भारत में पर्सनल मैटर्स जैसे शादी, डाइवोर्स, मेंटेनेन्स, चाइल्ड कस्टडी आदि के फैसले पर्सनल लॉ के तहत होते है। इसके साथ ही, मुसलमानों की शादी मुस्लिम पर्सनल लॉ(शरीयत) 1937 के तहत होती है। मुस्लिम पर्सनल लॉ पूरी तरह शरीयत पर आधारित है। शरीयत, कुरान के प्रावधानों और पैगंबर मोहम्मद की शिक्षाओं से बना है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ:-
इस अधिनियम का पूरा नाम “मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937” है। 2019 में संशोधन के बाद, यह अधिनियम पूरे भारत में लागू होता है।
मुस्लिम समाज की स्थापना और आधार:-
अरब देश के पूरी तरह से इस्लाम देश बनने से पहले, अरब प्रायद्वीप में यहूदी, ईसाई धर्म और बहुत सारे समूह क़बीलों के रूप में रहते थे। तब जो भी नियम और कानून कबिलों में बनाये गए थे, वो सभी लिखे हुए नहीं होते थे। जब भी समाज को लगा की ये कानून बदल जाने चाहिए उनमे बदलाव आता गया।
मदीना में, मुस्लिम समुदाय की सातवीं सदी में स्थापना हुई। स्थापना के बाद ये समुदाय बहुत तेजी से आस-पास के इलाकों में भी बसने लगा था। मुस्लिम धर्म की स्थापना होने पर ”कुरान” की बातें ‘कबिले’ के पहल से बने रीति रिवाजों के ऊपर हावी होने लगी। कुरान के अंदर लिखे गए और कुछ बिना लिखे हुए रीति रिवाज भी शरीयत के तौर पर समाज में जाने जाते हैं। मुस्लिम समाज ”शरीयत” (इस्लामी कानून) और ”हदीस” (पैग़म्बर मुहम्मद साहब के काम और शब्द) के आधार पर चलता है।
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समय के साथ शरीयत का विकास?
जैसा की दुनिया एक नियम है, की समय-समय पर बदलाव आते रहने चाहिए। अगर जरूरी बदलाव ना किये जाये, तो नियम पुरानी सोंच का शिकार हो जाते है। जो की बिलकुल भी सही नहीं है। समय के साथ शरीयत में भी कुछ जरूरी बदलाव आते गए है। इस बात पर बहस करना एक गलती होगी कि शरीयत में कई सदियों से कोई बदलाव नहीं आये है। जब तक पैगंबर जीवित थे। तब तक उनके रहते हुए कुरान में लिखे गए कानून पैगंबर और उनके समाज के आगे आ रही सभी समस्याओं के हल के लिए थे। उनके अल्लाह को प्यारे होने के बाद कई धार्मिक संस्थानों और न्यायिक व्यवस्था में शरीयत को लागू करने वाले ज्यादातर सभी देशों ने उनके देश और समाज कि उस समय की जरूरतों के हिसाब से इन कानूनों की व्याख्या की। उन्होंने इन कानूनों को विकसित भी किया।
मुस्लिम पर्सनल लॉ भारत में किस प्रकार लागू हुआ?
1937 में, भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लिकेशन एक्ट पास किया गया था। इस कानून को लागू करने के पीछे का मकसद था। एक इस्लामिक कानून कोड भारतीय मुस्लिमों के लिए तैयार करना। उसके बाद मुस्लिमों के पर्सनल मुद्दों जैसे शादी, तलाक, विरासत और पारिवारिक मसलों पर इस एक्ट के तहत ही फैसले होते आ रहे है।
क्या पर्सलन लॉ सिर्फ मुस्लिम धर्म के लिए बना है?
भारत में, बहुत से धार्मिक समूहों के लिए पर्सनल लॉ बनाए गए हैं। जैसे – हिन्दुओं के लिए 1955 का हिन्दू मैरिज एक्ट, इस नियम के तहत हिन्दू, बुद्ध, जैन और सिखों की शादी और उसका रजिस्ट्रशन होता है। पारसी मैरिज और डाइवोर्स एक्ट 1936 भी इसका एक उदाहरण हैं।