भारत में चाइल्ड कस्टडी से जुड़े कानून क्या है?

भारत में चाइल्ड कस्टडी से जुड़े कानून क्या है?

भारत में 18 साल से कम उम्र के बच्चे की कानूनी गार्डियनशिप को बच्चे की कस्टडी कहा जाता है। चाइल्ड कस्टडी दो तरीके की होती है। फिजिकल कस्टडी और लीगल कस्टडी। फिजिकल कस्टडी का मतलब बच्चे के खाने, पढ़ाई और परवरिश की जिम्मेदारी लेना होता है। लेकिन लीगल चाइल्ड कस्टडी में गार्डियन के पास बच्चे के धर्म, इंश्योरन्स क्लेम्स आदि का फैसला लेने का हक़ भी होता है।

भारत में अलग-अलग धर्म के लोग रहते है। और अपने-अपने धर्मों का ही पालन करते है। इसलिए धर्मों के हिसाब से चाइल्ड कस्टडी रूल्स भी अलग-अलग बनाये गए है।

हिंदू कानून के तहत चाइल्ड कस्टडी:-

भारत में “हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956” (एचजीएमए) और “संरक्षकता और वार्ड अधिनियम” (जीडब्ल्यूए) के तहत, हिन्दुओं के लिए चाइल्ड कस्टडी रूल्स बनाये गए है। इस कानून के तहत, चाइल्ड कस्टडी के फैसले में सबसे जरूरी फैक्टर बच्चे का कल्याण है।

एचजीएमए के तहत, 5 साल से कम उम्र के बच्चे की कस्टडी ज्यादातर मां को दी जाती है। ज्यादा उम्र के लड़कों की कस्टडी पिता को सौंपी जाती है। और ज्यादा उम्र की लड़कियों की कस्टडी मां को दी जाती है। हालांकि, अगर गार्डियन बच्चे की तरफ लापरवाही बरतता है, तो वह कस्टडी का हकदार नहीं होता।

जब बच्चा मेंटली इतना मच्योर हो कि यह तय कर पाए कि किस पैरेंट के पास उसकी कस्टडी होनी चाहिए। तो बच्चे की राय को ध्यान में रखा जाता है। जरुरत पड़ने पर पेरेंट्स के अलावा किसी तीसरे व्यक्ति को भी यह अधिकार दिया जा सकता है। जिसका उद्देशय सिर्फ बच्चे की उचित परवरिश है।

मुस्लिम कानून के तहत चाइल्ड कस्टडी:-

मुसलमानों पर लागू होने वाले शरीयत कानून के अनुसार, पिता को अपने बच्चों का नेचुरल गार्डियन माना जाता है। चाहे वह बच्चा लड़का हो या लड़की। दूसरी तरफ, मां अपने बेटे की 7 साल तक की उम्र पूरे होने तक की कस्टडी की हकदार है और बेटी के लिए तब तक की कस्टडी की हकदार है जब तक उसकी बेटी यौवन प्राप्त नहीं कर लेती है।

क्रिस्चियन कानून के तहत चाइल्ड कस्टडी:-

क्रिस्चियन कानून के तहत बच्चों की कस्टडी को लेकर कोई पर्टिकुलर प्रावधान नहीं बनाया गया है। इसके केसिस भारतीय तलाक अधिनियम, 1869 के तहत अच्छी तरह से सुलझा दिए जाते है। अधिनियम की धारा 41 के तहत बताया गया है कि पेरेंट्स के सेपरेशन के केस में बच्चे की कस्टडी किसे मिलेगी, इस बात का आर्डर देने के लिए कोर्ट की क्या पावर्स है।

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