भारत में अडल्ट्री से जुड़े नए कानून क्या है?

भारत में अडल्ट्री से जुड़े नए कानून क्या है

“एक्स्ट्रा मैरिटल सेक्स” को अडल्ट्री कहते है। मतलब, जब एक मैरिड व्यक्ति अपनी वाइफ या हस्बैंड के अलावा किसी और के साथ सेक्सुअल रिलेशन्स बनाता है, तो इसे अडल्ट्री माना जाता है। इसे भारतीय समाज में सम्मान की नज़र से नहीं देखा जाता। भारत के पुराने क़ानून के अनुसार, वाइफ को हस्बैंड की पर्सनल प्रॉपर्टी मानते थे।

अगर एक पुरुष ने किसी अन्य पुरुष की वाइफ के साथ सेक्सुअल रिलेशन बनाये, तो मतलब उसने हस्बैंड की प्रॉपर्टी पर अटैक किया। जिसके लिए उस अडल्ट्री करने वाले पुरुष को आईपीसी के सेक्शन 497 के तहत, पांच साल की जेल और जुर्माना दोनों से दण्डित किया जाता था। लेकिन वाइफ को सज़ा नहीं दी जाती थी। इस बात पर थोड़ा भी ध्यान नहीं दिया जाता था कि महिला ने अपनी मर्ज़ी से रिलेशन्स बनाये होंगे। जिससे साफ़ पता लगता है कि इस सेक्शन में कमियां है। आईये आगे इस सेक्शन की और भी कई कमियों के बारे में जानते है।

आईपीसी के सेक्शन 497 की कमियां:- 

इस सेक्शन की सारी कमियां इस प्रकार है –

(1) सिर्फ पुरुष ही उत्तरदायी:- 

इस कानून के तहत अडल्ट्री में शामिल पुरुष ही केवल इसके लिए आपराधिक रूप से उत्तरदायी है और उसी ने महिला को ऐसा करने के लिए बहकाया है। किसी भी सिचुएशन में इसमें शामिल महिला को गलत नहीं ठहराया जाएगा। और ना ही यह माना जायेगा की महिला ने पुरुष को उकसाया है।

(2) महिला द्वारा अडल्ट्री करने पर कोई सज़ा नहीं:-

यह कानून सिर्फ पुरुष को सज़ा देता है। उस सिचुएशन में इस कानून के कोई मायने नहीं है। जहां एक महिला, किसी और महिला के हस्बैंड के साथ सेक्सुअल रिलेशन बनाती है। तो अडल्ट्री करने वाली उस महिला को कोई सजा नहीं दी जाएगी।

(3) समलैंगिक रिलेशन:-

अगर मैरिड हस्बैंड अपनी वाइफ के अलावा किसी अन्य पुरुष के साथ सेक्सुअल रिलेशन बनाता है, मतलब समलैंगिक रिलेशन बनता है। तो कानून इसे अपराध नहीं मानता।

(4) केवल पुरुष को केस फाइल करने की अनुमति:-  

दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 198 के तहत, हस्बैंड अपनी वाइफ के लवर के खिलाफ अडल्ट्री का केस फाइल कर सकता है। लेकिन वाइफ को अपने हस्बैंड की लवर के खिलाफ केस करने का अधिकार नहीं है।

महिला को महत्व नहीं दिया गया:-

सेक्शन की यह कमियां बताती है कि यह सेक्शन बहुत पुरानी सोंच से बना है। इस सेक्शन में वाइफ को उसके हस्बैंड की सिर्फ एक वस्तु समझा गया है। इसमें वाइफ की मर्जी को कोई महत्व नहीं दिया गया। यह मान लिया कि वाइफ के खुद के कोई विचार नहीं हो सकते हैं। बल्कि सारी गलती के लिए सिर्फ पुरुष को ज़िम्मेदार ठहराया गया है। इसीलिए इस कानून में बदलाव की जरूरत थी। जिसे एक बिज़नेस मैन ने समझा और इसके लिए कदम उठाया।

पुरानी सोंच के इस कानून को खत्म करने की शुरुवात:-

2017 में, जोसेफ शाइन ने अडल्ट्री के कानूनों से सम्बन्धित आईपीसी के सेक्शन 497 को चुनौती देने वाली एक पिटीशन फाइल की। पिटीशन यह थी कि अगर दो लोग अपनी मर्ज़ी से अडल्ट्री करते है, तो दोनों को इसके लिए ज़िम्मेदार माना जाये। दूसरी बात, अडल्ट्री को दंड के प्रावधान से मुक्त कर दिया जाये। और तीसरी यह कि वाइफ को भी अडल्ट्री का केस करने का अधिकार दिया जाये।

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अडल्ट्री कानून में क्या बदलाव आये:-

सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने इस पिटीशन पर सुनवाई की। बेंच के अनुसार, अडल्ट्री को किसी व्यक्ति की इज़्ज़त खराब करना माना गया है। भारत में अडल्ट्री करना “कानून की नज़र में गलत है, लेकिन दंडनीय अपराध नहीं है।” अब अडल्ट्री करने वाले व्यक्ति को कानूनी सज़ा नहीं दी जाएगी। लेकिन, ऐसा करने वाले व्यक्ति से उनकी वाइफ या हस्बैंड अडल्ट्री के आधार पर डाइवोर्स ले सकते है।

“बेंच के अनुसार, “यह कहना गलत होगा कि अपने हस्बैंड के अलावा किसी अन्य पुरुष के साथ सहमति से सेक्सुअल रिलेशन बनाने वाली वाइफ एक ‘पीड़ित’ है” या फिर इसके लिए केवल पुरुष अपराधी है।” इस तरह बेंच ने 158 साल पुराने अडल्ट्री के कानून को ख़त्म कर दिया। और अडल्ट्री को अपराध से मुक्त कर दिया। हालांकि, अभी भी अडल्ट्री डाइवोर्स के लिए एक महत्वपूर्ण वैलिड आधार है।

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