एक मजिस्ट्रेट किसी व्यक्ति द्वारा की गयी मौखिक (मुँह से बोली हुई) कंप्लेंट और केस के गवाहों (अगर कोई है) पर गौर करके उनकी इन्वेस्टीगेशन करता है। इसके बाद यह पूरी कंप्लेंट लिखी जाती है और कम्प्लेनेंट द्वारा साइन कराई जाती है। हालाँकि, अगर कंप्लेंट लिखित रूप में मजिस्ट्रेट के सामने पेश की जाती है, तो मजिस्ट्रेट द्वारा कम्प्लेनेंट और गवाहों की इन्वेस्टीगेशन नहीं कराई जाती है।
एक्सेप्शन्स/अपवाद –
इन निम्नलिखित सिचुऎशन्स में मजिस्ट्रेट कम्प्लेनेंट और गवाहों की इन्वेस्टीगेशन नहीं कर सकता है अगर:
- कोई पब्लिक सर्वेंट अपने आधिकारिक कर्तव्यों/ऑफिसियल ड्यूटीज़ के दौरान कम्प्लेन करता है।
- केस या इन्क़ुएरी मजिस्ट्रेट द्वारा ही की जाती है।
यहां यह बताना सही होगा कि अगर सीआरपीसी के सेक्शन 192 के तहत अगर कम्प्लेनेंट और गवाहों की इन्वेस्टीगेशन करने के बाद एक मजिस्ट्रेट द्वारा दूसरे मजिस्ट्रेट को केस ट्रांसफर कर दिया जाता है, तो बाद वाला मजिस्ट्रेट उस केस की दोबारा इन्वेस्टीगेशन नहीं करेगा।
सीआरपीसी के 200 से 203 तक के सेक्शंस का नेचर बहुत जरूरी है ताकि किसी को भी झूठी कंप्लेंट करके परेशान ना किया जा सके।
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मजिस्ट्रेट द्वारा कार्यवाही का महत्व:
सीआरपीसी के सेक्शन 2 (डी) के अनुसार, कंप्लेंट किसी भी रूप में हो सकती है मतलब मौखिक या लिखित। इसलिए, मजिस्ट्रेट को कंप्लेंट पेश करने के लिए लिखित कंप्लेंट जरूरी नहीं है और कंप्लेंट वैलिड होती हैं, भले ही उन्हें कंप्लेंट के लिए मजिस्ट्रेट के पास भेजा गया हो।
उद्देश्य:
सेक्शन 200 का प्रोविज़न केवल एक औपचारिकता/फॉर्मेलिटी नहीं है, बल्कि आरोपी व्यक्तियों के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए लेजिस्लेचर द्वारा बनाया गया है। लापरवाही या गलत तरीके से केस को एग्जामिन करना आरोपी के साथ अन्याय करना माना जाता है। यह भी माना जा सकता है कि मजिस्ट्रेट द्वारा कम्प्लेनेन्ट की इन्वेस्टीगेशन माँ करने से कम्प्लेनेंट को नुकसान हो सकता है।
मजिस्ट्रेट सक्षम नही:
ऐसी घटना/इंसिडेंट में जहां मजिस्ट्रेट को कम्प्लेन की जाती है लेकिन वह अपराध का संज्ञान लेने के लिए सक्षम नहीं है तो मजिस्ट्रेट यह करेगा;
- अगर यह एक लिखित कंप्लेंट है, तो मजिस्ट्रेट कम्प्लेन को संबंधित कोर्ट में भेज देगा।
- अगर यह मौखिक कंप्लेंट है, तो कम्प्लेनेंट को उचित कोर्ट में जाने के लिए बताया जाएगा।
मैटर को पोस्टपोन कर देना :
सीआरपीसी के सेक्शन 202 के अनुसार, इन्वेस्टीगेशन के आर्डर को “पश्चात संज्ञान जांच” या “पोस्ट कॉग्नीज़न्स इन्वेस्टीगेशन” कहा जाता है और यह सेक्शन 156 (3) में की गई इन्वेस्टीगेशन से बिल्कुल अलग है। सेक्शन 202 के तहत इन्वेस्टीगेशन कुछ सीमित उद्देश्यों के लिए ही होता है।
हालांकि, मजिस्ट्रेट सेक्शन 202 के तहत इन्वेस्टीगेशन का आर्डर नहीं देगा अगर,
- अगर मैटर में सेशन कोर्ट की तरफ से ध्यान देने की जरूरत है
- जब पब्लिक सर्वेंट कम्प्लेन करता है, लेकिन उसे सेशन कोर्ट के ध्यान की जरूरत नहीं होती है।