भारतीय न्यायपालिका में “स्पेशल लीव पिटीशन” (SLP) एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रावधान है, जिसे सुप्रीम कोर्ट के पास किसी मामले को सुनने और निर्णय लेने के लिए पेश किया जा सकता है। यह एक सामान्य नियम के विरुद्ध उपाय है जो सामान्य अपील के माध्यम से न्यायालय में नहीं आ सकते, SLP ऐसे मामलों को सुप्रीम कोर्ट में लाने की सुविधा प्रदान करता है। विशेष रूप से, यह उन मामलों में उपयोगी होता है जिनमें निचली अदालतों का निर्णय कानूनी रूप से गलत लगता है।
यह ब्लॉग आपको स्पेशल लीव पिटीशन (SLP) से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेगा। हम यह जानेंगे कि आप स्पेशल लीव पिटीशन कब दायर कर सकते हैं, इसके दायर करने की प्रक्रिया क्या है, और इस पर निर्णय कब और कैसे लिया जाता है।
स्पेशल लीव पिटीशन क्या है?
स्पेशल लीव पिटीशन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत एक कानूनी प्रावधान है। यह एक विशेष प्रकार की पिटीशन है, जिसे कोई भी व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट में दायर कर सकता है, ताकि सुप्रीम कोर्ट को किसी निचली अदालत या अन्य न्यायिक निकाय द्वारा दिए गए निर्णय को फिर से देखने का अवसर मिल सके।
यह एक अपील नहीं है, बल्कि यह न्यायालय के पास किसी विशेष मामले को सुनने की अनुमति प्राप्त करने के लिए दायर की जाती है। अगर SLP सभी मापदंडो पे खरी उतरती है तो उसे माननीय उच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार किया जाता है तथा SLP के माध्यम से न्यायालय इस मामले को सुनने का निर्णय लेता है, तो सुप्रीम कोर्ट उस पर सुनवाई कर सकता है।
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 136 क्या है?
अनुच्छेद 136 स्पेशल लीव पिटीशन के बारे में है। इसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट अपनी इच्छा से अपील करने के लिए विशेष अनुमति दे सकता है-
- किसी भी फैसले, आदेश, या सजा से;
- किसी भी मामले में किसी फैसले को पलट भी सकता है
- जो भारत के किसी भी न्यायालय या ट्रिब्यूनल द्वारा दिया गया हो।
अनुच्छेद 136 अपील का अधिकार नहीं देती है। इस अनुच्छेद के तहत जो शक्ति दी गई है, वह एक विशेष और विशेष परिस्थिति में प्रयोग की जाने वाली शक्ति है, जो सामान्य कानून से बाहर है। इसलिए ये स्पेशल लीव पीटशन है ।
सिविल मामलों में, जब कोई बड़ा कानूनी सवाल हो, जो आम लोगो के हित का महत्व रखता हो , तब स्पेशल लीव पिटीशन दी जाती है। आपराधिक मामलों में, सुप्रीम कोर्ट तभी दखल करेगा जब उसे यह संतुष्टि हो कि कोई विशेष और अपवादात्मक स्थिति है और न्यायालय या ट्रिब्यूनल द्वारा दिए गए फैसले से गंभीर अन्याय हुआ है। अगर कोई स्पेशल लीव पिटीशन दायर की जाती है तो सुप्रीम कोर्ट ही यह तय करता है कि पिटीशन को स्वीकार करे या अस्वीकार।
क्या अनुच्छेद 136 एक असाधारण क्षेत्राधिकार है (Extraordinary Jurisdiction)?
जैसा की हम जानते है की माननीय उच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासकि निर्णय तिरुपति बालाजी डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम बिहार राज्य, AIR 2004 SC 2351 के मामले में कहा कि अनुच्छेद 136 एक “असाधारण क्षेत्राधिकार “Extraordinary Jurisdiction” है, जिसे संविधान ने सुप्रीम कोर्ट को विश्वास और आस्था के साथ दिया है। इस अधिकार का प्रयोग न्याय, कर्तव्य और अन्याय को समाप्त करने के विचार पर आधारित होता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 136, किसी पक्ष को अपील का अधिकार नहीं देती, बल्कि यह सुप्रीम कोर्ट को एक पावर देती है , जिसे न्याय और कर्तव्य की भावना के आधार पर प्रयोग किया जाता है।
स्पेशल लीव पिटीशन दायर करने की स्थिति कब आती है ?
स्पेशल लीव पिटीशन दायर करने के लिए कुछ विशिष्ट परिस्थितियाँ होनी चाहिए। यह निम्नलिखित परिस्थितियों में दायर की जा सकती है:
संपत्ति, अधिकार या व्यक्तिगत आज़ादी से जुड़ा मामला: यदि कोई मामला किसी व्यक्ति के संपत्ति, अधिकार, या व्यक्तिगत आज़ादी से जुड़ा हो, और निचली अदालत ने उस पर गलत निर्णय दिया हो, तो ऐसे मामलों में SLP दायर की जा सकती है।
संविधानिक अधिकार का उल्लंघन: यदि किसी मामले में संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो, तो ऐसे मामलों में भी SLP दायर की जा सकती है।
मामला सार्वजनिक या सामूहिक महत्व का हो: अगर कोई मामला समाज के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण हो, और निचली अदालत ने उस पर गलत निर्णय दिया हो, तो सुप्रीम कोर्ट में SLP दायर की जा सकती है।
न्यायिक असंतोष:जब दोनों याचिकाकर्ता में किसी को लगता है है की उसको न्याय नहीं मिला है तो उसके पास यह अधिकार है की वह SLP दायर कर सकता है।
स्पेशल लीव पिटीशन दायर करने की प्रक्रिया है?
SLP दायर करने के लिए कुछ कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करना होता है। यह प्रक्रिया निम्नलिखित है:
SLP का प्रारूप तैयार करना: सबसे पहले, पिटीशन को SLP का प्रारूप तैयार करना होता है। इसमें पिटीशन के उद्देश्य, पक्षों के नाम, मामले का विवरण और कानूनी आधार होना चाहिए। इसमें यह भी बताया जाता है कि क्यों सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में सुनवाई करनी चाहिए।
वकील से सलाह: SLP दायर करने से पहले, आपको एक सक्षम वकील से सलाह लेनी चाहिए, जो आपको कानूनी प्रक्रिया के बारे में मार्गदर्शन कर सके।आपको अपने केस की फाइल की पूरी तरह से जांच (file inspection) करवानी चाहिए जिससे ये पता हो की आपके केस जितने की कितनी उम्मीद है । वकील आपको यह समझाएगा कि क्या आपका मामला सुप्रीम कोर्ट में दायर करने योग्य है या नहीं।
पिटीशन दाखिल करना: एक बार जब पिटीशन तैयार हो जाती है, तो उसे सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के पास दाखिल किया जाता है। इसके बाद, पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में विचार के लिए रखी जाती है।
सुनवाई के लिए चुना जाना: सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या मामले को सुना जाए या नहीं। यदि मामला महत्वपूर्ण है, तो न्यायालय पिटीशन पर सुनवाई करेगा। यदि सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि मामले में योग्यता है, तो वह पिटीशन स्वीकार करेगा और सुनवाई के लिए अगला कदम उठाएगा।
निर्णय: सुनवाई के बाद, सुप्रीम कोर्ट मामले में एक निर्णय देगा। यदि पिटीशन स्वीकार की जाती है, तो न्यायालय निचली अदालत के निर्णय को सही या गलत घोषित कर सकता है, और आवश्यक निर्देश जारी कर सकता है।
स्पेशल लीव पिटीशन कौन दायर कर सकता है?
स्पेशल लीव पिटीशन किसी भी नागरिक द्वारा दायर की जा सकती है, जब वह कोई कानूनी अधिकार या समाज के हित में में प्रभावित हुआ हो। यह याचिका निम्नलिखित पक्षों द्वारा दायर की जा सकती है ।
- संस्थाएँ या संगठन: किसी सामाजिक संस्था, संगठन या कंपनी द्वारा भी SLP दायर की जा सकती है, यदि उस संस्था का कोई कानूनी अधिकार प्रभावित हुआ हो। जैसे कोई कंपनी हो या फर्म या कोई हॉस्पिटल या एनजिओ जैसी संस्थान , SLP दायर कर सकता है।
- सरकारी या सार्वजनिक निकाय: राज्य सरकार या केंद्र सरकार, जिनके निर्णय के खिलाफ कोई मामला सुप्रीम कोर्ट में उठाया जा सकता है।
स्पेशल लीव पिटीशन दायर करने की समय सीमा क्या है?
- अगर हाई कोर्ट का आदेश, सुप्रीम कोर्ट में अपील की अनुमति देने से मना कर दे, (फ़िटनेस प्रमाणपत्र ) तो उस पर 60 दिन के भीतर स्पेशल लीव पिटीशन दायर की जा सकती है। यह अनुच्छेद 133(b), लिमिटेशन एक्ट, 1963 के तहत बताया गया है।
- किसी भी हाई कोर्ट के फैसले या आदेश के खिलाफ 90 दिन के भीतर स्पेशल लीव पिटीशन दायर की जा सकती है। यह अनुच्छेद 133(c), लिमिटेशन एक्ट, 1963 के तहत बताया गया है।
स्पेशल लीव पिटीशन फाइल करने में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड की क्या भूमिका है?
भारत के सुप्रीम कोर्ट में स्पेशल लीव पिटीशन दायर करने के लिए एक एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड होना जरूरी है। नियमों के अनुसार, केवल एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड ही किसी पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हो सकता है या उसका प्रतिनिधित्व कर सकता है। कोई अन्य वकील तब तक पेश नहीं हो सकता या मामले में दलील नहीं दे सकता, जब तक उसे एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड निर्देश नहीं देता।
निष्कर्ष
स्पेशल लीव पिटीशन एक महत्वपूर्ण कानूनी उपाय है, जो निचली अदालतों द्वारा दिए गए फैसलों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन दायर करने का अवसर प्रदान करता है। इसे दायर करने की प्रक्रिया सरल नहीं होती और इसमें कानूनी विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। अगर आप यह सोच रहे हैं कि आपको SLP दायर करना चाहिए, तो सबसे पहले आपको अपने वकील से सलाह लेनी चाहिए, ताकि यह तय किया जा सके कि आपका मामला सुप्रीम कोर्ट में दायर करने योग्य है या नहीं।
स्पेशल लीव पिटीशन के दायर करने के समय को लेकर स्पष्टता और सही मार्गदर्शन प्राप्त करना बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह आपकी कानूनी यात्रा का एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
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FAQs
1. SLP दायर करने की समय सीमा क्या है?
हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ SLP 90 दिनों के भीतर दायर की जा सकती है। यदि सुप्रीम कोर्ट ने अपील की अनुमति देने से मना कर दिया हो, तो 60 दिन के भीतर SLP दायर की जा सकती है।
2. कौन SLP दायर कर सकता है?
SLP किसी भी व्यक्ति, संस्था, या सरकारी निकाय द्वारा दायर की जा सकती है, यदि उन्हें निचली अदालत के निर्णय से कानूनी नुकसान हुआ हो या उनके संविधानिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ हो।
3. SLP दायर करने में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड का क्या रोल है?
सुप्रीम कोर्ट में SLP दायर करने के लिए एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड की आवश्यकता होती है। यह वकील ही याचिका को सुप्रीम कोर्ट में पेश कर सकता है और मामले में दलील प्रस्तुत करता है।