बीएनएसएस की धारा 180 के तहत गवाहों की जांच और बयान दर्ज करने की प्रक्रिया का क्या महत्व है?

बीएनएसएस की धारा 180 के तहत गवाहों की जांच और बयान दर्ज करने की प्रक्रिया का क्या महत्व है?

बीएनएसएस की धारा 180 पुलिस द्वारा गवाहों की जांच के तरीके को बताती है,  जिसमे पुलिस को गवाहों से पूछताछ करते समय किस तरह की प्रक्रिया अपनानी चाहिए, । यह प्रक्रिया अपराध के मामलों में बहुत महत्वपूर्ण होती है।

बीएनएसएस की धारा 180 क्या है?

  • धारा 180 (1) में कहा गया है कि, इस अध्याय के तहत, कोई भी पुलिस अधिकारी या राज्य सरकार द्वारा निर्धारित रैंक का अधिकारी, किसी भी व्यक्ति से मौखिक पूछताछ कर सकता है जो मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के बारे में जानकारी रखता हो, लेकिन ये तभी संभव होगा जब इसकी आवश्यकता हो
  • धारा 180 (2) के अनुसार, ऐसे व्यक्ति को मामले से संबंधित सभी सवालों का सच-सच जवाब देना चाहिए , किन्तु  उन सवालों के जिनका जवाब नहीं देना चाहिए  जिससे  उन्हें किसी अपराध या दंड का सामना करना पड़े । नंदिदनी सतपथी बनाम पी. एल. दानी (1978) के मामले में कहा गया कि किसी भी आरोपी को खुद के खिलाफ बयान देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। उसे चुप रहने का अधिकार है। यह जरूरी है क्योंकि हर व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक उसके खिलाफ अपराध  साबित न हो जाए। यह उपधारा खुद को दोषी साबित होने का  बचाव  देती है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20(3) के तहत एक महत्वपूर्ण अधिकार है।
  • धारा 180 (3) के अनुसार, पुलिस अधिकारी जांच के दौरान दिए गए किसी भी बयान को लिख सकते हैं। अगर वे ऐसा करते हैं, तो उन्हें हर व्यक्ति के बयान का अलग -अलग और सही रिकॉर्ड रखना होगा।
  • इस उप-धारा के तहत दिया गया बयान ऑडियो और वीडियो इलेक्ट्रॉनिक तरीके से भी रिकॉर्ड किया जा सकता है। इससे बयान को सिर्फ लिखित रूप तक ही सिमित नहीं किया गया है जभी इस धरा के अंतर्गत आने वाले सभी बयांनो को  इलेक्ट्रॉनिक माधयमो के द्वारा सही सही पूरा रिकॉर्ड रखा जा सकता है I
  • इसके अलावा, अगर किसी महिला के खिलाफ बीएनएसएस की धारा 64, 65, 66, 67, 68, 69, 70, 71, 74, 75, 76, 77, 78, 79, या 124 के तहत कोई अपराध हुआ है या उसका प्रयास किया गया है, तो उसकी गवाही एक महिला पुलिस अधिकारी या किसी महिला अधिकारी द्वारा रिकॉर्ड की जाएगी।

बीएनएसएस की धारा 180 का महत्व

  • धारा 180 बीएनएसएस गवाहों की जांच के लिए एक साफ-सुथरी प्रक्रिया देती है। यह जांच को आसान बनाएगी और आरोपियों के खिलाफ मजबूत केस बनाने में मदद करेगी। इससे मामले जल्दी निपटाने में भी आसानी हो
  • पुलिस को गवाहों के बयानों को सही तरीके से रिकॉर्ड करना जरूरी है, जिससे पुलिस की जवाबदेही बढ़ेगी। लिखित बयान बाद में मुकदमे में मददगार साबित हो सकते हैं। यह तरीके से गलतफहमियां कम होंगी और जांच के दौरान गवाहों की छेड़छाड़ की संभावना भी घटेगी।
  •  इस धारा में आधुनिक तरीका भी जोड़ा गया है, जिससे बयान ऑडियो-वीडियो के जरिए रिकॉर्ड किए जा सकते हैं। इससे पूरा काम और भी साफ-सुथरा और स्पष्ट हो जाएगा।
  • यह धारा लोगों के अधिकारों की रक्षा और पुलिस को सबूत इकट्ठा करने की अनुमति देने के बीच संतुलन बनाती है। इसमें यह भी ध्यान रखा गया है कि सबूतों की सही तरीके से जांच की जाए।

यदि बयान दर्ज करने में देरी हुई तो क्या होगा?

गवाहों के बयान जल्दी से जल्दी दर्ज किए जाने चाहिए। लेकिन, कुछ घंटों की देरी भी आमतौर पर बड़ा मुद्दा नहीं होती। यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि देरी जानबूझकर नहीं की गई हो ताकि आरोपी अपने बचाव के लिए तैयारी कर सके।

दिल्ली राज्य बनाम रविकांत शर्मा (2007) के मामले में, कोर्ट ने कहा कि गवाहों के बयान का केवल सारांश देना सही नहीं है, क्योंकि इन बयानों को पूरी तरह से दर्ज किया जाना चाहिए।

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जांच अधिकारी आरोपी को ऐसे सवालों का जवाब देने के लिए बाध्य  नहीं कर  सकते जिनसे वह किसी और केस में दोषी साबित हो या फंस सकते  हो , भले ही उस समय की जांच उस दोष से जुड़ी न हो। अगर पुलिस को दिए गए बयान और कोर्ट में दिए गए सबूतों में फर्क हो, तो पुराने बयान को नए बयान को गलत साबित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, 

पी. ऐलाम्मा बनाम टी. ज़ेडसन (1988) केस में कहा गया। अगर कुछ महत्वपूर्ण बातें छूट गई हैं, तो कोर्ट देखेगी कि यह कितना महत्वपूर्ण है। अगर वह महत्वपूर्ण, तो इसे बड़ी गलती माना जाएगा।

हरबीर सिंह बनाम शीशपाल (2016) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने यह तय किया कि पुलिस द्वारा रिकॉर्ड किए गए गवाह के बयान का उपयोग कोर्ट में उनकी गवाही को चुनौती देने के लिए किया जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि अगर गवाह का बयान पुलिस के सामने दिए गए बयान और कोर्ट में दिए गए बयान में फर्क है, तो इसे गवाह की विश्वसनीयता को कमजोर करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इस केस ने यह स्पष्ट किया कि गवाह के बयानों में अंतर को ध्यान से देखना जरूरी है ताकि न्याय सही तरीके से हो सके। 

हालांकि जांच अधिकारी के नोट्स में कुछ समस्याएं हो सकती हैं, ये कोर्ट केस शुरू करने के लिए जरूरी हैं। धारा 161 का मकसद आरोपी को सख्त पुलिस और झूठे गवाहों से बचाना है। अगर पुलिस की बेहतर निगरानी हो, तो गवाहों की पूछताछ बेहतर होगी और लोग ईमानदारी से गवाही देंगे।

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