पुलिस बिना वारंट के कब गिरफ्तारी कर सकती है?

When can the police arrest without a warrant

जब हम गिरफ्तारी के बारे में सोचते हैं, तो हमें अक्सर पुलिस अधिकारी की तस्वीर नजर आती है, जो वारंट के साथ आता है और बताता है कि उसे अदालत से किसी को हिरासत में लेने की अनुमति मिली है। लेकिन भारत में कानून कुछ ऐसी स्थितियों की अनुमति देता है, जब पुलिस बिना वारंट के किसी को गिरफ्तार कर सकती है। यह बहुत से लोगों के लिए भ्रमित करने वाला हो सकता है, क्योंकि यह हमेशा साफ नहीं होता कि पुलिस के पास बिना वारंट के गिरफ्तारी करने का अधिकार कब होता है।

पुलिस को बिना वारंट के गिरफ्तारी करने का अधिकार भारतीय न्याय संहिता (BNS) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) द्वारा तय किया गया है। हालांकि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार हर नागरिक को मिलता है, फिर भी कुछ खास परिस्थितियों में पुलिस को बिना वारंट के गिरफ्तार करने की अनुमति होती है। इस लेख में, हम उन विशेष परिस्थितियों को सरल तरीके से समझेंगे, जब बिना वारंट के गिरफ्तारी करना कानूनी है, ताकि आप अपने अधिकारों और भारत में कानून प्रवर्तन की शक्तियों को समझ सकें।

गिरफ्तारी और वारंट का सामान्य नियम

गिरफ्तारी का मतलब है किसी व्यक्ति को अपराध करने के आरोप में हिरासत में लेना। जब पुलिस किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है, तो वह व्यक्ति कोर्ट के सामने पेश किया जाता है, जहां उसकी जमानत या आरोपों की सुनवाई होती है। वारंट वह दस्तावेज है, जिसे कोर्ट आरोपी की गिरफ्तारी के लिए जारी करती है। यह केवल एक कानूनी औपचारिकता नहीं है, बल्कि आरोपी को एक निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार भी देती है।

लेकिन क्या हर गिरफ्तारी के लिए वारंट आवश्यक है? नहीं। पुलिस बिना वारंट के भी कुछ परिस्थितियों में गिरफ्तार कर सकती है, और यह समझना जरूरी है कि कौन सी परिस्थितियाँ ऐसी हैं जहां पुलिस को ऐसा अधिकार प्राप्त है।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

कानूनी आधार: BNSS की धारा 35

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 35 पुलिस को अपराधी को गिरफ्तार करने का अधिकार देती है, बशर्ते वह कॉग्निजेबल ऑफेंस से संबंधित हो। कॉग्निजेबल ऑफेंस वे अपराध होते हैं जिनमें पुलिस बिना कोर्ट के आदेश के भी गिरफ्तारी कर सकती है।

गिरफ्तारी करने की पावर  किन हालात में पुलिस को मिलती है? पुलिस को गिरफ्तारी की पावर तब मिलती है जब व्यक्ति ने अपराध किया हो, या जब उसे पकड़ने में देरी से साक्ष्य नष्ट हो सकते हों या वह फरार हो सकता हो।

बेलेबल ऑफेंस में आरोपी को जमानत मिल सकती है, जबकि नॉन – बेलेबल ऑफेंस में आरोपी को जमानत मिलने में मुश्किल हो सकती है और उसे अदालत से ही जमानत का निर्णय लेना होता है।

किन मामलों में बिना वारंट गिरफ्तारी संभव है?

  • जब कॉग्निजेबल ऑफेंस हो: यदि अपराध गंभीर है और पुलिस को अपराध करने का शक है, तो पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है।
  • अपराध की गंभीरता: गंभीर अपराधों जैसे हत्या, बलात्कार, डकैती में पुलिस को बिना वारंट गिरफ्तारी करने का अधिकार होता है, क्योंकि अपराध का प्रभाव बड़ा होता है।
  • अपराध होते हुए देखा गया हो: यदि पुलिस किसी व्यक्ति को अपराध करते हुए देखती है, तो वह बिना वारंट के उसे तुरंत गिरफ्तार कर सकती है।
  • आरोपी फरार हो या सबूत मिटाने की कोशिश कर रहा हो: अगर आरोपी फरार हो या सबूत नष्ट करने की कोशिश कर रहा हो, तो पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है।
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पुलिस को किन शर्तों का पालन करना होता है?

  • गिरफ्तारी की जांच: पुलिस को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त कारण हैं। अगर पुलिस को किसी व्यक्ति के खिलाफ ठोस सबूत मिलते हैं, तभी गिरफ्तारी की जानी चाहिए। बिना सही कारण के गिरफ्तारी करना कानून का उल्लंघन हो सकता है।
  • अधिकारों की जानकारी: पुलिस अधिकारी को आरोपी को गिरफ्तारी के कारण के बारे में बताना चाहिए और उसे उसके अधिकारों की जानकारी देनी चाहिए। आरोपी को यह जानने का अधिकार है कि उसे क्यों गिरफ्तार किया जा रहा है और उसे जमानत का अधिकार भी होता है।
  • महिला की गिरफ्तारी: अगर महिला को गिरफ्तार करना है, तो यह दिन के समय और महिला पुलिस अधिकारी द्वारा ही किया जा सकता है। यह कानून की सुरक्षा है ताकि महिला की गरिमा और अधिकारों का उल्लंघन न हो।

क्या पुलिस सिर्फ शक के आधार पर भी गिरफ्तार कर सकती है?

‘उचित संदेह’ का मतलब है जब पुलिस को किसी व्यक्ति के बारे में ऐसा शक हो, जो सामान्य और तर्कसंगत हो। यह शक केवल अंदाजे पर आधारित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसके पीछे कुछ ठोस संकेत या परिस्थितियाँ होनी चाहिए। यह शक कानून के तहत पुलिस को गिरफ्तारी करने का आधार देता है।

कोर्ट उचित संदेह को तब मान्यता देता है जब पुलिस को कोई ठोस संकेत या घटनाएँ दिखती हैं, जो उस व्यक्ति के अपराध में शामिल होने की संभावना जताती हैं। कोर्ट यह सुनिश्चित करता है कि गिरफ्तारी सिर्फ संदेह के कारण नहीं, बल्कि यथोचित कारणों पर आधारित हो।

अगर पुलिस के पास कोई ठोस आधार नहीं है और केवल शक के आधार पर किसी को गिरफ्तार करती है, तो यह गिरफ्तारी अवैध मानी जाएगी। ऐसे में गिरफ्तारी के खिलाफ व्यक्ति कोर्ट में चुनौती दे सकता है, क्योंकि बिना ठोस कारण के गिरफ्तारी का अधिकार पुलिस को नहीं है।

छोटे मामलों में क्या वारंट ज़रूरी होता है?

  • जमानती अपराधों में गिरफ्तारी का नियम: जमानती अपराधों में गिरफ्तारी के लिए पुलिस को पहले वारंट की आवश्यकता नहीं होती। अगर अपराध हल्का है और आरोपी के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं, तो पुलिस आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है। हालांकि, ऐसे मामलों में आरोपी को जमानत मिलने का अधिकार होता है और उसे जल्दी रिहा किया जा सकता है।
  • सिर्फ पूछताछ या नोटिस  की प्रक्रिया: अगर किसी मामले में गिरफ्तारी की जरूरत नहीं होती, तो पुलिस केवल आरोपी को पूछताछ के लिए बुला सकती है या नोटिस जारी कर सकती है। BNSS की धारा 35(3) के तहत, पुलिस बिना गिरफ्तारी किए व्यक्ति से जानकारी प्राप्त कर सकती है, जब तक मामला गंभीर न हो।

बिना वारंट गिरफ्तारी में आपकी क्या कानूनी सुरक्षा है?

  • गिरफ्तारी की वैधता को चुनौती दें: आप अपनी गिरफ्तारी की वैधता को अदालत में चुनौती दे सकते हैं। अगर गिरफ्तारी बिना ठोस आधार या उचित प्रक्रिया के की गई हो, तो आप अदालत से इसे अवैध घोषित करने का अनुरोध कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को अदालत में कानूनी आवेदन द्वारा किया जा सकता है।
  • मजिस्ट्रेट के सामने पेशी: कानून के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि गिरफ्तारी वैध है और आरोपी के अधिकारों का उल्लंघन नहीं हो रहा है। इससे पुलिस द्वारा किए गए उत्पीड़न को रोका जा सकता है।
  • अगर अधिकार नहीं बताए गए तो क्या केस बनता है? अगर पुलिस गिरफ्तारी के दौरान आरोपी को उसके अधिकारों के बारे में नहीं बताती, तो यह कानून का उल्लंघन है। ऐसे मामलों में आरोपी अदालत में इस उल्लंघन को चुनौती दे सकता है, और गिरफ्तारी अवैध हो सकती है, जिससे पुलिस पर कार्रवाई हो सकती है।
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गिरफ्तारी के बाद क्या करना चाहिए?

  • वकील से संपर्क करें: गिरफ्तारी के बाद सबसे पहले आपको एक अच्छे वकील से संपर्क करना चाहिए। वकील आपको आपके अधिकारों और कानूनी विकल्पों के बारे में जानकारी देगा। वह आपकी मदद करेगा ताकि आप सही तरीके से अपनी जमानत या अन्य कानूनी कदम उठा सकें।
  • अरेस्ट मेमो लें: जब पुलिस आपको गिरफ्तार करती है, तो आपको अरेस्ट मेमो देना चाहिए। इस दस्तावेज़ में गिरफ्तारी के कारण, समय, स्थान और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी होती है। यह दस्तावेज़ आपके अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक है और आपकी गिरफ्तारी की वैधता को प्रमाणित करता है।
  • बेल अर्जी, जमानतदार की व्यवस्था: गिरफ्तारी के बाद, आपको जमानत अर्जी दाखिल करने का अधिकार है। वकील की मदद से आप अदालत में बेल अर्जी लगा सकते हैं। इसके अलावा, आपको जमानतदार की व्यवस्था करनी होगी, जो आपके खिलाफ कोई अपराध न हो और अदालत के आदेश का पालन करेगा।

महिलाओं, बच्चों और बुज़ुर्गों की गिरफ्तारी से जुड़े विशेष नियम

  • महिला को सूर्यास्त के बाद नहीं पकड़ा जा सकता – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 43(4) के अनुसार, असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर, सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले महिलाओं को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। यदि रात में गिरफ्तारी आवश्यक हो, तो महिला पुलिस अधिकारी को मजिस्ट्रेट से पूर्व अनुमति लेनी होती है।
  • 15 वर्ष से कम उम्र और 60+ व्यक्तियों के लिए विशेष प्रावधान – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 49 में 15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और 60 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों की गिरफ्तारी और तलाशी के लिए विशेष प्रावधान हैं। इन व्यक्तियों की तलाशी शालीनता और सम्मान के साथ की जानी चाहिए, और उनकी गिरफ्तारी के दौरान अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए।

गिरफ्तारी में पुलिस की मनमानी हो तो क्या करें?

​यदि पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के दौरान कानून का उल्लंघन या अत्याचार हो, तो निम्न कदम उठाए जा सकते हैं:​

  • गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर आरोपी को मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश नहीं किया गया या अवैध गिरफ्तारी हुई हो, तो हाई कोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की जा सकती है। इससे आरोपी की अवैध हिरासत को चुनौती दी जा सकती है।​
  • पुलिस की मनमानी या अत्याचार के मामलों में स्टेट या नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। कमीशन उचित जांच और कार्रवाई सुनिश्चित करता है।​
  • पुलिसकर्मी द्वारा अवैध या अनुशासनहीनता पूर्ण कृत्य करने पर, संबंधित पुलिस विभाग में शिकायत दर्ज कराई जा सकती है। विभागीय जांच के बाद, आरोपी पुलिसकर्मी के खिलाफ कार्रवाई की जाती है।
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प्रबीर पुरकायस्थ बनाम भारत संघ (2024)

  • गिरफ्तारी के आधार की लिखित सूचना: न्यायालय ने स्पष्ट किया कि गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के कारणों की लिखित जानकारी देना आवश्यक है, ताकि वह अपनी रक्षा प्रभावी रूप से कर सके।
  • ‘कारण’ और ‘आधार’ के बीच अंतर: कोर्ट ने ‘कारण’ (जिन्हें गिरफ्तारी का कारण बताया जाता है) और ‘आधार’ (जिन्हें गिरफ्तारी के लिए कानूनी आधार कहा जाता है) के बीच अंतर को स्पष्ट किया, जिससे गिरफ्तारी की वैधता की समझ में सहायता मिली।
  • संविधान के अनुच्छेद 22(1) का अनुपालन: न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 22(1) के तहत गिरफ्तारी के आधार की सूचना की आवश्यकता को रेखांकित किया, और कहा कि इसका उल्लंघन होने पर गिरफ्तारी या निरोध अवैध माना जाएगा।

अन्नाद महादेवन बनाम केरल राज्य (2023)

  • गिरफ्तारी की शर्तें: अदालत ने स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 151 के तहत गिरफ्तारी केवल तभी की जा सकती है जब पुलिस को कॉग्निजेबल ऑफेंस करने की योजना की जानकारी हो और यह विश्वास हो कि गिरफ्तारी से अपराध को रोका जा सकता है।​
  • गिरफ्तारी के लिए ठोस आधार का होना आवश्यक: निर्णय में यह भी उल्लेख किया गया कि बिना ठोस और विश्वसनीय जानकारी के गिरफ्तारी नहीं की जा सकती, जिससे गिरफ्तारी की शक्ति का दुरुपयोग रोका जा सके।​
  • व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा: इस फैसले के माध्यम से अदालत ने व्यक्तियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा पर जोर दिया और सुनिश्चित किया कि गिरफ्तारी की प्रक्रिया कानूनी मानदंडों के अनुसार हो।

निष्कर्ष

पुलिस को कानून के अनुसार गिरफ्तारी का अधिकार है, लेकिन नागरिकों को अपनी सुरक्षा और अधिकारों की रक्षा का भी अधिकार प्राप्त है। अज्ञानता से सबसे बड़ा खतरा यह है कि हम अपने अधिकारों के प्रति सजग नहीं रहते, जिससे पुलिस या अन्य प्राधिकृत व्यक्तियों द्वारा हमारे अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। इसलिए, गिरफ्तारी की स्थिति में अपने अधिकारों के प्रति जागरूक रहना और उचित कानूनी कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है। यह न केवल हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है, बल्कि न्यायपालिका और कानून व्यवस्था में विश्वास को भी मजबूत करता है।

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FAQs

1. क्या पुलिस बिना वारंट के कभी भी गिरफ्तार कर सकती है?

हां, अगर अपराध संज्ञेय हो और अपराध की गंभीरता ज्यादा हो तो पुलिस बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है।

2. अगर पुलिस गिरफ्तार करती है तो क्या बेल तुरंत मिल सकती है?

जमानती अपराधों में बेल तुरंत मिल सकती है, लेकिन नॉन-बैलेबल अपराधों में ऐसा संभव नहीं है।

3. क्या पुलिस महिला को रात में गिरफ्तार कर सकती है?

नहीं, महिला को सूर्यास्त के बाद गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।

4. बिना वारंट के गिरफ्तारी का विरोध कैसे करें?

आप मजिस्ट्रेट के सामने पेशी की मांग कर सकते हैं और पुलिस की गिरफ्तारी को चुनौती दे सकते हैं।

5. क्या गिरफ्तारी के बाद FIR दिखाना जरूरी है?

हां, गिरफ्तारी के बाद पुलिस को FIR दिखाना जरूरी है और आरोपी को गिरफ्तारी की वजह बतानी होती है।

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