मानहानि के लिए क्या कानूनी कदम उठा सकते है?

मानहानि के लिए क्या कानूनी कदम उठा सकते हैं?

किसी भी व्यक्ति को झूठी बातें कह कर उसकी अस्मिता और प्रतिष्ठा पर आघात करना मानहानि कहलाता है। समाज मे हुई अपनी छवि पर इस आघात और बदनामी की वजह से लोगों की प्रतिष्ठा धूमिल हो जाती है। यदि कही बात असत्य है तो निश्चित तौर पर कानून द्वारा मानहानि की कार्यवाई के तहत हम ऐसा बयान देने वाले व्यक्ति के ख़िलाफ़ केस कर सकते हैं। 

मानहानि होने पर विधि द्वारा ऐसे कुछ कानून हैं जिन के मदद से आप अपनी ख़राब हुई छवि के लिए केस दायर कर न्याय की मांग कर सकते हैं। आइये आज इस लेख में समझते हैं कि मानहानि होने पर क्या कानूनी कदम उठाए जा सकते हैं? 

मानहानि के लिए कानूनी कदम उठाए जाने से पूर्व यह बात ध्यान रखी जानी आवश्यक है कि मानहानि का केस किन परिस्थितियों में किया जा सकता है? वे कौन से विशेष आधिकर हैं जो किसी कथन को मानहानि के दायरे से बाहर रखते हैं। आइये जानते हैं मानहानि होने के लिए किन कारकों का होना आवश्यक होता है?

मानहानि के लिए आवश्यक करक –

मानहानि कारक कथन अपमान जनक होना चाहिए।

मानहानि के उद्देश्य से कहा गया कथन अपमान जनक होना चाहिए। यदि कथन अपमानजनक होगा तो ही मानहानि के लिए कानूनी कदम उठाए जा सकते हैं।

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कथन शिकायतकर्ता को सम्बोधित हो

मानहानि के लिए कानूनी कदम उठाए जाने के लिए यह ज़रूरी है कि मानहानि कारक कथन शिकायतकर्ता को ही सम्बोधित किया गया हो।

मानहानि कारक कथन प्रकाशित हो

मानहानि कारक कथन प्रकाशित होने का अर्थ है कि कथन शिकायतकर्ता के अलावा अन्य किसी को भी पता होना चाहिए 

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मानहानि के दायरे से कुछ बातों को बाहर भी रखा गया है। यानी कुछ कथन ऐसे हैं जिन्हें मानहानि के दायरे में नहीं गिना जाता है। इन्हें बचाव कहा जाता है। वे जो मानहानि के अंतर्गत नहीं शामिल किए जाते हैं उन में : संसदीय कार्यवाहियां, अदालती कार्यवाहियाँ और राज्य संचार से सम्बंधित कार्यवाहियाँ हैं।

मानहानि होने पर भारतीय दंड संहिता और सिविल संहिता दोनों के अंतर्गत ही कानूनी कदम उठाए जा सकते हैं। आई पी सी की धारा 499 में मानहानि को एक दण्डनीय अपराध बताया गया है और धारा 500 में इसके लिए सज़ा का भी प्रावधान है। यदि आप मानहानि के लिए कानूनी कदम उठाना चाहते हैं तो इस धारा के अंतर्गत आप कोर्ट में केस दायर कर सकते हैं। इसके अंतर्गत कोर्ट में केस दायर करने के लिए भी कुछ कदमों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है।

धारा 499 के तहत मानहानि के मुकदमे की प्रवृत्ति आपराधिक होती है इसलिए सबसे पहले मानहानि होने की शिकायत पुलिस में दर्ज कराई जानी चाहिए। इस के बाद पुलिस द्वारा यह शिकायत मजिस्ट्रेट के सामने प्रस्तुत किये जाने पर मजिस्ट्रेट इसकी जांच के आदेश पारित करते हैं। 

यदि आप को लगता है कि पुलिस द्वारा जांच में गड़बड़ी करी जा रही है तो आप इसकी शिकायत सीधे मजिस्ट्रेट से कर सकते हैं। मजिस्ट्रेट की संतुष्टि के साथ ही आरोपी को न्यायलय में प्रस्तुत होने के लिए नोटिस भेज दिया जाएगा जिस के पश्चात न्यायिक कार्यवाही शुरू हो जाएगी। दोष सिद्ध हो जाने के साथ ही धारा 229 के तहत आरोपी को दोषी करार दे कर सज़ा सुना दी जाती है।

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भारत में सिविल प्रक्रिया के माध्यम से भी मानहानि का मुकदमा दायर करने का प्रावधान है। यह चूंकि टार्ट से सम्बंधित है और भारत मे टार्ट के तहत केस कम ही होते हैं इसलिए ज़्यादातर लोग इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं। यदि कोई सिविल प्रक्रिया के माध्यम से सिविल प्रवृत्ति के मानहानि मुकदमे को दायर करना चाहता है तो उसे सी पी सी की धारा 19 या आदेश 7 के अंतर्गत जाना होगा। जहां उसे एक लिखित शिकायत दर्ज करने के साथ अपना मुकदमा दायर करना होगा। जिस के बाद न्यायालय द्वारा इस मामले में संज्ञान ले लिया जाएगा।

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