केंद्र सरकार ने सोमवार दिनांक 3 जनवरी 2022 को सुप्रीम कोर्ट से नीट पीजी कि काउंसलिंग से जुड़े सभी मामलों पर जल्दी सुनवाई करने की सिफारिश की है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने, जज डी वाई चंद्रचूड़ की बेंच के सामने अनुरोध किया कि “समस्याओं” पर ध्यान देते हुए कल या परसों में ही सुनवाई की जानी चाहिए। इसपर जज का कहना था कि “सिर्फ तीन जजों की बेंच का मामला है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत चीफ जस्टिस के साथ बैठे हैं और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ दूसरी बेंच में हैं। मैं चीफ जस्टिस से बात करूंगा। मैं अनुरोध करूंगा कि यदि प्रशासनिक रूप से एक विशेष पीठ का गठन करना संभव हो सके। मैं आज के काम के अंत में तुरंत सीजे से बात करूंगा”
बेंच ने एसजी से कहा की इस मामले की केंद्र सरकार के द्वारा दायर की गयी रिपोर्ट की फोटोकॉपी याचिका-कर्ताओं को भी भेजना है।अगर ऐसा नहीं होता है, तो इस मामले को 6 जनवरी 2022 को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है। केंद्र सरकार ने नीट-पीजी काउंसलिंग से रिलेटेड सभी मामलों में सुप्रीम कोर्ट से बात की है।
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केंद्र का कहना:-
अखिल भारतीय कोटा के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों (ईडब्ल्यूएस) के अन्तर्ग्रत आने वाले आरक्षण के अभी के मानदंडों को विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के मद्देनज़र बनाए रखने का फैसला किया है। समिति का कहना है कि ईडब्ल्यूएस मानदंड को अगर अभी ही बदल दिया गया, तो उससे मुश्किलें पैदा हो सकती है। समिति ने अगले शैक्षणिक साल से बदले हुए ईडब्ल्यूएस मानदंड को शुरू करने कि सिफारिश भी की है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा दाखिल किया है।
अपने उस हलफनामे में केंद्र ने कहा कि उसने इन सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है। जहां ईडब्ल्यूएस मानदंड में बदलाव की बात हो रही है। वहीं उसके साथ समिति ने 8 लाख रुपये की वार्षिक आय मानदंड को बनाए रखने की भी सिफारिश की है। लेकिन साथ ही उन परिवारों को इस योजना से बाहर करने की सिफारिश भी की है। जिनके पास 5 एकड़ और उससे ज्यादा कृषि भूमि मौजूद है। फिर इस बात से फरक नहीं पड़ता है की उनकी वार्षिक आय ज्यादा है या कम है।
समिति का मानना है की अगर ये सभी बदलाव आने वाले शैक्षणिक साल से किये जायेंगे तो ज्यादा अच्छा होगा। उन्होंने इस बात की सिफारिश भी की है की ये संशोधन अगले शैक्षणिक वर्ष से लागू किया जाए। 31 दिसंबर, 2021 के हलफनामे के तहत केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह बताया है कि उसने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) आरक्षण के मानदंड पर एक बार दोबारा विचार करने के लिए समिति द्वारा की गयी सिफारिशों को मंजूर कर लिया है। जिसके अन्तर्ग्रत उन परिवारों के उम्मीदवार हैं, जिनकी वार्षिक आय 8 लाख रुपये तक है। और वो सभी ईडब्ल्यूएस आरक्षण के लिए योग्य पात्र हैं। लेकिन उसके तहत ऐसे लोग नहीं आते जिनके परिवारों के पास 5 एकड़ कृषि जमीन है क्योंकि ये ईडब्ल्यूएस से अधिक आय माना जाता है।
समिति ने आवासीय संपत्तियों से रिलेटेड मानदंड को हटाने के लिए भी सिफारिश की है। ये जो हलफनामा दायर किया गया है, ये नीट के लिए अखिल भारतीय कोटा में ईडब्ल्यूएस/ओबीसी आरक्षण लागू करने वाले, केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली रिट याचिकाओं के समूह में किया गया है।
आर्थिक कमजोर वर्गों के लिए मदद:-
भारत के सॉलिसिटर जनरल ने, 25 नवंबर 2021 को शीर्ष न्यायालय में प्रस्तुत किया था। उन्होंने कहा की केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के निर्धारण के लिए पहले से तय 8 लाख रुपये की वार्षिक आय सीमा पर दोबारा से सोंचने का फैसला किया है। उन्होंने कहा की एक समिति बनाई जाएगी और चार हफ़्तों के अंदर ही एक नया निर्णय लिया जायेगा। पहली दृष्टया टिप्पणियों के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा की ईडब्ल्यूएस के लिए 8 लाख रुपये की इनकम सीमा मनमानी है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने बोला कि सारे देश में बराबर की आय सीमा को बराबर रूप से लागू करना ठीक रहेगा। पीठ ने ओबीसी-क्रीमी लेयर के लिए बराबर आय सीमा जो की 8 लाख रुपये है, उसको अपनाने के आधार पर भी सवाल उठाया है।
केंद्र ने कोर्ट से कहा जब तक कोटा मामले पर कोई निर्णय नहीं होता या जब तक कोटा मामला पेंडिंग है। तब तक नीट पीजी कि काउंसलिंग और नीट-पीजी में दाखिले के लिए काउंसलिंग शुरू नहीं की जाएगी। उसके बाद 30 नवंबर, 2021 को केंद्र सरकार ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) आरक्षण के मानदंडों पर एक बार दोबारा से विचार करने के लिए एक समिति का गठन किया था। इस समिति में अजय भूषण पांडे पूर्व वित्त सचिव, प्रो वीके मल्होत्रा सदस्य सचिव भारत सरकार, आईसीएसएसआर संजीव सान्याल भारत सरकार के प्रधान आर्थिक सलाहकार शामिल हैं। आरक्षण के मानदंड की रिपोर्ट के अनुसार समिति ने यह भी राय दी कि मौजूदा प्रणाली जो की 2019 से चली आ रही है। उस प्रणाली को बिगाड़ने से लाभ लेने वाले लोगों के साथ अधिकारियों के लिए भी सोंच से ज्यादा मुश्किलें पैदा हो जाएगी।
समिति ने सिफारिश:-
नए मानदंड अगले शैक्षणिक वर्ष से शुरू किये जाये। उनका कहना है की “इस सिचुएशन में, नए मानदंड को लागू करना बिलकुल गलत साबित होगा। साथ ही चल रही प्रक्रियाओं के बीच लक्ष्य को बदलने से आवश्यक ही देरी और मुश्किलें होंगी। जब 2019 से ये मौजूदा प्रणाली चली आ रही है। तो यह इस साल भी यह प्रणाली लागू रहने पर लोई खासा अंतर नहीं आएगा।
पहले से चले आ रहे मानदंडों को वर्ष के बीच में बदलने से पूरे देश के अलग अलग न्यायालयों में मुकदमेबाजी का रिजल्ट उन लोगों पर होगा जिनकी इस आरक्षण के तहत पात्रता अचानक से ही बदल दी जाएगी। इस संबंध में समिति की रिपोर्ट के अनुसार समिति इस मामले पर विश्लेषण करने और गंभीरता से विचार करने के बाद सिफारिश करती है। सभी प्रक्रियाएं जो अभी के हिसाब से चल रही है उन्हें जारी रखा जाए। इस रिपोर्ट में अनुशंसित मानदंड अगले प्रवेश चक्र से लागू किया जा सकते हैं।
इन सभी की गयी सिफारिशों के आधार पर केंद्र सरकार ने नए मानदंडों को भावी रूप से लागू करने की सिफारिश को स्वीकार कर लिया है। हैरानी की बात तो ये है कि पूरे देश भर में रेजिडेंट डॉक्टरों ने हाल ही में नीट-पीजी काउंसलिंग में देरी होने की वजह से इसके विरोध में पूरे देश में प्रदर्शन करना शुरू कर दिया था। अब इस मामले की सुनवाई अब सुप्रीम कोर्ट को 6 जनवरी 2022 को करनी है।