सुप्रीम कोर्ट ने POCSO एक्ट में क्यों दी जमानत

सुप्रीम कोर्ट ने POCSO एक्ट में क्यों दी जमानत

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में 18 वर्ष से कम उम्र की बालिका के साथ हुए यौन अपराध के अंतर्गत आरोपी को जमानत दे दी। वैसे तो हाई कोर्ट का यह फैसला चौकाने वाला था लेकिन इसके पीछे हाई कोर्ट ने जो टिप्पणी की वो जानना बहुत महत्वपूर्ण है। पूरे देश के अंदर जब भी 18 वर्ष से कम उम्र की किसी लड़की के साथ बलात्कार अथवा यौन शोषण होता है तो ऐसी स्थिति में पाक्सो के तहत कार्रवाई की जाती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा पाक्सो एक्ट का मकसद बच्चों को अपराध से बचाना है न कि सहमति से बने रोमांटिक संबंधों को रोकना।

क्या आप को कानूनी सलाह की जरूरत है ?

क्या था पूरा मामला

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने यौन शोषण के आरोपी एक 17 वर्ष के लड़के के जमानत दे दी थी। लड़की का आरोप था की लड़के ने उसके साथ यौन शोषण किया। जबकि जब पूरा मामला सामने आया तो पता चला लड़का और लड़की कई सालों से प्रेम संबंध में हैं और सहमति के साथ एक दूसरे से संबंध भी बनाते आए हैं।

यही कारण है कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में यह कहा कि यह पूरी कहानी किसी रोमांटिक फिल्म की तरह लगती है यह दोनों ही युवक और युवती प्रेम संबंध में थे तथा इन दोनों ने आपसी सहमति के साथ संबंध बनाए थे। अब ऐसे मामले में पोक्सो एक्ट का लगना सिर्फ कानून का दुरुपयोग करना है। युवक के जमानत का मुख्य आधार कोर्ट की यही टिप्पणी थी।

इसे भी पढ़ें:  जीवनसाथी का करियर ख़राब करना भी मानसिक क्रूरता

क्या कहता है पाक्सो एक्ट

2012 में भारत में बाल यौन अपराधों से बचाव हेतु पाक्सो (POCSO) अधिनियम को प्रस्तुत किया गया था, जिसका उद्देश्य बच्चों को यौन अपराधों से संपूर्ण कानूनी सुरक्षा प्रदान करना था। यह अधिनियम अपराधियों के त्वरित जांच, अदालती परीक्षण और सजा को सुनिश्चित करने के साथ-साथ पीड़ितों के अधिकारों की सुरक्षा भी सुनिश्चित करता है। इस प्रावधान के पीछे का तर्क यह था कि हर हाल में बाल पीड़ितों की सुरक्षा को प्राथमिकता देना चाहिए, इसके दौरान उनके अधिकारों को किसी प्रकार का कमी नहीं होना चाहिए। 

POCSO अधिनियम के तहत, 18 साल से कम उम्र के बच्चों को नाबालिग माना जाता है। POCSO एक्ट की धारा 3 के तहत नाबालिग बच्चे के साथ बदनीयती से हमला करने और धारा 4 के तहत रेप करने पर कम से कम 7 साल की सज़ा का प्रावधान है। अधिकतम आजीवन कारावास की सज़ा भी संभव है तथा जुर्माना भी लगाया जाता है।

लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले  ने इस मत को संशोधित किया है और निश्चित परिस्थितियों में जमानत देने की अनुमति दी है।

सामान्य तौर पर POCSO अधिनियम  में, आरोपी व्यक्तियों को जमानत देने का प्रावधान नहीं था। पाक्सो अधिनियम में एक आरोपी को जमानत तभी मिल सकती है जब सिद्ध हो जाए कि आरोपी अपराधी नहीं है , लेकिन इस केस में लड़के ने लड़की के साथ संबंध बनाया था। इसके बावजूद हाई कोर्ट ने लड़के को जमानात दे दी इसका मूल कारण था कि जो संबंध बनाए गए थे वह दोनों की आपसी सहमति से बनाए गए थे।

इसे भी पढ़ें:  भारत में युवाओं को क्या अधिकार दिए गए है?

कोर्ट का तर्क

POCSO एक्ट के तहत जमानत देने पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला न्याय के मूल सिद्धांतों की समझदारी से उत्पन्न हुआ है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि पीड़ित बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा करना सबसे महत्वपूर्ण है, लेकिन न्यायालय को आरोपित व्यक्ति के अधिकारों की भी चिंता है और यही कारण है हाई कोर्ट ने लड़के को जमानत दे दी।

पाक्सो तथा इससे संबंधित अथवा किसी भी तरह की कानूनी सहायता के लिए आज ही लीड इंडिया से संपर्क करें । हमारे पास प्रतिष्ठित और वरिष्ठ एक्सपर्ट की एक पूरी टीम है जो किसी भी तरह की लीगल जानकारी और सहायता के लिए हमेशा आपके साथ खड़ी है।

Social Media