एकतरफा तलाक लेने की क्या प्रक्रिया है ?

एकतरफा तलाक लेने की क्या प्रक्रिया है ?

तलाक एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें दो व्यक्ति जो सहमति के साथ विवाह के बंधन में बंधे थे लेकिन अब कुछ कारणों की वजह से एक साथ नहीं रहना चाहते, उन्हें कानूनी रूप से अलग होने में मदद करता है। भारत का कानून इसकी इजाजत देता है और हर व्यक्ति को स्वेच्छा से रहने का अधिकार है लेकिन भारत में तलाक से संबंधित अलग-अलग धर्म के आधार पर कानून बने हुए हैं। जैसे हिंदू मैरिज एक्ट पारसी मैरिज एक्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ आदि । 

अब ऐसे में यदि दोनों ही पक्ष तलाक लेने के लिए तैयार हैं तो मामला काफी आसान हो जाता है।  कोर्ट के अंदर छोटी सी लीगल फार्मेलिटी पूरी करने के बाद तलाक मिल जाता है लेकिन यदि  पत्नी दोनों में से कोई एक व्यक्ति तलाक लेना चाहता है तो इस प्रक्रिया को एकतरफा तलाक कहा जाता है और यह प्रक्रिया थोड़ी जटिल भी होती है इसलिए इसमें समय भी लगता है। 

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यदि पति या पत्नी में से कोई भी एकतरफा तलाक लेना चाहता है तो उसके लिए निम्नलिखित प्रक्रियाओं का पालन करना होगा।

  • सबसे पहले पति-पत्नी में से जो भी व्यक्ति तलाक लेना चाहता है तो उसे तलाक के डॉक्यूमेंट तैयार कराने होंगे और इसके लिए  तलाक के डॉक्यूमेंट तैयार करने के लिए वकील की आवश्यकता होगी इसलिए वकील से मिलना भी एक तरफातलाक की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
  • तलाक के डॉक्यूमेंट में अपनी जानकारी विवाह की तिथि और तलाक के कारणों का उचित तर्कों के साथ उल्लेख किया जाना आवश्यक है । ध्यान रहे यह डॉक्यूमेंट आगे कोर्ट में पेश होने हैं इसलिए इन पर सभी बातें सच्चाई के साथ लिखें जिससे आपके पक्ष को अदालत में आगे चलकर मजबूती मिले। डॉक्यूमेंट पर लिखते समय अभी ध्यान रखें की लिखावट अच्छी होनी चाहिए और जो भी वाक्य लिखे गए हैं उनका अर्थ स्पष्ट होना चाहिए। 
  • अब तलाक से संबंधित अपने डाक्यूमेंट्स लेकर कोर्ट की फीस के साथ फैमिली कोर्ट में पहुंचना होता है।‌ 
  • कोर्ट में तलाक के कागज पंहुच जाने के बाद तलाक लेने वाले व्यक्ति का काम ज्यादा नहीं बचता है । आगे का काम फैमिली कोर्ट करता है। कोर्ट के द्वारा दूसरे पक्ष को नोटिस भेजा जाता है।
  • नोटिस में एक निश्चित तारीख तय की जाती है जिस तारीख में दोनों ही पक्षों को कोर्ट में पेश होना होता है। जब इस तारीख पर कोई एक पक्ष पेश नहीं होता है तो ऐसे में कोर्ट को यह अधिकार होता है कि वह कोर्ट में दायर तलाक की याचिका के आधार पर फैसला सुना सके। 
  • यदि दोनों पक्ष निश्चित तारीख में कोर्ट में पेश होते हैं तो फैमिली कोर्ट अक्सर मामले को सुलझाने का प्रयास करता है । यदि मामला ज्यादा बढ़ता है तो न्यायाधीश अपने संज्ञान से इस मामले को तलाक का रूप भी दे सकता है। 
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अतः जिस प्रकार भारत में विवाह को एक पवित्र बंधन माना जाता है और कम से कम एक जन्म तक इस रिश्ते को माना जाता है । उसी प्रकार तलाक की प्रक्रिया में कुछ समय भी लग जाता है। यदि भारत के कानूनी सिस्टम में कोई व्यक्ति यह चाहता है कि उसका त्वरित रूप से तत्काल तलाक हो जाए तो यह संभव नहीं होता है। कई कानूनी प्रक्रियाओं में गुजारने के बाद दोनों पक्षों के बयानों और उसके परिणाम के आधार पर तलाक कोर्ट द्वारा अप्रूव किया जाता है।

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