पति भी वैवाहिक मामले ट्रांसफर करा सकते है।

आख़िर पति ही हमेशा कष्ट क्यों सहें

जुलाई 2015 में भारत की उच्चतम न्यायालय ने वैवाहिक मामलों के स्थानांतरण के मामले में और उस पर पतियों को होने वाले कष्ट को ले कर टिप्पणी की थी। यह टिप्पणी एक रूप से विशेष समझी जानी चाहिए। क्योंकि पिछले दो दशकों से भारत की उच्चतम न्यायालय ने पत्नियों के वैवाहिक मामलों के स्थानांतरण के उन अनुरोधों को स्वीकार किया था जहाँ पति को लंबी यात्राओं पर जा कर मुकदमो के लिए दूसरे शहर जाना पड़ता था।

जुलाई 2015 में माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक वैवाहिक विवाद के मामले में एक पत्नी द्वारा मामले को गाज़ियाबाद से मध्यप्रदेश के बैतूल में स्थानांतरित करने की मांग को ख़ारिज कर दिया था। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को ख़ारिज करते हुए कुछ महत्वपूर्ण बातों पर प्रकाश भी डाला।

माननीय सर्वोच्च न्यायालय में इस याचिका पर सुनवाई कर रहे तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एच एल दत्तू एवं न्यायमूर्ति ए के सीकरी ने कहा कि परित्यक्ता पत्नियां अपने पति द्वारा दायर मामलों को अपने निवास स्थान पर स्थानांतरित करने की मांग कर रही हैं, यह हर बार का क्रम बन चुका है। हम उनके अनुरोधों को स्वीकार करने में बहुत उदार रहे हैं। लेकिन पतियों का भी अधिकार है। पतियों को हमेशा कष्ट क्यों दिया जाना चाहिए?

न्यायालय ने याचिका को ख़ारिज करते हुए यह भी कहा कि न्यायालय महिलाओं के प्रति स्थानांतरण के मामलों में बहुत उदार रही है। यह पतियों को असहज करने के लिए काफ़ी होता है।

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इस मामले को समझने के बाद यह साफ़ है कि सर्वोच्च न्यायालय का रूख़ अब पतियों के प्रति भी उदार होने लगा है। और जब तक कि कोई ठोस आधार सामने नहीं होता हो तब तक मामले का स्थानांतरण नहीं किया जाना चाहिए। आइये समझते हैं वे कौन से आधार हैं जिन पर किसी वैवाहिक मामले को स्थानांतरित किया जाता है:

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वैवाहिक मामलों के स्थानांतरण के लिए सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 25 के तहत सिविल प्रवृत्ति के मामले को अन्य कोर्ट में स्थानांतरित किया जाता है। वहीं आपराधिक प्रवृत्ति के वैवाहिक मामले के लिए आई पी सी की धारा 406 के तहत स्थानांतरण का प्रावधान है।

सर्वोच्च न्यायालय को संविधान द्वारा अनुच्छेद 139 ए (2) के तहत मामलों को स्थानांतरित करने की शक्ति भी प्रदान की गई है। साथ ही इस अनुच्छेद के तहत ऐसी किसी याचिका को स्वीकार करने या खारिज़ करने का भी अधिकार प्रदान किया।

वैवाहिक मामले के स्थानांतरण को ले कर माननीय सुप्रीम कोर्ट ने डॉ . सुब्रमण्यम स्वामी बनाम राधाकृष्ण हेगड़े (1990) 1 एससीसी 4 में, कहा हौ कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 25 के तहत एक मामले को स्थानांतरित करने के लिए सर्वोपरि विचार न्याय की आवश्यकता होनी चाहिए।

वे आधार जिन पर वैवाहिक मामलों का स्थानन्तरण संभव है –

  1. पत्नी के पास निश्चित आयु से कम के बच्चे की कस्टडी हो।
  2. पत्नी किसी गंभीर रोग से ग्रसित हो अथवा दिव्यांग हो।
  3. इस बात के प्रेरक साक्ष्य हों कि जहां सुनवाई होनी है वहां पति-पत्नी को ख़तरा है।
  4. यदि पक्षकारों को स्थानांतरण से आपत्ति न हो।

पत्नी द्वारा दायर स्थानांतरण याचिका को ख़ारिज करने के लिए ठोस कारणों की आवश्यकता होती है। ऐसे मामले जहाँ ठोस कारणों का अभाव होगा वहाँ ऐसी याचिका को ख़ारिज नहीं किया जाता है। हालाँकि पूर्व में भी कुछ मामले ऐसे रहे हैं जहां पत्नियों द्वारा दायर स्थान्तरण याचिका को खारिज़ कर दिया गया था।

कनगलक्ष्मी बनाम ए वेंकटेशन, (2004) 13 एससीसी 405 में स्थानांतरण याचिका पत्नी द्वारा वैवाहिक विवाद को तिरुनेलवेली, तमिलनाडु में इस आधार पर स्थानांतरित करने की मांग की गई थी कि उसके लिए अपने मामले को आगे बढ़ाने के लिए तिरुनेलवेली से मुंबई की यात्रा करना मुश्किल है। पति ने अपने जवाब में कहा कि वह न केवल याचिकाकर्ता पत्नी का बल्कि उसके साथ आने वाले व्यक्ति का भी मुंबई तक कि यात्रा और रहने का खर्च वहन करने के लिए तैयार है। पति द्वारा इस तरह के आश्वासन पर सुप्रीम कोर्ट ने स्थानांतरण याचिका को खारिज कर दिया गया था।

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एक और मामले गार्गी कोनार बनाम जगजीत सिंह, (2005) 11 एससीसी 446 में पत्नी द्वारा वैवाहिक मामला जो भटिंडा, पंजाब में चल रहा था को बर्दवान, पश्चिम बंगाल में स्थानांतरित करने के लिए स्थानांतरण याचिका दायर की गई थी। पत्नी द्वारा स्थानांतरण याचिका में एकमात्र आधार यह था कि वह एक असहाय महिला है जो पूरी तरह से अपने पिता पर निर्भर है और उसकी वित्तीय क्षमता इतनी नहीं है कि वह पंजाब राज्य के बठिंडा में कार्यवाही का मुकाबला कर सके। कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए यह कहा कि यह स्थानांतरण के लिए बिल्कुल भी आधार नहीं है और इस याचिका को खारिज़ करते हुए इसके बजाय पति को निर्देश दिए कि वह उसके और उसके साथियों के आने-जाने और ठहरने के लिए हर उस मौके पर खर्च करे जिस पर उसे यात्रा करने की आवश्यकता होती हो।

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