता है कि रिश्ता पूरी तरह खत्म हो गया है।

2. क्या पति-पत्नी अलग-अलग शहर में रहते हुए तलाक ले सकते हैं?

हां, लेकिन कोर्ट में व्यक्तिगत उपस्थिति ज़रूरी होती है या फिर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से अनुमति लेनी होती है।

3. क्या तलाक ऑनलाइन हो सकता है?

कुछ मामलों में कोर्ट वीडियो सुनवाई की अनुमति देता है, लेकिन पूरी प्रक्रिया अभी भी फिज़िकल कोर्ट में होती है।

4. अगर एक पक्ष सहमति से पीछे हट जाए तो क्या होगा?

तलाक रुक सकता है और आपको फिर एकतरफा तलाक की प्रक्रिया अपनानी पड़ सकती है।

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