भारत में आपसी तलाक लेने के लिए कौन सा कानून है?

भारत में आपसी तलाक लेने के लिए कौन सा कानून है

हर इंसान के जीवन में एक समय आता है जब उसकी शादी होती है। यह हर किसी के लिए एक जरूरी फैसला होता है। हालाँकि, सभी शादियां चल नहीं पाती है।इन शादियों के टूटने की वजह हमेशा कपल ही नहीं होते है। कई बार ऐसी सिचुऎशन्स पैदा हो जाती है कि इंसान अपने काबू में नहीं रहता है। अगर आप तलाक के लिए कानूनी सलाह या इससे संबंधित कोई जानकारी लेना चाहते है तो लीड इंडिया से सम्पर्क कर सकते है। 

हालाँकि, अगर किसी कपल ने अलग होने का फैसला ले लिया है तो उनके लिए जरूरी है कि वे कानूनी तौर पर तलाक लेकर अलग हो। यह लड़का और लड़की दोनों के लिए सही साबित होता है। अगर कपल कानूनी रूप से अलग होते है तो उन्हें दोबारा शादी करने में कोई दिक्कत नहीं आती है और आने वाले समय में कोई भी पार्टनर किसी भी प्रकार का दावा नहीं कर सकता है और अगर कपल तलाक लिए बिना अलग होकर रहते है तो भी वे शादी-शुदा कपल ही माने जायेंगे। तो बेहतर यही है की कपल अपने धर्म के अनुसार लागू होने वाले एक्ट के अनुसार तलाक ले और लीगल तरीके से अलग हो। 

तलाक लेने में कितना खर्च आता है?

भारत में वकीलों की कोई फिक्स फीस नहीं है, लेकिन आपसी तलाक के केस में ज्यादातर 5,000 और 50,000 के बीच खर्चा होता है। सभी वकील अपने अनुभव और प्रतिभा के आधार पर ही फीस लेते हैं।

तलाक के नये नियम 

तलाक लेने के लिए अब भारत के नियमों में कुछ बदलाव किये गए है। यवह बदलाव निम्नलिखित है –

1. छः महीने का कूलिंग पीरियड 

तलाक लेने के लिए अब कपल को छः महीनों का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। अगर कपल आपसी सहमति से तलाक लेना चाहते है और पहले से ही दोनों ने अलग होने का पूरा मन बना रखा है तो कोर्ट सिचुएशन को देखते हुए 6 महीने की अवधि के बिना ही तलाक ग्रान्ट कर सकता है। 

2. लिव-इन में भी मेंटेनेंस का अधिकार 

भारतीय संविधान में हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 25 के तहत कोर्ट को मेंटेनेंस का आर्डर पास करने की शक्ति दी गयी है। सामान्य रूप से हस्बैंड को मेंटेनेंस के यह ऑर्डर्स दिए जाते है कि वह अपनी वाइफ को मेंटेनेंस की तय हुई रकम दे। अगर कपल पर हिंदू मैरिज एक्ट लागू नहीं होता है तो क्रिमिनल प्रोसीजर कोड के सेक्शन 125 के तहत यह मेंटेनेंस लिया जा सकता है। 

सुप्रीम कोर्ट के एक जजमेंट के अनुसार, शादी के रिश्ते की तरह ही अब लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल को भी अलग होने पर मेंटेंनेस के नियमों का पालन करना होगा। अगर कपल लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे है और वह अलग होना चाहते है तो जरूरत पड़ने पर महिला सीआरपीसी के सेक्शन 125 और डीवी एक्ट के तहत सुरक्षा और मेंटेनेंस की मांग कर सकती है।

3. शादी का अपरिवर्तनीय टूटना

शादी के अपरिवर्तनीय रूप से टूटने का मतलब है कि कपल के बीच का रिश्ता, लगाव, प्यार ख़त्म हो चूका है जिसे अब वापस पहले की तरह नहीं किया जा सकता है। इसका मतलब है कि कपल का रिश्ता इमोशनल रूप से टूट चूका है वे बस शादी के बंधन में जबरदस्ती बंधे हुए है। तो कोर्ट ने अब ऐसा रिश्तों को अलग होने की अनुमति दे दी है। अगर अब कपल एक दूसरे के साथ नहीं रह पा रहे है और एक दूसरे से अलग होना चाहते है तो वे केवल इसी आधार पर डाइवोर्स ले सकते है। हालाँकि, ऐसे कपल को द्वारके ग्रांट करना पूरी तरह से कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है।   

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4. अडल्ट्री दंडनीय अपराध नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान जजमेंट दिया था कि भारत में अब अडल्ट्री एक दंडनीय अपराध नहीं है। अगर कोई वाइफ या हस्बैंड अडल्ट्री करते है तो दूसरा पार्टनर अडल्ट्री करने वाले व्यक्ति या उसके प्रेमी पर कोई कानूनी कार्यवाई नहीं कर सकते है। अडल्ट्री लॉ में अब सज़ा देने वाले सभी प्रावधानों को ख़त्म कर दिया गया है। 

हालाँकि, कोर्ट का मानना है कि अडल्ट्री करने वाले व्यक्ति की शादी को बचना या सब कुछ पहले जैसा होना मुश्किल है। इसीलिए अब अडल्ट्री करने पर सज़ा नहीं दी जा सकती लेकिन तलाक लिया जा सकता है। अडल्ट्री होने पर दूसरे पार्टनर को पूरा अधिकार है कि वो इस आधार पर तलाक फाइल कर सकता है। 

5. तीन तलाक असंवैधानिक है 

इस्लाम के पर्सनल लॉ के तहत तीन तलाक की प्रथा अभी भी प्रचलित है और इसका पालन किया जाता है। लेकिन नैतिक रूप से मुस्लिम महिलाओं के लिए गलत है। केवल तीन बार तलाक़ शब्द कह देना तलाक देने का आधार नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट ने जब इस पर विचार किया तब इसे असंवैधानिक पाया। तीन तलाक मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करना है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक को असंवैधनिक घोषित कर चुकी है। हालाँकि, अभी यह बिल पास नहीं हुआ है। लेकिन इसके जल्द ही यही पास कर दिया जायेगा।

6. क्रिस्चन तलाक कानून 

डाइवोर्स एक्ट, 1869 के सेक्शन 18 के तहत केवल देश के सिविल कोर्ट्स के पास ही कपल की तलाक की डिक्री पास करने की शक्ति है। अब चर्च ट्रिब्यूनल से मिला तलाक का सर्टिफिकेट कानूनी रूप से वैध नहीं है। कोर्ट के आदेश के अनुसार, कोई भी पर्सनल कानून देश के संविधान और देश के कानून की जगह नहीं ले सकता है। कोई भी पर्सनल लॉ कोर्ट से उनकी शक्तियां नहीं छीन सकता है।

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किसी भी प्रकार की कानूनी सहायता के लिए लीड इंडिया से सम्पर्क कर सकते है। यहां आपको पूरी सुविधा दी जाती है और सभी काम कानूनी रूप से किया जाता है। लीड इंडिया के एक्सपर्ट वकील आपकी हर तरह से सहायता करेंगे। हमसे संपर्क करने के लिए आप ऊपर Talk to a Lawyer पर अपना नाम और फ़ोन नंबर दर्ज कर सकते है।

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