जब मेहनताना ही न मिले – आपने समय पर काम किया, टारगेट पूरा किया, ओवरटाइम तक लगाया… लेकिन जब महीने के आखिर में तनख्वाह नहीं आई तो सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है – अब क्या करें?
भारत के श्रमिक कानून न केवल न्यूनतम वेतन की गारंटी देते हैं, बल्कि यह सुनिश्चित करते हैं कि हर कर्मचारी को समय पर, पूरा और बिना अनुचित कटौती के वेतन मिले। यदि कंपनी आपको सैलरी नहीं दे रही है, तो यह न केवल नैतिक गलती है, बल्कि कानूनी अपराध भी है।
भारत में वेतन की सुरक्षा के लिए लागू मुख्य कानून
न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 (Minimum Wages Act):
- प्रत्येक राज्य सरकार अपने-अपने उद्योगों के लिए न्यूनतम वेतन तय करती है।
- कोई भी कंपनी इससे कम वेतन नहीं दे सकती, चाहे वह स्थायी कर्मचारी हो या अनुबंध पर।
वेतन भुगतान अधिनियम, 1936 (Payment of Wages Act):
- इस अधिनियम के तहत वेतन अधिकतम हर महीने की 7 तारीख तक दिया जाना चाहिए।
- गैर-कानूनी कटौती, देर से भुगतान या रोका गया वेतन इस अधिनियम के तहत आपत्ति योग्य है।
शॉप्स एंड एस्टेब्लिशमेंट एक्ट:
- यह कानून राज्य स्तर पर लागू होता है।
- इसमें काम के घंटे, छुट्टियां, ओवरटाइम का भुगतान और सैलरी समय पर देने की व्यवस्था की गई है।
कॉंट्रैक्ट लेबर अधिनियम, 1970:
अगर कर्मचारी कॉंट्रैक्टर के माध्यम से काम कर रहा है और उसे वेतन नहीं मिलता, तो मुख्य नियोक्ता (Principal Employer) जिम्मेदार होता है।
औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 (Section 33C):
कर्मचारी अपने बकाया वेतन या लाभ के लिए लेबर कोर्ट में क्लेम दाखिल कर सकता है।
कंपनी अधिनियम, 2013 (Section 447):
अगर सैलरी रोकना धोखाधड़ी के इरादे से किया गया है, तो यह आपराधिक मामला बन सकता है।
इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC), 2016:
यदि आपकी बकाया सैलरी ₹1 लाख से ₹1 करोड़ तक है, तो आप NCLT (National Company Law Tribunal) में केस दर्ज कर सकते हैं।
अगर कंपनी सैलरी नहीं दे रही हो तो क्या करें?
HR या Accounts विभाग से संपर्क करें
सबसे पहले आप शांति से कंपनी के HR या Accounts विभाग को लिखित रूप से ईमेल करें।
लीगल नोटिस भेजें
- यदि कोई समाधान नहीं मिलता, तो आप किसी वकील की मदद से कंपनी को एक विधिवत लीगल नोटिस भेज सकते हैं।
- इस नोटिस में वेतन भुगतान की मांग, समयसीमा और कानूनी परिणाम स्पष्ट होने चाहिए।
श्रम आयुक्त (Labour Commissioner) को शिकायत दर्ज कराएं
- अगर नोटिस के बाद भी वेतन नहीं दिया गया, तो आप लेबर कमिश्नर ऑफिस में लिखित शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
- इसके लिए साथ में ये दस्तावेज़ लगाएं:
- एम्प्लॉयमेंट लेटर
- बैंक स्टेटमेंट
- सैलरी स्लिप्स
- नोटिस की कॉपी
लेबर कोर्ट या इंडस्ट्रियल ट्रिब्यूनल में केस करें
- एक साल के भीतर केस दायर करने पर लेबर कोर्ट मामला स्वीकार करता है।
- निर्णय आमतौर पर 3 महीने के भीतर देने की कोशिश होती है।
आर्बिट्रेशन (अगर कॉन्ट्रैक्ट में है)
कुछ कॉन्ट्रैक्ट्स में “Arbitration Clause” होता है, जिसके तहत विवाद कोर्ट के बजाय आर्बिट्रेटर द्वारा सुलझाया जाता है।
NCLT में याचिका (यदि कंपनी दिवालिया हो रही हो)
अगर कंपनी दिवालियापन के कगार पर है और ₹1 लाख से अधिक वेतन बकाया है, तो आप IBC के तहत NCLT में क्लेम दर्ज कर सकते हैं।
किन दस्तावेजों की आवश्यकता होगी?
दस्तावेज़ | उपयोग |
ऑफर लेटर या जॉइनिंग लेटर | आपके रोजगार का प्रमाण |
सैलरी स्लिप / बैंक स्टेटमेंट | सैलरी ना मिलने का प्रमाण |
भेजा गया नोटिस | कंपनी को चेतावनी का प्रमाण |
ईमेल या चैट | बातचीत का रिकॉर्ड |
कॉन्ट्रैक्ट कॉपी | आर्बिट्रेशन या नियमों का आधार |
केस फाइल करने से पहले ध्यान रखें:
- सभी दस्तावेज़ों की फोटोकॉपी कर लें और मूल सुरक्षित रखें
- HR से संवाद हमेशा लिखित में रखें
- केस दायर करने की समयसीमा (Limitation) का पालन करें
- सैलरी क्लेम में पेनल्टी और ब्याज की भी मांग की जा सकती है
वास्तविक उदाहरण:
- अनामिका (दिल्ली): इन्होंने एक प्राइवेट एजेंसी में 8 महीने काम किया लेकिन 2 महीने की सैलरी नहीं दी गई। उन्होंने लेबर कमिश्नर के पास शिकायत दर्ज कराई और 45 दिनों में उनका केस निपटा दिया गया।
- राहुल (मुंबई): NCLT के माध्यम से ₹1.75 लाख की सैलरी वसूली की। उन्होंने कंपनी के दिवालियापन की स्थिति में तुरंत लीगल टीम की मदद ली।
निष्कर्ष: वेतन अधिकार है, एहसान नहीं
हर कर्मचारी को मेहनत के बदले समय पर वेतन मिलना उसका कानूनी और नैतिक अधिकार है। अगर आपकी कंपनी जानबूझकर वेतन नहीं दे रही है, तो आप चुप न बैठें। सही प्रक्रिया अपनाएं, सबूत इकट्ठा करें और उचित मंच पर न्याय की मांग करें।
यदि आप सैलरी संबंधी किसी विवाद में फंसे हैं, तो लीड इंडिया के अनुभवी श्रम कानून वकील आपकी मदद कर सकते हैं।
FAQs
Q1. कंपनी 2 महीने से सैलरी नहीं दे रही है, क्या तुरंत केस कर सकते हैं?
हां, पहले नोटिस भेजें और फिर लेबर कमिश्नर या कोर्ट में शिकायत दर्ज करें।
Q2. क्या कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों को भी ये अधिकार मिलते हैं?
हां, अगर कॉन्ट्रैक्ट वैध है और आपने काम किया है तो आपको भी वेतन का हक है।
Q3. क्या बिना एग्रीमेंट भी केस किया जा सकता है?
हां, बैंक स्टेटमेंट, ईमेल, काम के सबूत कोर्ट में स्वीकार्य हैं।
Q4. टैक्स काट लिया गया लेकिन सैलरी नहीं दी गई तो?
यह Section 447 (Companies Act) के तहत धोखाधड़ी मानी जा सकती है।
Q5. क्या सैलरी के अलावा हर्जाना भी मिल सकता है?
हां, लेबर कोर्ट या NCLT में ब्याज और पेनल्टी की मांग की जा सकती है।