फैमिली कोर्ट को हिन्दी में परिवार न्यायालय कहते हैं। मुख्य रूप से परिवार न्यायालय परिवार में होने वाली कानूनी समस्याओं को निपटारा करने के लिए बनाए गए हैं। परिवार न्यायालयों की स्थापना परिवार न्यायालय अधिनियम, 1984 के तहत की गई थी। इसका मकसद पारिवारिक कलह और विवाह व अन्य पारिवारिक मामलों या विवादों का जल्द से जल्द निपटारा करना है। इससे पहले पारिवारिक मामलों का निस्तारण जिले के सामान्य न्यायालय में देखें जाता था। आज हम अपने इस ब्लॉग में इसी विषय को विस्तार से जानेंगे।
फैमिली कोर्ट की स्थापना
भारत में पहली बार फैमिली कोर्ट की स्थापना 1984 में ले गए पारिवारिक न्यायालय से संबंधित अधिनियम के बाद स्थापित किए गए। इससे पहले देश के अंदर कोई भी फैमिली कोर्ट नहीं था, परिवार से जुड़े ज्यादातर मामले जनपद के सामान्य न्यायालयों में देखे जाते थे। लेकिन बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ सामान्य न्यायालय में काम का ज्यादा बोझ होने से कई बार पारिवारिक मामलों की सुनवाई में देर होने लगी, और इसी कारण से पारिवारिक मामलों में तेजी के साथ सुनवाई करने के लिए अलग से कोर्ट बनाने की मांग भी तेज हो गई जिसके फल स्वरुप फैमिली कोर्ट बनाए गए।
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फैमिली कोर्ट के अंतर्गत कौन कौन से केस आते हैं
देश के अंदर परिवार से जुड़े हुए ज्यादातर मामले फैमिली कोर्ट के अंतर्गत ही आते हैं। अगर विस्तार से बात करें तो निम्नलिखित मामलों की सुनवाई फैमिली कोर्ट के अंतर्गत आती है।
शादी
शादी और इससे जुड़े मामले फैमिली कोर्ट में देखे जाते हैं। यहां तक की कोर्ट मैरिज, मैरिज को रजिस्टर करवाना रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट प्राप्त करना यह सब काम फ़ैमिली कोर्ट के द्वारा ही किए जाते हैं।
तलाक
तलाक और इससे संबंधित मामलों की सुनवाई भी फैमिली कोर्ट में ही होती है। एक तरफा तलाक से लेकर आपसी सहमति से तलाक तक, इन सभी मुद्दों का समाधान फैमिली कोर्ट के अंतर्गत ही होता है।
बच्चे गोद लेना
बच्चा गोद लेना चाहता है तो इसके लिए जो कानूनी प्रक्रियाएं होती हैं वह सभी फैमिली कोर्ट के अंतर्गत ही होती है।
विरासत
अपने पूर्वजों की जमीन पर हिस्सा लेना हो विरासत के अंतर्गत आता है और विरासत का मामला भी फैमिली कोर्ट ही हल करता है।
परिवार न्यायालयों की स्थापना उच्च न्यायालयों के परामर्श से राज्य सरकारों द्वारा की जाती है। सुप्रीम कोर्ट की सहमति से राज्य सरकार एक या उससे ज़्यादा लोगों को परिवार न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त कर सकती है।
अगर परिवार न्यायालय में किसी मामले का समाधान नहीं हो पाता, तो पहले उसे मध्यस्थता (मीडिएशन) के लिए भेज दिया जाता है। अगर मध्यस्थता के बाद भी विवाद का समाधान नहीं होता, तो उसे ऊपरी अदालत में भेज दिया जाता है। खासतौर पर परिवार न्यायालय की प्रक्रिया उन लोगों के लिए डिज़ाइन की गई है जिनके पास वकील नहीं हैं। हालांकि, वकील का होना एक प्लस प्वाइंट होता है जरूर होता है।
मैं घरेलू हिंसा का शिकार हूं, फैमिली कोर्ट मेरी मदद कैसे कर सकता है?
बिल्कुल फैमिली कोर्ट परिवार से जुड़े कानूनी मामलों का निपटारा करने के लिए ही बनाए जाते हैं। अगर कोई भी व्यक्ति डोमेस्टिक वायलेंस अर्थात घरेलू हिंसा का शिकार हो तो वह कानूनी कार्रवाई के लिए फैमिली कोर्ट से मदद ले सकता है।
घरेलू हिंसा का शिकार होने पर, फ़ैमिली कोर्ट आपके पति या पत्नी या साथी को तत्काल प्रभाव से आपसे दूर रखने का आदेश कर सकता है। इस आदेश में आपकी सुरक्षा के लिए कभी कभी तीसरे पक्ष के ज़रिए या सोशल मीडिया के ज़रिए संपर्क न करने की बात भी शामिल होती है। अगर आपका जीवनसाथी या साथी सुरक्षा के आदेश का पालन नहीं करता, तो उसे गिरफ़्तार किया जा सकता है।
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