भारत में विवाह सबसे पवित्र समझा जाता है। जब एक पुरुष और महिला की शादी होती है, तो वे हर स्थिति में में हमेशा एक-दूसरे का समर्थन और प्यार करने का वादा करते हैं। कहा जाता है कि एक पुरुष और एक महिला के बीच का बंधन अनंत काल और प्यार और सम्मान की जीत का प्रतिनिधित्व करता है।
पिछले कुछ सालों से मैरिटल रेप जैसी बातें सुनने में आती हैं जहां पति अपनी पत्नी की सहमति के बग़ैर शारीरिक संबंध बनाने के लिए ज़बरदस्ती करता है। ऐसी स्थिति में सवाल उठता है है कि एक महिला को इस के लिए क्या करना चाहिए? एक महिला इस हेतु कौन से कानूनी कदम उठा सकती है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है और इस धारा के अपवाद खंड में, कहा गया है कि “अपनी ही पत्नी के साथ एक पुरुष द्वारा यौन संबंध, जहाँ पत्नी पंद्रह वर्ष से ऊपर की है, बलात्कार की श्रेणी में नहीं आएगा। IPC की धारा 376 जो बलात्कार के लिए सजा का प्रावधान करती है, में कहा गया है कि बलात्कारी को किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा दी जानी चाहिए जो 7 साल से कम नहीं होगी। जो जीवन भर या 10 साल से अधिक की अवधि तक के लिए बढ़ाई जा सकती है और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
बलात्कार के कानून पर विधि आयोग की की 72 वीं रिपोर्ट भी देखी जानी चाहिए। विधि आयोग द्वारा इन कानूनों में उचित बदलाव के लिए सिफ़ारिश की गई थी।
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बलात्कार’ शब्द को ‘यौन उत्पीड़न’ शब्द से बदल दिया जाना चाहिए।
लिंग/योनि, शिश्न/मौखिक, उंगली/योनि, उंगली/गुदा और वस्तु/योनि संभोग के सभी रूपों को आईपीसी की धारा 375 में शामिल किया जाना चाहिए।
साक्षी बनाम भारत संघ और अन्य [2004 (5) एससीसी 518] के प्रकाश में, ‘शरीर के किसी भी हिस्से पर यौन हमले को बलात्कार के रूप में माना जाना चाहिए।
एक नया अपराध, अर्थात् धारा 376ई ‘गैरकानूनी यौन आचरण’ शीर्षक के साथ बनाया जाना चाहिए।
आईपीसी की धारा 509 में संशोधन की आवश्यकता है, जहां उक्त धारा में निर्धारित अपराध यौन उत्पीड़न के इरादे से किया गया है, वहां उच्च सजा प्रदान की जाती है।
वैवाहिक बलात्कार, आईपीसी की धारा 375 के स्पष्टीकरण (2) को हटा दिया जाना चाहिए। जिस तरह पत्नी के खिलाफ पति द्वारा किसी भी शारीरिक हिंसा, जबरन संभोग को समान रूप से एक अपराध के रूप में माना जाना चाहिए।
हालाँकि अभी भी भारत में मैरिटल रेप को नहीं माना जाता है। एक बड़ी विडंबना यह है कि एक महिला अपनी शादी के भीतर अपने जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की रक्षा कर सकती है लेकिन अपने शरीर की नहीं।
हालांकि एक महिला खुद को शारीरिक यातना या यौन उत्पीड़न से बचा सकती है। आईपीसी की धारा 375 में दी गई परिभाषा के अनुसार पति को अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती यौन संबंध बनाने के लिए कानूनी रूप से दंडित नहीं किया जा सकता है, लेकिन पत्नी को बचाने के लिए कानून वैकल्पिक उपाय प्रदान करता है। घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005 प्रदान करता है कि कोई भी कार्य जो पीड़ित व्यक्ति के स्वास्थ्य, सुरक्षा और जीवन को नुकसान या चोट पहुँचाता है या ऐसा करने की प्रवृत्ति रखता है और साथ ही शारीरिक शोषण, यौन शोषण, मौखिक और भावनात्मक दुर्व्यवहार का कारण बनता है, घरेलू हिंसा ही कहलाएगा।
क्रूरता से निपटने की धारा 498-ए का उपयोग महिलाओं द्वारा पति द्वारा “विकृत यौन आचरण” से खुद को बचाने के लिए भी किया जा सकता है।
भारत में वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक बनाने के प्रयास किए गए लेकिन अलग आधार पर याचिका को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति वर्मा समिति ने 2012 के दिल्ली बलात्कार मामले के बाद वैवाहिक बलात्कार को आपराधिक बनाने की मांग पर ध्यान दिया। हालाँकि, भारत सरकार ने इससे दूर होने का विकल्प चुना क्योंकि इसमें विवाह की संस्था को नष्ट करने की क्षमता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने महाराष्ट्र राज्य बनाम मधुकर नारायण मंडिकर में, किसी के शरीर पर निजता के अधिकार का उल्लेख किया है।
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