पति के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर होने पर क्या कानूनी कार्रवाई कर सकते है?

What legal action can be taken if the husband has an extra marital affair

शादी एक ऐसा रिश्ता है जो पार्टनर्स के विश्वास, निष्ठा और वफादारी पर आधारित होता है। यह सभी धर्मों और देशों में एक पवित्र और महत्वपूर्ण स्थान रखता है। अगर आपको यह पता चले कि आपका पति वफादार नहीं है, तो यह एक बहुत ही दर्दनाक अनुभव हो सकता है। इससे भावनात्मक परेशानी, उलझन और दुख हो सकता है। लेकिन यह जानना जरूरी है कि कानून आपके पास कई कानूनी रास्ते उपलब्ध कराता है, जिनसे आप अपनी सुरक्षा कर सकती हैं, चाहे वह भावनात्मक हो या आर्थिक। इस ब्लॉग में, हम यह जानेंगे कि अगर आपके पति का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर है, तो आपके पास कौन-कौन से विकल्प हैं, जैसे डाइवोर्स, मेंटेनेंस, और अन्य संबंधित कानूनी कार्रवाई।

एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर क्या है?

एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को “एडल्ट्री” भी कहा जाता है। इस स्थिति में पति या पत्नी अपनी शादी के बाहर किसी अन्य व्यक्ति के साथ मानसिक या शारीरिक संबंध बनाते है। अधिकतर मामलों में यह संबंध दूसरे साथी की बिना सहमति या जानकारी के होता है। यह अफेयर कभी एक बार का हो सकता है या फिर एक लंबे समय तक चलने वाला शारीरिक या भावनात्मक संबंध हो सकता है।

एडल्ट्री को अक्सर विश्वासघात माना जाता है, और इसके गंभीर भावनात्मक और कानूनी परिणाम हो सकते हैं। यह समझना ज़रूरी है कि सभी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर एक जैसे नहीं होते । कुछ मामलों में गहरे भावनात्मक संबंध होते हैं, जबकि कुछ सिर्फ शारीरिक होते हैं। लेकिन फिर भी, एक अफेयर शादी के वादों और विश्वास का उल्लंघन है, और यही कारण है कि कई लोग कानूनी उपायों, जैसे तलाक, का सहारा लेते हैं। इस स्थिति में सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि जब पत्नी को अपने पति के अफेयर के बारे में पता चले, तो उसके पास कानूनी रूप से क्या विकल्प होते हैं।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

क्या एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर एक अपराध है?

जब इंडियन पीनल कोड 1860 में बनाया गया, तब उसमें धारा 497 को एडल्ट्री से संबंधित मामलों के लिए जोड़ा गया। लेकिन यह धारा काफी पक्षपाती थी, क्योंकि इसमें सिर्फ उस आदमी को सजा दी जाती थी जो एक शादीशुदा महिला के साथ अवैध संबंध बनाता था, जबकि महिला को कोई सजा नहीं होती थी। यह एक लिंग आधारित भेदभाव था। इस कानून में उस आदमी को पांच साल तक की सजा, जुर्माना, या दोनों सजा देने का प्रावधान था।

धारा 497 की संविधानिक वैधता को 2018 में जोसेफ शाइन बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के मामले में भारतीय सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। याचिकाकर्ता ने कहा कि यह कानून भारतीय संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। यह संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है:

धारा 497 संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करती है, क्योंकि यह सिर्फ पुरुषों को सजा देती है, महिलाओं को नहीं।

यह संविधान के अनुच्छेद 15(1) का भी उल्लंघन करती है, जो लिंग के आधार पर भेदभाव करने से मना करता है। यह कानून पत्नी के अधर्म के मामले में पति को ही पीड़ित मानता है, लेकिन पति के अधर्म पर पत्नी को पीड़ित नहीं मानता।

 धारा 497 संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करती है, जो जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा करता है, क्योंकि यह महिलाओं को पति की संपत्ति मानता है, जिससे उनकी गरिमा को ठेस पहुँचती है।

2018 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एडल्ट्री को अपराध नहीं माना और कहा कि इसे अपराध के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। अब, एडल्ट्री केवल तलाक का कारण बन सकता है, यह अपराध नहीं है। अब किसी पति या पत्नी को एडल्ट्री करने पर सजा नहीं मिल सकती, लेकिन यह तलाक की कार्यवाही और अन्य कानूनी मामलों जैसे मेंटेनेंस या संपत्ति बंटवारे पर असर डाल सकता है।

भले ही एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर एक अपराध नहीं है लेकिन अगर पति उस अफेयर से समन्धित दूसरी शादी कर लेता है, या पहली पत्नी के होते हुए दूसरी शादी कर लेता है,  तो यह अपराध माना जायेगा। इसे बाईगेमी  (Bigamy) कहा जाता है और ऐसा करने पर पति को भारतीय न्याय संहिता के तहत सात साल तक की सजा, तथा जुर्माना या दोनों हो सकतें है

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एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को कौन से कानून नियंत्रित करते हैं?

धारा 497 को हटाए जाने के बाद, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के कानूनी परिणाम अब आपराधिक कानून से सिविल कानून में आ गए हैं। इसका मतलब है कि अब एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर पर आपराधिक मामला नहीं चलेगा, बल्कि यह तलाक जैसे मामलों में हल होगा। यह बदलाव विवाहित लोगों और उनके कानूनी रास्तों पर असर डालता है।

 हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955 ने एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को तलाक के आधार के रूप में मान्यता दी है। हिन्दू मैरिज एक्ट की धारा 13(1)(i) के तहत, अगर विवाह के बाद पति या पत्नी ने अपने साथी के अलावा किसी अन्य व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाए, तो उसे एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर माना जाएगा और यह तलाक का उचित कारण है। हिंदू पुरुष और महिला दोनों ही तलाक के लिए आधार बना सकते हैं, यदि उनके साथी ने एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर किया हो।

मुस्लिम लॉ के अनुसार, शादी एक कानूनी समझौता है और एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को गंभीर गलती माना जाता है। अगर पति अपनी पत्नी पर एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का आरोप लगाता है, तो पत्नी उन आरोपों को झूठा साबित कर तलाक ले सकती है। डिसॉलूशन ऑफ़ मुस्लिम मैरिज एक्ट, 1939 के अनुसार, धारा 2(vii)(b) में कहा गया है कि यदि पति किसी दूसरी महिला के साथ रिश्ते में है, तो पत्नी को तलाक मिल सकता है, क्योंकि इसे क्रूरता माना जाता है।

पति के खिलाफ क्या कानूनी कार्रवाई की जा सकती है?

अगर आपके पति विश्वासघात कर चुके हैं और आप कानूनी कार्रवाई करना चाहती हैं, तो यह जानना जरूरी है कि आपके पास कौन से कदम हैं ताकि आप अपनी सुरक्षा कर सकें।

वकील की सलाह ले

सबसे पहले आपको एक योग्य परिवारिक वकील से सलाह लेनी चाहिए जो शादी, तलाक और परिवार कानून में विशेषज्ञ हो।वे आपकी स्थिति का मूल्यांकन करेंगे, आपके अधिकार समझाएंगे और सबसे अच्छे कानूनी विकल्प पर मार्गदर्शन करेंगे। वकील आपको यह भी बताएंगे कि आपको कौन-सी सबूत एकत्र करने हैं, केस कैसे आगे बढ़ाना है और सही कानूनी प्रक्रिया का पालन कैसे करना है, जो आपके मामले के परिणाम पर असर डाल सकता है।

 काउन्सलिंग लेटर भेजे

कभी-कभी, एक वकील आपके पति को काउंसलिंग लेटर भेजने की सलाह दे सकते हैं। यह लेटर उन्हें विवाह काउंसलिंग में शामिल होने या रिश्ते को सुधारने के लिए कहता है। इस लेटर में यह भी बताया जाता है कि यदि उनका अफेयर जारी रहता है, तो आप तलाक की सोच सकती हैं। काउंसलिंग लेटर भेजना यह दिखाता है कि आपने कानूनी कदम उठाने से पहले समस्या को हल करने की कोशिश की है। अगर आपके पति काउंसलिंग के लिए तैयार होते हैं, तो यह दोनों पक्षों के लिए समय और मानसिक ऊर्जा की बचत कर सकता है।

जैसा की हम जानते है कि किरण रावत वि. राज्य (2011) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि तलाक के मामलों में काउंसलिंग अनिवार्य है। कोर्ट ने कहा कि काउंसलिंग से पति-पत्नी के बीच के मनमुटाव को सुलझाने की कोशिश की जाती है और यह तलाक के मामलों में रिश्ते को सुधारने का एक अवसर है।

डाइवोर्स पेटिशन दायर करें

अगर काउंसलिंग लेटर से समाधान नहीं मिलता और आप तलाक के लिए आगे बढ़ने का निर्णय लेती हैं, तो अगला कदम परिवार अदालत में तलाक याचिका दाखिल करना है। आप दो प्रकार की तलाक याचिका दाखिल कर सकती हैं । एक तो आपसी सहमति या रजामंदी से तलाक लेकर मामले को सुलझाया जा सकता है, जिसमें दोनों पक्ष एक-दूसरे से अलग हो जाते हैं और दूसरा, एकतरफा तलाक की याचिका दायर करके भी अलग हुआ जा सकता है।

आपसी तलाक याचिका (Mutual Divorce Petition)

अगर आपके पति तलाक के लिए सहमत हैं और दोनों पक्ष संपत्ति विभाजन, मेंटेनेंस, और बच्चों की कस्टडी जैसे मुद्दों पर सहमत हैं, तो आपसी तलाक याचिका दाखिल की जा सकती है। यह प्रक्रिया जल्दी होती है, क्योंकि दोनों पक्ष सभी शर्तों पर सहमत होते हैं और किसी मुकदमे की जरूरत नहीं होती।

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विवादित तलाक याचिका (Contested Divorce Petition)

अगर आपके पति तलाक के लिए सहमत नहीं हैं या किसी शर्त पर सहमत नहीं हैं, तो आपको विवादित तलाक याचिका दाखिल करनी होगी। इस स्थिति में, अदालत दोनों पक्षों से सबूत और तर्क सुनती है। यह प्रक्रिया लंबी हो सकती है और इसमें सुनवाई, मध्यस्थता, और कभी-कभी मुकदमा भी हो सकता है।

तलाक के बाद पत्नी के कानूनी अधिकार क्या हैं?

तलाक के बाद पत्नी को कुछ महत्वपूर्ण कानूनी अधिकार मिलते हैं, जो उसकी भलाई और आर्थिक सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं। यहां कुछ मुख्य अधिकार दिए गए हैं:

मेंटेनेंस

अगर पत्नी तलाक से पहले आर्थिक रूप से पति पर निर्भर थी, तो उसे मेंटेनेंस (आर्थिक सहायता) मिल सकता है, ताकि वह तलाक के बाद अपनी ज़िंदगी को फिर से जी सके। 

सुप्रीम कोर्ट ने विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा 2020 के केस में  हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 24 के तहत यह कहा था कि तलाक के बाद पत्नी को भरण-पोषण का अधिकार है, और मेंटेनेंस की राशि पति की आय और पत्नी की जीवनशैली को ध्यान में रखते हुए तय की जानी चाहिए। कोर्ट ने यह भी माना कि मेंटेनेंस का भुगतान पति के उत्तरदायित्व में आता है, और इसका उद्देश्य पत्नी को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करना है।

जैसा की हम यह भी जानते है कि ,एस. आर. बत्रा बनाम तरुणा बत्रा, 2007  के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि पत्नी और पति एक ही स्थान पर नहीं रह रहे हैं (अर्थात् पत्नी ने अपने पति से अलग रहने का निर्णय लिया है), तो पत्नी को मेंटेनेंस  देने का कोई कारण नहीं है। यह निर्णय मुख्य रूप से पत्नी के मेंटेनेंस  के अधिकारों पर था और इसमें कोर्ट ने पत्नी के मेंटेनेंस के लिए “समाज में उसका जीवन स्तर” और “किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता” का मुद्दा उठाया था।

संपत्ति का बंटवारा

पत्नी को शादी के दौरान जमा की गई संपत्ति और अन्य चीजों का एक उचित हिस्सा मिल सकता है, जैसे घर, बैंक खाते की राशि आदि। यह बंटवारा हमेशा बराबरी से नहीं होता, लेकिन यह उचित और न्यायपूर्ण होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने एन. नागम्मा बनाम एन. रामास्वामी, 2001  में यह कहा था कि तलाक के बाद पत्नी को पति की संपत्ति में स्वचालित हिस्सा नहीं मिलता, लेकिन अगर पत्नी ने विवाह में अपना योगदान दिया है (जैसे कि घरेलू कार्यों, बच्चों की देखभाल, आदि में), तो उसे न्यायिक रूप से संपत्ति का हिस्सा मिल सकता है।

बच्चों की कस्टडी और देखभाल

अगर पति-पत्नी के बच्चे हैं, तो पत्नी को बच्चों की कस्टडी बच्चे कहां रहेंगे और बच्चों की देखभाल के लिए सहायता बच्चों की ज़रूरतों के लिए पैसा का अधिकार मिलता है। कोर्ट बच्चों के भले के लिए कस्टडी का फैसला करता है।

सुप्रीम कोर्ट ने गीता हरिहरन बनाम भारतीय रिज़र्व बैंक, 1999 कहा था कि अगर तलाक के बाद बच्चे की कस्टडी माँ को दी जाती है, तो पिता को बच्चे के मेंटेनेंस  के लिए जिम्मेदार ठहराया जाएगा। कोर्ट ने यह माना कि बच्चों के सर्वोत्तम हित में यह जरूरी है कि पिता को भरण-पोषण की जिम्मेदारी दी जाए।

स्वास्थ्य और बीमा

अगर पत्नी शादी के दौरान पति के स्वास्थ्य बीमा में कवर थी, तो तलाक के बाद उसे कुछ समय तक बीमा का लाभ मिल सकता है, यह कानून पर निर्भर करता है। ये अधिकार पत्नी को तलाक के बाद आर्थिक रूप से सुरक्षित और मानसिक शांति देने के लिए होते हैं।

शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट ने  ऐतिहासिक निर्णय दिया था  जिसमें मुसलमान महिला के मेंटेनेंस का अधिकार सुनिश्चित किया था। इस फैसले ने महिलाओं के अधिकारों को मजबूत किया और कहा कि तलाक के बाद भी पत्नी को मेंटेनेंस का अधिकार है, और अगर पति इस जिम्मेदारी को निभाने में असमर्थ होता है, तो उसे अदालत के माध्यम से सहायता मिल सकती है।

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एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर साबित करने के लिए किस प्रकार के सबूत की आवश्यकता होती है?

तलाक के लिए जब पत्नी को अपने पति के एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को साबित करना होता है, तो उसे इसके सबूत देने होते हैं। ये सबूत यह दिखाने के लिए जरूरी होते हैं कि पति ने एडल्ट्री किया है, जो तलाक का एक कानूनी कारण है। पत्नी यह सबूत इकट्ठा कर सकती है:

  • संदेश, ईमेल या तस्वीरें: यदि आपके पास ऐसे संदेश या तस्वीरें हैं, जो उनके अफेयर को दिखाती हैं, तो वे महत्वपूर्ण सबूत हो सकते हैं। 
  • गवाहों के बयान: अगर कोई व्यक्ति आपके पति को अफेयर करते हुए देख चुका है या उनका संदेहास्पद व्यवहार (Suspicious Behavior) जानता है, तो उस गवाह का बयान मदद कर सकता है। 
  • तीसरे व्यक्ति से स्वीकारोक्ति: अगर आपके पति के अफेयर में शामिल व्यक्ति यह स्वीकार करता है, तो वह भी एक मजबूत सबूत हो सकता है। 

पत्नी को यह सबूत सावधानीपूर्वक और कानूनी तरीके से इकट्ठा करना चाहिए, ताकि किसी भी गोपनीयता के कानून का उल्लंघन न हो। सही और विश्वसनीय सबूत से अदालत में उसका मामला मजबूत हो सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने वी. भगत बनाम श्रीमती डी. भगत 1994  के केस में कहा कि यदि एक पति या पत्नी के खिलाफ एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के गंभीर आरोप लगाए गए हैं, तो उसे साबित करने के लिए पर्याप्त और ठोस सबूत की आवश्यकता होती है। इस मामले में, कोर्ट ने यह भी माना कि पति-पत्नी के बीच किसी प्रकार के अवैध संबंध रिश्ते के विश्वास को तोड़ते हैं और यह तलाक का आधार हो सकता है।

अरविंद कुमार गुप्ता बनाम सुनीता गुप्ता 2010 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के आरोप सही हैं और पति ने अपनी पत्नी के साथ विश्वासघात किया है, तो इसे तलाक के आधार के रूप में माना जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि इन आरोपों को साबित करने के लिए प्रमाण और साक्ष्य महत्वपूर्ण होते हैं।

निष्कर्ष

अगर आपके पति ने विश्वासघात किया है, तो आपको चुपचाप सहन करने की जरूरत नहीं है। कानून आपको अपनी सुरक्षा और भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए कई विकल्प देता है। चाहे वह तलाक, मेंटेनेंस के रूप में हो, कानूनी कदम उठाकर आप इस धोखे से उबर सकती हैं और और अपने आने वाले भविष्य को सिक्योर कर सकती हैं। अपने अधिकारों और विकल्पों को समझना इस कठिन समय को पार करने में मदद करेगा और यह सुनिश्चित करेगा कि आपको कानून की नजरों में उचित तरीका से न्याय मिलें।

अगर आपके पति के अवैध सम्बन्ध है तो, आज ही एक वकील से सलाह लें और अपने विशेष मामले के लिए सबसे सही कदम समझें ताकि आप एक बेहतर भविष्य की ओर कदम बढ़ा सकें।

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FAQs

1. क्या एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर तलाक का कारण बन सकता है?

हां, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर तलाक का एक वैध कारण हो सकता है। हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत यह तलाक के लिए एक मजबूत आधार माना जाता है।

2. क्या मैं अपने पति के अफेयर को साबित करने के लिए सबूत जुटा सकती हूं?

हां, आप संदेशों, ईमेल, तस्वीरों, गवाहों के बयान और तीसरे व्यक्ति की स्वीकारोक्ति जैसे सबूत इकट्ठा कर सकती हैं।

3. अगर पति तलाक देने के लिए सहमत नहीं है, तो क्या होगा?

अगर पति तलाक के लिए सहमत नहीं है, तो आपको एक विवादित तलाक याचिका दायर करनी होगी, जिसमें कोर्ट दोनों पक्षों के सबूत और तर्क सुनेगा।

4. क्या एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर के कारण पति को सजा हो सकती है?

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर को अपराध से बाहर कर दिया है, लेकिन यह तलाक और अन्य कानूनी मामलों पर प्रभाव डाल सकता है।

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